भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 21 अप्रैल 2025 से एक नई केस कैटेगराइजेशन प्रणाली लागू की है। यह पिछले लगभग तीस वर्षों में केस प्रबंधन में पहला बड़ा सुधार है। इसका उद्देश्य प्रणाली को अधिक प्रभावी, संगठित और वकीलों व पक्षकारों के लिए उपयोग में आसान बनाना है। पहले कोर्ट ने मामूली बदलाव किए थे, लेकिन पिछली बड़ी संरचनात्मक बदलाव 1997 में हुआ था।
केस कैटेगरी क्या होती है?
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हर केस को एक "केस कैटेगरी" दी जाती है, जो एक विषय से संबंधित कोड और विवरण होती है।
उदाहरण के लिए:
"0305 - मध्यस्थता कानून और अन्य वैकल्पिक विवाद समाधान - विदेशी मध्यस्थता पुरस्कार को चुनौती देना/प्रवर्तन करना।"
इन कैटेगरीज का उपयोग केसों की लिस्टिंग और जजों को विषय के अनुसार केस सौंपने के लिए होता है।
ये कैटेगरीज केस डेटा ट्रैक करने, केस के प्रकारों का विश्लेषण करने और कोर्ट को प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय लेने में मदद करती हैं।
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ऐतिहासिक विकास
1993 से पहले, सुप्रीम कोर्ट में केवल 18 प्रमुख कैटेगरीज थीं। 1993 में इसे बढ़ाकर 48 किया गया।
1997 में एक व्यापक सुधार हुआ, जिसमें 45 मुख्य कैटेगरीज और कई सब-कैटेगरीज शामिल की गईं, जिससे कंप्यूटरीकृत केस लिस्टिंग संभव हुई।
1997 के बाद केवल कुछ मामूली संशोधन हुए (1999, 2002, 2005 आदि में)।
2025 तक, कोर्ट के पास 47 मुख्य कैटेगरीज और 307 सब-कैटेगरीज थीं।
"1997 के बाद केवल छोटे-मोटे बदलाव हुए, यह पहला बड़ा परिवर्तन है," कोर्ट ने कहा।
बदलाव की आवश्यकता क्यों पड़ी?
समय के साथ कई समस्याएं सामने आईं:
ओवरलैपिंग कैटेगरीज: कई केस एक से अधिक कैटेगरी में आ जाते थे, जिससे भ्रम होता था।
पुरानी कैटेगरीज: नए कानूनों के लिए कोई विशेष कैटेगरी नहीं थी और उन्हें "Others" में रखा जाता था।
गलत आंकड़े: महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे मामलों को ट्रैक करना मुश्किल हो गया था।
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नई प्रणाली में मुख्य बदलाव
जनवरी 2023 में, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चंद्रचूड़ ने केस कैटेगराइजेशन सलाहकार समिति बनाई, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति पामिडिघंटम श्री नरसिंह (सुप्रीम कोर्ट) ने की।
समिति की सिफारिशों के अनुसार, नई प्रणाली 21 अप्रैल 2025 से लागू की गई।
मुख्य बदलाव इस प्रकार हैं:
सब-कैटेगरीज में कटौती: 307 से घटाकर 189 कर दी गईं, जिससे पहचान सरल हुई।
क्रिमिनल मामलों के लिए "मार्कर" प्रणाली: अब केस 11 मुख्य श्रेणियों और 13 “मार्कर” टैग के साथ वर्गीकृत होंगे, जैसे AB (एंटिसिपेटरी बेल), LI (लाइफ इम्प्रिजनमेंट)।
"मार्कर डेटा प्रबंधन और विश्लेषण में मदद करेंगे," कोर्ट ने कहा।
नए कानूनों के लिए नई कैटेगरीज: जैसे IBC, आईटी कानून, आईपीआर, दूरसंचार कानून आदि को जोड़ा गया।
पुराने कानूनों की जगह नए नाम: जैसे कंपनियों से जुड़े मामलों में अब Companies Act 2013 होगा, पुराना 1956 नहीं।
पारिवारिक मामलों का एकीकरण: विवाह, भरण-पोषण, संपत्ति विवाद जैसे मामले अब "पारिवारिक कानून" कैटेगरी के अंतर्गत होंगे।
वर्णानुक्रम में सूची: अब कैटेगरीज को A-Z क्रम में रखा गया है, जिससे खोज में आसानी होगी।
निष्कर्ष
नई प्रणाली में 48 मुख्य विषय कैटेगरीज और 189 सब-कैटेगरीज शामिल हैं। यह ओवरलैप को हटाती है, पुराने वर्गों को अपडेट करती है और डेटा को बेहतर बनाती है।
"यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक ढांचे को आधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है," कोर्ट ने कहा।
इससे केसों के आंकड़े सटीक मिलेंगे, संसाधनों का सही आवंटन होगा, और भविष्य में AI तकनीकों के इस्तेमाल के लिए आधार बनेगा। हाई कोर्ट्स को भी इस दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया गया है।
लेखक सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं। उनकी लिंक्डइन प्रोफ़ाइल यहाँ उपलब्ध है।