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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा: सिर्फ Rs.115 में सपा को कैसे मिला नगर निगम का ऑफिस, बताया राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी से पूछा कि ₹115 में पीलीभीत नगर निगम की इमारत कैसे मिली, राजनीतिक शक्ति के दुरुपयोग की ओर इशारा किया। कोर्ट ने सिविल कोर्ट में राहत लेने को कहा।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा: सिर्फ Rs.115 में सपा को कैसे मिला नगर निगम का ऑफिस, बताया राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग

21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी (सपा) की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया जिसमें पीलीभीत में जिला कार्यालय से बेदखली को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने पार्टी को निर्देश दिया कि वह अंतरिम राहत के लिए पहले से लंबित सिविल वाद को सिविल कोर्ट में आगे बढ़ाए।

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न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणियां कीं और सपा द्वारा प्राप्त संपत्ति के तरीके पर आपत्ति जताई। हालांकि आदेश में मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं की गई, लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट रूप से राजनीतिक शक्ति के दुरुपयोग की ओर इशारा किया।

“अगर आपने इस तरह राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग किया है, क्योंकि आप सत्ता में थे… ₹115 में क्या कोई नगर निगम की इमारत किसी राजनीतिक पार्टी को कार्यालय खोलने के लिए मिलती है?” – न्यायमूर्ति सूर्यकांत

सुनवाई की शुरुआत में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सपा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे से पूछा कि पार्टी को पीलीभीत का कार्यालय कैसे आवंटित हुआ। इस पर दवे ने बताया कि नगर पालिका परिषद द्वारा आवंटन किया गया था और किराया भी अदा किया गया है।

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हालांकि, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने मात्र ₹115 किराए पर सवाल उठाया और हैरानी जताई कि सार्वजनिक संपत्ति इतनी सस्ती कैसे दी जा सकती है। उन्होंने कहा:

“क्या आपने कभी सुना है कि नगर निगम की इमारत ₹115 में मिलती है? और आप चाहते हैं कि हम इस पर विश्वास करें? देश के लोगों को सिस्टम पर कुछ तो विश्वास होना चाहिए।”

जब दवे ने दलील दी कि याचिकाकर्ता के पास पहले से कब्जा था और नगरपालिका जबरन ताला नहीं लगा सकती, तो पीठ ने जवाब दिया:

“अभी आप अनाधिकृत कब्जाधारी हैं। लीज रद्द कर दी गई है। आपने उस आदेश को चुनौती नहीं दी है।”

दवे ने दावा किया कि लीज रद्दीकरण आदेश को चुनौती दी गई है, लेकिन न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की:

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“जब आप राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग करते हैं, तब आपको कानून की याद नहीं आती। लेकिन जब कार्रवाई होती है, तब आप सबकुछ याद रखते हैं।”

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक या बाहुबल के बल पर किया गया कब्जा वैध नहीं हो सकता:

“ये कोई आवंटन नहीं है। ये सब राजनीतिक, पैसे और ताकत के बल पर किए गए फर्जी कब्जे हैं।”

पीठ ने समाजवादी पार्टी को सिविल कोर्ट में लंबित मुकदमे के माध्यम से ही राहत लेने को कहा। जब दवे ने वकीलों की हड़ताल के कारण कोर्ट पहुंच में नहीं होने की बात कही, तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट वकीलों की हड़ताल पर पहले ही सख्त निर्देश दे चुका है।

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गौरतलब है कि यह मामला पहले भी कानूनी प्रक्रिया में रहा है। 2 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहते हुए सपा की रिट याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया था कि सिविल वाद पहले से लंबित है। इससे पहले जून में सुप्रीम कोर्ट ने उस विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज कर दिया था, जिसमें हाईकोर्ट द्वारा पीलीभीत जिला अध्यक्ष को इस विवाद से संबंधित आगे कोई रिट याचिका दाखिल करने से रोका गया था।

मामला शीर्षक: THE SAMAJWADI PARTY बनाम STATE OF U.P. AND ANR, SLP(C) No. 18269/2025