सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का सख्त निर्देश दिया है कि सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना, 2025 को पूरी ईमानदारी और गंभीरता से लागू किया जाए। यह योजना 5 मई, 2025 से लागू हो गई है।
यह योजना मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 162 के तहत तैयार की गई है, जिसका उद्देश्य सड़क दुर्घटना पीड़ितों को "गोल्डन आवर" यानी दुर्घटना के बाद पहले एक घंटे के भीतर कैशलेस उपचार प्रदान करना है।
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न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने केंद्र सरकार को अगस्त 2025 के अंत तक एक शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें योजना के कार्यान्वयन का विवरण दिया जाए, जैसे कि कितने लाभार्थियों को इस योजना के तहत कैशलेस उपचार मिला।
"हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि वह इस योजना को पूरी ईमानदारी और गंभीरता से लागू करे। हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि वह अगस्त 2025 के अंत तक एक शपथपत्र दाखिल करे, जिसमें योजना के कार्यान्वयन का विवरण हो, जैसे कि इस योजना के अंतर्गत कितने लाभार्थियों को कैशलेस उपचार मिला। केंद्र सरकार इस योजना का व्यापक प्रचार भी करे।"
यह निर्देश उस सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें धारा 162 के लागू होने के बावजूद केंद्र द्वारा उस पर अमल में देरी को लेकर अदालत विचार कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले भी सरकार की आलोचना की थी कि उसने अपने ही कानून पर कार्रवाई नहीं की।
इस योजना के तहत, हर दुर्घटना पीड़ित को ₹1.5 लाख तक का कैशलेस इलाज सात दिनों के भीतर उपलब्ध कराया जाएगा। यह इलाज नामित अस्पतालों में तुरंत शुरू किया जाना चाहिए जब पीड़ित को भर्ती किया जाए।
अदालत ने आदेश में कहा कि यह योजना अब 5 मई, 2025 से प्रभावी हो गई है, और इस पर कोई भी आपत्तियाँ उचित समय पर सुनी जाएंगी।
इससे पहले 28 अप्रैल, 2025 को हुई सुनवाई में, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के सचिव को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में उपस्थित होना पड़ा था क्योंकि पहले दिए गए निर्देशों का पालन नहीं हुआ था। अदालत ने यह भी सवाल उठाया था कि 1 अप्रैल, 2022 से धारा 162 लागू होने के बावजूद योजना क्यों नहीं बनाई गई।
न्यायमूर्ति अभय ओका ने कहा, "लोग हाइवे पर मर रहे हैं क्योंकि उपचार योजना नहीं है। अगर बुनियादी स्वास्थ्य सेवा नहीं है तो हाइवे बनाने का क्या मतलब?"
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कोर्ट को यह बताया गया कि योजना का मसौदा तैयार हो चुका है, लेकिन जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (GIC) द्वारा उठाई गई आपत्तियों के कारण इसमें देरी हुई।
कोर्ट ने चेतावनी दी, “अगर GIC सहयोग नहीं कर रही है, तो कोई अन्य एजेंसी नियुक्त की जाए।”
सचिव ने अदालत को आश्वस्त किया कि इस मुद्दे को जल्द हल कर योजना को लागू किया जाएगा।
केस नं. – WP (C) नं. 295/2012
केस का शीर्षक – एस. राजसीकरन बनाम भारत संघ और अन्य।