शेक्सपियर की प्रसिद्ध पंक्ति “नाम में क्या रखा है?” को उद्धृत करते हुए, राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में नाम के महत्व पर एक अहम टिप्पणी की। न्यायमूर्ति अनुप कुमार ढांड ने कहा कि नाम केवल एक शब्द नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति की कानूनी, सामाजिक और भावनात्मक पहचान की नींव होता है।
“नाम वह पहला उपहार होता है जो हमें हमारे माता-पिता से मिलता है। यह हमारी पहचान का आधार बनता है। किसी के नाम को न मानना या गलत तरीके से बदलना, उसकी पहचान को नकारने जैसा है,” न्यायालय ने कहा।
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यह मामला चिराग नरुका बनाम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान अजमेर एवं अन्य का था। याचिकाकर्ता अपने 10वीं और 12वीं की शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में अपनी मां के नाम को सही कराना चाहता था। रिकॉर्ड में गलती से उनकी मां का निकनेम दर्ज हो गया था, जबकि वह उसका आधिकारिक नाम दर्ज कराना चाहता था।
याचिकाकर्ता ने सभी जरूरी दस्तावेज़ जमा किए जो उसकी मां के आधिकारिक नाम को साबित करते थे और बोर्ड में एक आवेदन भी दिया। लेकिन बोर्ड ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह सही प्रक्रिया के तहत नया आवेदन दाखिल करे। साथ ही, बोर्ड को यह निर्देश दिया गया कि वह सही प्रक्रिया के अनुसार नाम में सुधार करे।
“मां ही वह होती है जो बच्चे को जन्म देती है। उसका प्रेम सबसे शुद्ध, निस्वार्थ और सच्चा होता है। वह बच्चे के व्यक्तित्व, सहानुभूति और सामाजिक व्यवहार को आकार देने में अहम भूमिका निभाती है। इसलिए, उसे अपने बच्चे की शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में नाम दर्ज कराने का पूरा अधिकार है,” कोर्ट ने कहा।
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न्यायालय ने यह भी कहा कि वर्ष 2001 से पहले बच्चों के शैक्षणिक दस्तावेजों में मां का नाम दर्ज करने की कोई परंपरा नहीं थी, जो कि न केवल अन्यायपूर्ण थी बल्कि एकदम पिछड़ी सोच को दर्शाती थी। समय के साथ यह अनिवार्य हो गया कि दोनों माता-पिता के नाम शैक्षणिक दस्तावेजों में दर्ज हों।
“जन्म प्रमाणपत्रों से लेकर स्कूल रिकॉर्ड और पासपोर्ट तक, नाम हमारे अस्तित्व का कानूनी प्रमाण होता है। अगर यह गलत दर्ज हो या छूट जाए, तो व्यक्ति को अपनी पहचान और अधिकारों को साबित करने में मुश्किलें होती हैं,” कोर्ट ने कहा।
अंत में, हाईकोर्ट ने कहा कि मां का नाम शैक्षणिक दस्तावेजों में दर्ज कराना न सिर्फ कानूनी अधिकार है, बल्कि सम्मान और समानता का भी प्रतीक है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को तीन महीने की अवधि में यह प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया।
शीर्षक: चिराग नरुका बनाम अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान अजमेर एवं अन्य।