इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने ब्रह्म प्रकाश सिंह द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि लखनऊ की विशेष अदालत में सुनवाई कर रहे न्यायाधीश ने ₹1 करोड़ की रिश्वत मांगी थी और इसी आधार पर उन्होंने केस ट्रांसफर की मांग की थी।
"ट्रांसफर याचिका झूठे और काल्पनिक आरोपों पर आधारित है ताकि ट्रायल से बचा जा सके," हाईकोर्ट ने कहा और सत्र न्यायालय के ट्रांसफर याचिका खारिज करने के फैसले को बरकरार रखा।
मामले की पृष्ठभूमि
ब्रह्म प्रकाश सिंह, जो पहले LACFEDD के प्रबंध निदेशक थे, वर्ष 2015 में IPC की धाराओं 409, 420, 467, 468, 471, 120B और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत दोषी ठहराए गए थे। इसके बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने PMLA की धाराओं 3 और 4 के तहत शिकायत संख्या 30/2018 दर्ज की।
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23 दिसंबर 2024 को सिंह ने बीएनएसएस की धारा 448 के तहत केस ट्रांसफर की अर्जी दी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि 17 सितंबर 2024 को जब कोर्ट में अकेले जज मौजूद थे, तब उन्होंने ₹1 करोड़ की रिश्वत मांगी थी।
11 अप्रैल 2025 को ट्रांसफर याचिका खारिज करते हुए सत्र न्यायालय ने कहा:
"ये आरोप अस्पष्ट, बेबुनियाद हैं और किसी भी प्रमाण से समर्थित नहीं हैं। कोई भी सामान्य समझ वाला व्यक्ति इस पर विश्वास नहीं करेगा।"
अदालत ने यह भी कहा कि कोर्ट की कार्यवाही के दौरान हमेशा न्यायालय के कर्मचारी और लोक अभियोजक मौजूद रहते हैं, इसलिए इस प्रकार की रिश्वत मांगने की संभावना नहीं है। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि याची और उसके वकील जानबूझकर मुकदमे में देरी करने की कोशिश कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति विद्यार्थी ने कहा कि शिकायत घटना के तीन महीने बाद की गई थी और वह भी तब जब ट्रायल कोर्ट ने याची के खिलाफ कई आदेश पारित किए थे, जिनमें धारा 311 CrPC और धारा 59(2)(c) PMLA के तहत दायर याचिकाओं को खारिज किया गया।
“शिकायत करने में देरी और तत्काल कोई आपत्ति नहीं जताना इस बात का संकेत है कि यह याचिका केवल ट्रायल से बचने की रणनीति है।”
हाईकोर्ट के न्यायाधीश पर आरोप
सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही एक माननीय न्यायाधीश राजेश सिंह चौहान पर भी यह आरोप लगाया कि उन्होंने जानबूझकर धारा 482 CrPC की याचिका पर कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया।
"यह आरोप झूठा, अपमानजनक और अवमानना के योग्य है," कोर्ट ने टिप्पणी की।
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कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य बनाम रामदास श्रीनिवास नायक (1982) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि न्यायिक रिकॉर्ड अंतिम होते हैं और उन्हें बार के बयान या हलफनामे से चुनौती नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह याचिका केवल ट्रायल को रोकने और न्यायिक प्रक्रिया को बाधित करने की मंशा से दाखिल की गई है। कोर्ट ने 11 अप्रैल 2025 के सत्र न्यायालय के आदेश को सही ठहराया और याचिका को 26 मई 2025 को खारिज कर दिया।
“मैं सत्र न्यायाधीश के निर्णय से पूर्णतः सहमत हूं,” हाईकोर्ट ने कहा और कहा कि ट्रांसफर याचिका खारिज करना बिल्कुल उचित था।
केस का शीर्षक - ब्रह्म प्रकाश सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य से लेकर प्रधान सचिव गृह लखनऊ और 2 अन्य
याचिकाकर्ता के वकील: राज विक्रम सिंह, संजय त्रिपाठी
प्रतिवादी के वकील: एजीए-I अनुराग वर्मा, अधिवक्ता कुलदीप श्रीवास्तव (ईडी के लिए) और अधिवक्ता शिशिर जैन (एचसी के लिए)