सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसकी 2015 की वह व्यवस्था, जिसमें ताज ट्रेपेजियम जोन (TTZ) में पेड़ों की कटाई से पहले अनुमति लेने को कहा गया था, अब भी लागू रहेगी। यह नियम ताजमहल से 5 किलोमीटर की हवाई दूरी में आने वाले क्षेत्रों में पेड़ काटने पर लागू होगा।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने यह आदेश पर्यावरण संरक्षण से संबंधित MC मेहता केस में दिया।
"अतः दिनांक 15 मई 2015 का आदेश ताजमहल से 5 किलोमीटर की हवाई दूरी के अंदर स्थित क्षेत्रों के मामलों में लागू रहेगा। अतः इस क्षेत्र के संबंध में, इस न्यायालय की अनुमति के बिना पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी जाएगी," कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पेड़ों की संख्या 50 से कम हो, तब भी अनुमति लेना अनिवार्य होगा। ऐसे सभी आवेदन पहले केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) को भेजे जाएंगे, जो अपनी सिफारिशें कोर्ट को देगी, और फिर कोर्ट निर्णय लेगा।
TTZ क्षेत्र के उन हिस्सों में जो ताजमहल से 5 किमी से बाहर हैं, वहां पेड़ों की कटाई तभी हो सकती है जब संबंधित डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) या CEC से अनुमति ली जाए। लेकिन यह अनुमति उत्तर प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम के तहत होनी चाहिए।
इस अधिनियम की धारा 7 के तहत, हर कटे पेड़ के बदले दो नए पेड़ लगाना अनिवार्य है, जब तक कि विशेष छूट न दी जाए। वहीं, धारा 10 के अनुसार, अनुमति के बिना पेड़ काटना या शर्तों का उल्लंघन करना छह महीने की जेल या एक हजार रुपये तक के जुर्माने से दंडनीय है।
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कोर्ट ने कहा कि DFO यह शर्त लगाए कि सभी पूर्व-शर्तें पूरी होने तक कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा। CEC या DFO को पहले यह सत्यापित करना होगा कि सभी शर्तें पूरी हो चुकी हैं, तभी पेड़ काटने या स्थानांतरित करने की अनुमति दी जाएगी।
"यह अपवाद केवल उन्हीं स्थितियों में लागू होगा जब पेड़ों की तत्काल कटाई आवश्यक हो ताकि मानवीय जीवन को होने वाली हानि को रोका जा सके," कोर्ट ने स्पष्ट किया।
कोर्ट ने बताया कि केवल आपातकालीन स्थितियों में ही बिना पूर्व अनुपालन के पेड़ काटने की अनुमति दी जा सकती है, जब जीवन को खतरा हो।
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इसके अलावा, कोर्ट ने CEC से यह भी कहा कि वह यह रिपोर्ट दे कि आगरा के दो अन्य यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों — आगरा किला और फतेहपुर सीकरी — की सुरक्षा के लिए क्या अतिरिक्त प्रतिबंध आवश्यक हैं।
कोर्ट ने एक ट्रस्ट द्वारा दायर याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें TTZ में निजी या गैर-जंगल भूमि पर पेड़ काटने के लिए अनुमति की आवश्यकता को शिथिल करने की मांग की गई थी। अधिवक्ता किशन चंद जैन ने तर्क दिया कि इससे एग्रो-फार्मिंग को बढ़ावा मिलेगा और पेड़ों तथा कटाई करने वालों का पंजीकरण संभव होगा।
कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा:
"वास्तव में याचिकाकर्ता जो चाहता है, वह है गैर-जंगल भूमि पर तथाकथित एग्रो-फार्मिंग के नाम पर पेड़ काटने की खुली छूट। यदि हम यह छूट दे दें, तो 1984 से इस न्यायालय द्वारा पारित सभी आदेश निष्फल हो जाएंगे।"
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कोर्ट ने कहा कि ऐसी छूट से TTZ के पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ेगा और आगरा को आधुनिक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील शहर के रूप में विकसित करने का उद्देश्य असफल हो जाएगा।
यह फैसला उस पृष्ठभूमि में आया है जब कोर्ट ने अपनी 11 दिसंबर 2019 की व्यवस्था को वापस ले लिया था, जिसमें गलती से अनुमति की अनिवार्यता को हटाया गया था। यह आदेश उस समय गलतफहमी के आधार पर पारित हुआ था और उसमें एग्रो-फॉरेस्ट्री का कोई ठोस विवरण नहीं था।
25 मार्च 2025 को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सुझाव दिया था कि 50 से कम पेड़ों की कटाई TTZ में कोर्ट की अनुमति के बिना संभव हो सकती है। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ताजमहल के आस-पास के क्षेत्रों में पेड़ काटने पर पूर्ण प्रतिबंध तब तक जारी रहेगा जब तक वह इस पर कोई और आदेश न दे।
अतः अब कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ताजमहल से 5 किमी की हवाई दूरी में आने वाले क्षेत्रों में, भले ही पेड़ 50 से कम हों, उनकी कटाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति अनिवार्य है।
मामला शीर्षक: MC मेहता बनाम भारत संघ एवं अन्य
मामला संख्या: रिट याचिका (सिविल) संख्या 13381/1984