केरल हाईकोर्ट ने यह कहा है कि मृत व्यक्ति के खिलाफ बिना उनके कानूनी वारिसों को नोटिस दिए शुरू और पूरी की गई मूल्यांकन कार्यवाही कानूनी रूप से मान्य नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) अधिनियम की धारा 93, जो किसी व्यक्ति की मृत्यु की स्थिति में कर देनदारी को नियंत्रित करती है, उसका पालन करना अनिवार्य है।
यह निर्णय गीता के.के बनाम असिस्टेंट कमिश्नर (WP(C) No. 9318 of 2025) मामले में माननीय न्यायमूर्ति ज़ियाद रहमान ए.ए. द्वारा दिया गया, जिसमें याचिकाकर्ता गीता के.के ने अपने मृत पति हरीश कुमार के नाम पर जारी GST DRC-07 सारांश आदेश को चुनौती दी थी। हरीश कुमार “रूबी स्टील्स” नामक एक प्रोप्राइटरशिप फर्म चलाते थे।
Read also:- दिल्ली उच्च न्यायालय ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 27 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी
हरीश कुमार का 21 जनवरी 2024 को निधन हो गया था और उसके बाद व्यवसाय बंद कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने जीएसटी विभाग को उनके पति की मृत्यु और व्यवसाय बंद होने की सूचना देने के बावजूद 2 अगस्त 2024 को एक शो कॉज नोटिस उनके पति के नाम पर जारी किया गया। याचिकाकर्ता ने 3वें प्रतिवादी (एडिशनल कमिश्नर) को एक उत्तर (प्रदर्शनी P2) भेजकर इस बारे में अवगत कराया था।
“यहाँ नोटिस और मूल्यांकन आदेश मृत व्यक्ति के नाम पर जारी हैं, जिन्हें कानूनी रूप से वैध नहीं माना जा सकता,”
— न्यायमूर्ति ज़ियाद रहमान ए.ए.
Read also:- एमएस धोनी के 'कैप्टन कूल' ट्रेडमार्क आवेदन को ट्रेडमार्क रजिस्ट्री द्वारा स्वीकार कर लिया है, आखिर क्यों?
इसके बावजूद विभाग ने कार्यवाही पूरी की और मृत व्यक्ति के नाम पर GST DRC-07 आदेश (प्रदर्शनी P5) जारी कर दिया, जिसके विरुद्ध यह याचिका दायर की गई।
विभाग ने CGST अधिनियम की धारा 93 का हवाला देते हुए अपने कार्य को सही ठहराया, जिसमें कहा गया है कि मृत व्यक्ति की संपत्ति से उसकी कर देनदारी वसूली जा सकती है। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी देनदारी तय करने से पहले कानूनी वारिसों को नोटिस देना अनिवार्य है।
“हालाँकि धारा 93 के अनुसार कानूनी वारिस की देनदारी जारी रह सकती है, लेकिन उसे अंतिम रूप देने से पहले नोटिस देना आवश्यक है,”
— केरल हाईकोर्ट
Read also:- BCI ने बिना Approval के Online, Distance और Executive LLM कोर्स के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी
इन तथ्यों को देखते हुए, हाईकोर्ट ने पाया कि दिए गए आदेश प्रक्रियागत नियमों का उल्लंघन करते हैं और प्रदर्शनी P3 और P5 आदेशों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि कार्रवाई को याचिकाकर्ता और अन्य कानूनी वारिसों को नोटिस देने के बाद पुनः शुरू किया जाए।
यह फैसला विशेष रूप से उन मामलों में उचित प्रक्रिया के महत्व को रेखांकित करता है, जब करदाता का निधन हो चुका हो।
मामले का शीर्षक: गीता के.के बनाम असिस्टेंट कमिश्नर
मामला संख्या: WP(C) No. 9318 of 2025
याचिकाकर्ता की ओर से वकील: अम्मू चार्ल्स, के. श्रीकुमार, के. मनोज चंद्रन
प्रत्युत्तरकर्ता की ओर से वकील: जैस्मिन एम.एम, वी. गिरीशकुमार