सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) पर जवाब मांगा है। यह याचिका सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया कि मौजूदा चयन प्रक्रिया पूरी तरह से केंद्र सरकार के नियंत्रण में होने के कारण सीएजी की स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है।
PIL में यह मांग की गई है कि सीएजी की नियुक्ति एक समिति द्वारा की जाए, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल हों। CPIL की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि स्वतंत्र चयन प्रक्रिया की अनुपस्थिति से सीएजी की निष्पक्षता पर असर पड़ा है।
"हाल के समय में, सीएजी ने अपनी स्वतंत्रता खो दी है।"
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ ने पूछा कि क्या हाल के वर्षों में सीएजी की स्वतंत्रता को लेकर कोई ठोस उदाहरण हैं? जवाब में, भूषण ने सीएजी की रिपोर्टों में गिरावट और कर्मचारियों की संख्या में कमी का हवाला दिया।
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भूषण ने तर्क दिया कि भाजपा-शासित राज्यों में ऑडिट रिपोर्ट रोक दी जा रही हैं, जिसका उदाहरण महाराष्ट्र है। उन्होंने यह भी बताया कि जैसे सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्तियों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप किया, वैसे ही सीएजी के मामले में भी हस्तक्षेप आवश्यक है।
"अगर नियुक्ति प्रक्रिया सरकार के हाथ में रहेगी, तो उसकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी।"
न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने इस विषय पर टिप्पणी करते हुए कहा:
"हमें अपने संस्थानों पर भी भरोसा करना चाहिए।"
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 148 का उल्लेख किया, जो सीएजी को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समान हटाने से सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि, भूषण ने तर्क दिया कि चुनाव आयुक्तों को भी ऐसी ही सुरक्षा मिली हुई है, फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपर्याप्त मानते हुए अनुप बारनवाल केस में हस्तक्षेप किया था।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि चुनाव आयोग की नियुक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार होती है, जबकि सीएजी की नियुक्ति के लिए संविधान ने राष्ट्रपति को अधिकार दिया है। उन्होंने सवाल किया:
"जहां संविधान ने नियुक्ति की असीमित शक्ति प्रदान की है, वहां क्या और किस हद तक अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए?"
सुनवाई के बाद, पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांगा और इसी तरह की एक अन्य याचिका के साथ इसे जोड़ दिया। न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यह मामला तीन-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुना जाना चाहिए। भूषण ने सुझाव दिया कि इसे संविधान पीठ को भी सौंपा जा सकता है।
मामला संदर्भ: सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन बनाम भारत संघ W.P.(C) No. 194/2025