भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चेक बाउंस मामलों में क्षेत्राधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। प्रकाश चिमनलाल शेठ द्वारा दायर एक अपील को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने पहले के हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें क्षेत्राधिकार के आधार पर शिकायत को खारिज किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद तब शुरू हुआ जब अपीलकर्ता प्रकाश चिमनलाल शेठ ने आरोप लगाया कि कियूर ललितभाई राजपोपट ने उनसे ₹38.5 लाख का ऋण लिया था। उसकी पत्नी और इस मामले की प्रतिवादी जागृति कियूर राजपोपट ने गारंटर के रूप में हस्ताक्षर किए और खुद भी अपीलकर्ता से वित्तीय सहायता प्राप्त की। सितंबर 2023 में, उन्होंने अपने और अपने पति के ऋण चुकाने के लिए चार चेक जारी किए।
इन चेकों को अपीलकर्ता ने मुंबई के कोटक महिंद्रा बैंक की ओपेरा हाउस शाखा में जमा किया। हालांकि, 15.09.2023 को उन्हें सूचित किया गया कि खाते में अपर्याप्त धन के कारण चेक बाउंस हो गए। इसके बाद, अपीलकर्ता ने मैंगलोर की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, पांचवीं अदालत में चार शिकायतें दर्ज कीं।
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दिनांक 12.12.2023 को मजिस्ट्रेट ने शिकायतें यह कहकर लौटा दीं कि मुंबई शाखा होने के कारण उनके पास क्षेत्राधिकार नहीं है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी इस दलील से सहमति जताई और 05.03.2024 को अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी।
“हाईकोर्ट ने यह गलत मान लिया कि अपीलकर्ता का खाता कोटक महिंद्रा बैंक की मुंबई शाखा में है।” – सुप्रीम कोर्ट
अपीलकर्ता ने स्पष्ट किया कि भले ही चेक मुंबई में जमा किए गए थे, लेकिन उन्हें उनके मैंगलोर स्थित कोटक महिंद्रा बैंक की बेंदुरवेल शाखा में जमा करने के लिए भेजा गया था। उन्होंने अपने खाता नंबर (0412108431) के साथ बैंक दस्तावेज पेश किए।
प्रतिवादी ने भी स्वीकार किया कि पहले खाता मुंबई में था, लेकिन बाद में उसे मैंगलोर ट्रांसफर कर दिया गया था।
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“अब यह विवाद नहीं रहा कि अपीलकर्ता का खाता कोटक महिंद्रा बैंक की बेंदुरवेल, मैंगलोर शाखा में है।” – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एनआई अधिनियम की धारा 142(2)(a) का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि जिस अदालत के क्षेत्राधिकार में पेयी का बैंक खाता स्थित हो, वहीं चेक बाउंस की शिकायत दर्ज हो सकती है – यानी जहां चेक संग्रह के लिए खाते के माध्यम से प्रस्तुत किया गया हो।
कोर्ट ने ब्रिजस्टोन इंडिया प्रा. लि. बनाम इंदरपाल सिंह (2016) मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें यही नियम लागू किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब चेक प्रस्तुत किए गए थे, तब अपीलकर्ता का खाता मैंगलोर में था, इसलिए शिकायतें वहीं दर्ज करना पूरी तरह वैध था।
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“मैंगलोर के मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया यह रुख गलत था और एनआई एक्ट की धारा 142(2)(a) के स्पष्ट प्रावधान के खिलाफ था।” – सुप्रीम कोर्ट
केस का नाम: प्रकाश चिमनलाल शेठ बनाम जागृति केयूर राजपोपत 2025 (@ 2024 की एस.एल.पी. (सीआरएल) संख्या 5540-5543)