सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया है, जिसमें 5,250 दिन की देरी को माफ करते हुए लंबे समय से खारिज की गई अपील को बहाल करने की अनुमति दी गई थी। यह मामला एम/एस सेठिया इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा. लि. और प्रतिवादी माफतलाल मंगीलाल कोठारी व अन्य से जुड़ा है।
विवाद की शुरुआत तब हुई जब प्रतिवादियों ने बेदखली का मुकदमा दायर किया, जिसे 1988 में खारिज कर दिया गया। उन्होंने 1989 में अपील की, लेकिन 2008 में यह अपील गैर-पर्यवेक्षण (non-prosecution) के कारण खारिज मानी गई क्योंकि निर्धारित तीन महीने की समयसीमा में पक्षकारों ने अपनी दलीलों का संकलन दाखिल नहीं किया था।
सालों बाद, 2022 में, प्रतिवादियों ने बहाली के लिए आवेदन किया और देरी के कारण बताए। अक्टूबर 2023 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने गैर-आवेदकों को निजी सेवा से नोटिस देने का उल्लेख करते हुए उनकी अर्जी स्वीकार कर ली, लेकिन विस्तृत कारण नहीं बताए।
जब लंबे समय की देरी को माफ करने की मांग की जाती है, तो अदालत को यह समझना चाहिए कि समय थमा नहीं रहता… तीसरे पक्ष के अधिकार बन चुके हो सकते हैं।
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कोर्ट ने कहा कि अपील खारिज होने के बाद तीसरे पक्ष के अधिकार, जिसमें डेवलपर द्वारा बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य भी शामिल है, बन चुके हैं। सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट का आदेश अस्थिर पाते हुए रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस भेज दिया, साथ ही निर्देश दिया कि डेवलपर को सुना जाए और आवश्यक होने पर उसे पक्षकार बनाया जाए।
पक्षकारों को 2 सितंबर 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट में उपस्थित होने के निर्देश दिए गए हैं।
मामले का शीर्षक: मेसर्स सेठिया इन्फ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम मफतलाल मांगीलाल कोठारी एवं अन्य
उद्धरण: 2025 आईएनएससी 985
अपील संख्या: सिविल अपील (विशेष अनुमति याचिका (सी) संख्या 22195/2025 से उत्पन्न)
मूल मामला: प्रथम अपील संख्या 1483/1988 (बॉम्बे उच्च न्यायालय) जो मूल वाद संख्या 289/1967 से उत्पन्न है
उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई: अंतरिम आवेदन संख्या 19020/2022 में दिनांक 25 अक्टूबर 2023 का आदेश
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की तिथि: 14 अगस्त 2025