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दिल्ली में लंबित 288 गैंगस्टर मामलों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: 'समाज को इनसे मुक्ति चाहिए', फास्ट-ट्रैक कोर्ट बनाने का आग्रह

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार से गैंगस्टर मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट बनाने का आग्रह किया। अदालत ने गवाही में देरी, गवाह सुरक्षा और न्याय प्रणाली की कमजोरी पर चिंता जताई।

दिल्ली में लंबित 288 गैंगस्टर मामलों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: 'समाज को इनसे मुक्ति चाहिए', फास्ट-ट्रैक कोर्ट बनाने का आग्रह

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में लंबित 288 गैंगस्टर मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की सिफारिश की है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने इन आपराधिक मामलों में हो रही देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसके लिए एक विशेष न्यायिक तंत्र जरूरी है।

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“गैंगस्टरों के प्रति कोई गलत सहानुभूति नहीं होनी चाहिए, समाज को इनसे मुक्ति चाहिए”, जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा।

अदालत को जानकारी दी गई कि इन 288 मामलों में से केवल 108 में ही आरोप तय हुए हैं, और उनमें भी गवाही शुरू होने में 3–4 साल लग रहे हैं। अदालत ने कहा कि ऐसी देरी से न्याय की प्रक्रिया कमजोर हो जाती है और अपराधी इसका लाभ उठाते हैं।

“25% मामलों में ही अभियोजन गवाही तक पहुंचे हैं। इसका मतलब 75% अब भी लाइन में हैं। ये गवाही कब खत्म होगी? बिल्कुल अनिश्चित। यहां तक कि ट्रायल कोर्ट भी जवाब नहीं दे सकता,” जस्टिस कांत ने टिप्पणी की।

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अदालत ने भारत सरकार और एनसीटी दिल्ली से आग्रह किया कि वे मिलकर तय करें कि इन मामलों की एक साल के भीतर सुनवाई पूरी करने के लिए कितनी विशेष अदालतों की आवश्यकता होगी। इन अदालतों को सिर्फ गैंगस्टर एक्ट के मामलों की सुनवाई करनी चाहिए।

“अगर हमें चार्जशीट से लेकर ट्रायल के निष्कर्ष तक सब एक साल में करना है... तो कितनी विशेष अदालतें चाहिए? और उन अदालतों में सिर्फ गैंगस्टर एक्ट के ही केस हों”, जस्टिस कांत ने कहा।

जजों ने यह भी कहा कि यदि समयबद्ध सुनवाई की व्यवस्था की जाए तो इससे अपराधियों पर “चिलिंग इफेक्ट” पड़ेगा और उन्हें बार-बार जमानत मिलने की स्थिति से बचा जा सकता है।

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“यदि आप ऐसे मामलों के लिए समर्पित तंत्र लाते हैं तो इससे बड़ा संदेश जाएगा। ट्रायल तेजी से होगा, लोग खुश होंगे, कोर्ट बार-बार जमानत देने को मजबूर नहीं होगा,” अदालत ने कहा।

अदालत ने केंद्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली हाईकोर्ट से मिलकर व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की बात कही। इसके लिए नए न्यायिक पद, अतिरिक्त स्टाफ और संरचना की आवश्यकता होगी।

“यह तभी संभव है जब केंद्र और दिल्ली सरकार फास्ट-ट्रैक कोर्ट जैसी व्यवस्था लाने का संकल्प लें... न्यायिक अधिकारियों के नए पद और अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए,” अदालत ने कहा।

गवाह सुरक्षा पर अदालत ने सरकार से गंभीर सवाल पूछे। अदालत ने कहा कि अगर गवाह ही सुरक्षित नहीं होंगे तो न्याय प्रणाली पर जनता का भरोसा खत्म हो जाएगा।

“आप आरोपी को जेल में रखते हैं, लेकिन गवाह को तो जेल में नहीं रख सकते। वह समाज में है। आपकी आंख और कान वही हैं। अगर वे ही काम न करें तो कानून का राज कमजोर हो जाता है,” जस्टिस बागची ने टिप्पणी की।

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अदालत ने एनसीआर क्षेत्रों में बढ़ते अपराध पर भी चिंता जताई, खासकर सोनीपत, झज्जर, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे इलाकों का जिक्र किया।

“दिल्ली की सीमाओं से बाहर जाओ तो क्या हाल है?” जस्टिस कांत ने सवाल किया।

गैंगस्टर मामलों में सुनवाई में जानबूझकर देरी करने की प्रवृत्ति पर अदालत ने चिंता जताई और कहा कि इससे गवाहों को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है।

“गैंगस्टरों से सख्ती से निपटना चाहिए, कानून के दायरे में रहकर। 70–80 साल की महिलाओं को चेन छीनने या अकेले रहने के कारण निशाना बनाया जाता है... समाज को इनसे छुटकारा पाना चाहिए,” जस्टिस कांत ने कहा।

जस्टिस बागची ने यह भी बताया कि एक अभियोजक 50 मामलों को संभालता है, जो कि दैनिक सुनवाई के लिए असंभव है।

“एक अभियोजक 50 मुकदमे देखता है। क्या वह रोज़ की सुनवाई कर सकता है? यही हमारे आपराधिक न्याय तंत्र की विडंबना है,” जस्टिस बागची ने कहा।

सुनवाई समाप्त करने से पहले, अदालत ने आंध्र प्रदेश सरकार की विशेष अदालतों की पहल की सराहना की।

याचिकाकर्ता के खिलाफ 55 गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से दो में वह दोषी भी ठहराया गया है। फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी और तब से सरकार को सुनवाई में तेजी लाने का तंत्र प्रस्तुत करने के लिए समय दिया गया।

मामला: महेश खत्री उर्फ भोली बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली), एसएलपी (क्रि.) संख्या 1422/2025 से संबंधित है।