भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में दायर की गई एक जनहित याचिका (PIL) का निपटारा कर दिया, जिसमें सभी आधिकारिक दस्तावेजों और हलफनामों में बच्चों की पहचान उनकी माताओं के नाम से किए जाने की माँग की गई थी। अदालत ने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि अधिकांश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही इस बदलाव को लागू करने के लिए आवश्यक नीतिगत कदम उठा लिए हैं।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश पारित किया। अदालत ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता, पत्रकार से आध्यात्मिक कार्यकर्ता बने माधव कांत मिश्रा का निधन हो चुका है। साथ ही, अदालत ने यह भी माना कि कई राज्य सरकारों ने या तो नियमों में संशोधन कर दिया है या ऐसी नीतियाँ लागू कर दी हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि बच्चे के सभी आधिकारिक और सार्वजनिक रिकॉर्ड में उसकी माँ का नाम शामिल हो।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक विषय था, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा:
"याचिकाकर्ता ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया था और अधिकांश राज्यों द्वारा दायर जवाबी हलफनामों के अनुसार, उन्होंने याचिकाकर्ता की चिंता को स्वीकार कर लिया है। उन्होंने नीतिगत निर्णय लेकर नियमों में संशोधन कर दिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चे के सभी आधिकारिक/सार्वजनिक रिकॉर्ड में माँ का नाम दर्ज किया जाए। ऐसी स्थिति में, इस याचिका में अब कुछ भी शेष नहीं बचा है।"
इस टिप्पणी के साथ, अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि अब इस मामले में किसी और हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि याचिका का उद्देश्य पहले ही पूरा हो चुका है।
पृष्ठभूमि
यह जनहित याचिका (PIL) माधव कांत मिश्रा द्वारा दायर की गई थी। इसमें केंद्र सरकार और सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को यह निर्देश देने की माँग की गई थी कि बच्चे के सभी आधिकारिक रिकॉर्ड में उसकी माँ का नाम अनिवार्य रूप से जोड़ा जाए।
याचिका में तर्क दिया गया था कि दस्तावेज़ों से माँ के नाम को हटाना अन्यायपूर्ण और प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता ने उन परिस्थितियों को भी उजागर किया, जिनमें माँ के नाम की अनुपस्थिति बच्चे के भविष्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है, विशेष रूप से:
- वैवाहिक विवादों के मामलों में
- माँ के पुनर्विवाह की स्थिति में
- सिंगल मदर के मामलों में
मिश्रा ने प्रस्ताव दिया कि पिता का नाम वैकल्पिक हो सकता है, लेकिन माँ का नाम सभी दस्तावेज़ों में अनिवार्य रूप से जोड़ा जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को मिश्रा के निधन और उनके किसी भी कानूनी उत्तराधिकारी के न होने की जानकारी दी, क्योंकि उन्होंने सन्यास धारण कर लिया था। इस पर न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने उनके योगदान की सराहना करते हुए कहा:
"उन्होंने एक सराहनीय कार्य किया, और अधिकांश राज्यों ने पहले ही यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा लिए हैं कि बच्चे के दस्तावेज़ों में माँ का नाम जोड़ा जाए।"
इस भावना को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसडी संजय ने भी दोहराया और कहा:
"जो वह चाहते थे, वह पहले ही अधिकांश राज्यों में हासिल किया जा चुका है।"
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला देशभर में कानूनी और प्रशासनिक ढांचे में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। अब यह सुनिश्चित किया जाएगा कि बच्चे की पहचान में उसकी माँ की भूमिका को औपचारिक रूप से मान्यता दी जाए। यह न केवल महिला अधिकारों को मजबूत करता है, बल्कि उन बच्चों के लिए भी लाभदायक है जिनके लिए पिता का नाम अनुपलब्ध या विवादित हो सकता है।
मामले का विवरण : माधव कांत मिश्रा बनाम भारत संघ W.P.(C) No. 576/2014