भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई 2025 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉरपोरेशन (TASMAC) पर की जा रही जांच और छापों पर रोक लगा दी। यह निर्णय तमिलनाडु सरकार और TASMAC द्वारा दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान लिया गया, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट द्वारा उनकी याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस एजी मसीह भी शामिल थे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ईडी की कार्रवाई पर कड़े सवाल उठाए।
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"आपकी ईडी सारी सीमाएं पार कर रही है। निगम के खिलाफ अपराध कैसे बनता है?" – मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई
तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बताया कि राज्य सरकार ने 2014 से 2021 के बीच शराब दुकानों के संचालकों के खिलाफ पहले ही 41 एफआईआर दर्ज की हैं। लेकिन ईडी ने 2025 में आकर TASMAC के दफ्तरों पर छापे मारे और अधिकारियों के मोबाइल व डिवाइसेज़ जब्त कर लिए।
"ईडी 2025 में आई और निगम पर छापा मारा। सभी मोबाइल ले लिए, सब कुछ क्लोन कर लिया।" – कपिल सिब्बल
कोर्ट ने सवाल किया कि किसी सरकारी निगम पर आपराधिक मामला कैसे बनता है?
"व्यक्तियों पर मामला दर्ज किया जा सकता है, लेकिन निगम पर? आपकी ईडी सारी सीमाएं पार कर रही है।" – सीजेआई गवई
पीठ ने ईडी को नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत दी:
"इस बीच, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आगे की कार्यवाही पर रोक लगाई जाती है।"
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वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बताया कि ईडी ने TASMAC अधिकारियों के डिवाइस क्लोन कर उनकी निजता का उल्लंघन किया है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि अंतरिम राहत पहले ही दी जा चुकी है, इसलिए और निर्देश नहीं दिए जाएंगे।
ईडी की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने 1000 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया और कहा कि राजनीतिक हस्तियों को बचाया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने सवाल उठाया:
"जब राज्य सरकार पहले ही एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई कर रही है, तो ईडी की जरूरत क्या है?... अपराध की मूल आधार क्या है?" – सीजेआई गवई
मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला तमिलनाडु में कथित 1000 करोड़ रुपये के शराब घोटाले से जुड़ा है। मार्च 2025 में ईडी ने TASMAC दफ्तरों पर छापेमारी की थी। आरोप था कि शराब कंपनियों ने बिना हिसाब किताब के नकद रकम का इस्तेमाल कर सप्लाई ऑर्डर हासिल किए। TASMAC अधिकारियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा और दुकानों पर एमआरपी से अधिक राशि वसूली जा रही थी।
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ईडी ने तमिलनाडु के सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (DVAC) द्वारा दर्ज 41 एफआईआर के आधार पर मामला दर्ज किया था। इससे पहले, 23 अप्रैल को मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और TASMAC की याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने यह भी कहा:
"छापे के दौरान कर्मचारियों को रोके रखना सामान्य प्रक्रिया है ताकि सबूत नष्ट न हों। मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के आरोप बाद में सोचे गए प्रतीत होते हैं।"
तमिलनाडु सरकार ने हाईकोर्ट से केस ट्रांसफर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उनकी याचिका को स्वीकार नहीं किया गया।
हाल ही में ईडी ने फिर से तमिलनाडु में कई जगह छापे मारे, जिसमें TASMAC के प्रबंध निदेशक एस. विश्वकन और फिल्म निर्माता आकाश भास्करन के घर शामिल थे। रिपोर्ट्स के अनुसार, एमडी से लगभग 10 घंटे पूछताछ की गई।
TASMAC ने ईडी पर बिना सबूत के केवल अनुमान के आधार पर जांच करने का आरोप लगाया और कहा कि यह कार्रवाई चुनाव के मद्देनज़र राजनीतिक छवि खराब करने के लिए की गई है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जब तक PMLA के तहत कोई अपराध सिद्ध न हो, ईडी की मूल अधिकारिता नहीं बनती।
वहीं, ईडी ने तर्क दिया कि भ्रष्टाचार, घूस, शराब की कीमतें बढ़ाना और कर्मचारियों की पोस्टिंग में धांधली जैसे आरोपों के आधार पर छापा मारा गया। ये शिकायतें राज्य पुलिस द्वारा ही दर्ज की गई थीं। ईडी ने यह भी कहा कि संदेह के आधार पर भी तलाशी ली जा सकती है और कोर्ट को उस स्तर पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने अब इस पर रोक लगाई है और आगे की सुनवाई के लिए मामला सुरक्षित रखा है।
मामले का विवरण: तमिलनाडु राज्य बनाम प्रवर्तन निदेशालय और अन्य | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 7958/2025 और तमिलनाडु राज्य विपणन निगम लिमिटेड, (टीएएसएमएसी) बनाम प्रवर्तन निदेशालय | एसएलपी (सीआरएल) संख्या 8048-8049/2025
उपस्थिति: वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, एओआर मीशा रोहतगी (टीएन के लिए) और वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी (सिब्बल के साथ) और प्रतिवादी के लिए एएसजी एसवी राजू