भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को निर्देश दिया है कि वह देशभर के कानून कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के वार्षिक या आवधिक निरीक्षण के लिए एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था का प्रस्ताव दे।
यह निर्देश उस समय आया जब जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने उस फैसले में BCI को कानून संस्थानों का निरीक्षण करने का अधिकार सही ठहराया था। यह याचिका नाथीबाई दामोदर ठाकरे महिला विश्वविद्यालय लॉ स्कूल ने दायर की थी, जिसमें BCI द्वारा जारी निरीक्षण नोटिस और कारण बताओ नोटिस को चुनौती दी गई थी।
"इस बीच, बार काउंसिल ऑफ इंडिया एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र का सुझाव दे, ताकि कानून कॉलेजों/विश्वविद्यालयों का वार्षिक/आवधिक निरीक्षण किया जा सके," सुप्रीम कोर्ट ने कहा।
याचिकाकर्ता ने यह दलील दी कि लीगल एजुकेशन नियम, 2008, जिसके अंतर्गत BCI निरीक्षण करता है, एडवोकेट्स एक्ट के तहत मान्य नहीं हैं। उनका कहना था कि BCI ने नियमों में अपनी शक्ति का विस्तार किया है जबकि एडवोकेट्स एक्ट में निरीक्षण का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि उनके लॉ डिग्री कार्यक्रम की मान्यता महाराष्ट्र सार्वजनिक विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 के तहत दी जाती है, इसलिए BCI को उनका निरीक्षण करने का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया:
"लीगल एजुकेशन नियम, 2008, न तो एडवोकेट्स एक्ट के विरुद्ध हैं और न ही संविधान के अनुच्छेद 14 या 19(1)(g) का उल्लंघन करते हैं।"
मुख्य न्यायाधीश अलोक आराध्ये और न्यायमूर्ति एम.एस. कर्णिक की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि कानून शिक्षा के मानकों को बनाए रखना BCI का एक मुख्य कर्तव्य है, जैसा कि एडवोकेट्स एक्ट की धारा 7(1) में उल्लेखित है। इसके साथ ही, धारा 49(1) के तहत BCI को नियम बनाने की शक्ति है, जिसमें निरीक्षण और शिक्षा मानक शामिल हैं।
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कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व निर्णय BCI बनाम बॉनी फोई लॉ कॉलेज का हवाला भी दिया, जिसमें कहा गया था कि BCI का एक प्रमुख उद्देश्य देश में कानून शिक्षा को बढ़ावा देना और उसके मानकों को तय करना है। कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 7(1)(m) BCI को व्यापक अधिकार प्रदान करती है।
"BCI की नियम बनाने की शक्ति को संकीर्ण रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से एडवोकेट्स एक्ट का उद्देश्य विफल हो जाएगा," कोर्ट ने कहा।
जहां तक याचिकाकर्ता द्वारा 2016 अधिनियम का उल्लेख है, कोर्ट ने कहा कि यह एक सामान्य कानून है, जबकि एडवोकेट्स एक्ट और लीगल एजुकेशन नियम विशेष कानून हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 2016 अधिनियम, एडवोकेट्स एक्ट को न तो निरस्त करता है और न ही उसके साथ कोई विरोधाभास उत्पन्न करता है। भले ही किसी प्रकार का विरोधाभास हो, संसद द्वारा पारित विशेष कानून ही मान्य होगा।
इस प्रकार कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि BCI को कानून संस्थानों का निरीक्षण करने का वैधानिक अधिकार है और विश्वविद्यालय इस निरीक्षण से छूट का दावा नहीं कर सकता।
केस का शीर्षक: नाथीबाई दामोदर ठाकरसे महिला विश्वविद्यालय लॉ स्कूल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, एसएलपी (सी) संख्या 17029/2025
उपस्थिति: वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर जी. देवासा, अधिवक्ता मनीष तिवारी, तश्मिथा मुथन्ना और रंजीत कोटियन याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए। देवासा एंड कंपनी फर्म ने अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड के रूप में कार्य किया।