भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई 2025 को दिए अपने फैसले में, कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें आर. शंकरप्पा के खिलाफ विभागीय चार्जशीट को खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि Central Civil Services (Classification, Control and Appeal) Rules, 1965 (CCS CCA Rules) के तहत एक ऐसा अधिकारी जो मामूली सजा देने का अधिकार रखता है, वह भी गंभीर (मेजर) सजा से संबंधित कार्रवाई की शुरुआत कर सकता है।
आर. शंकरप्पा 31 मई 2018 को सेवानिवृत्त हुए। उनके खिलाफ CBI ने दो मामलों में 2003 में अभियोजन शुरू किया:
- घूस मामला (CC No. 42/2003) – ₹1 लाख की रिश्वत लेने का आरोप।
- आय से अधिक संपत्ति (CC No. 92/2003) – ज्ञात आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप।
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दोनों मामलों में उन्हें दोषी ठहराया गया था, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने 2014 में उनकी सजा और दोष सिद्धि पर रोक लगा दी थी। इसी बीच, विभागीय जांच शुरू हुई और दो चार्जशीट 27.05.2006 व 01.12.2008 को जारी की गईं।
शंकरप्पा ने विभागीय जांच को बार-बार चुनौती दी। उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), बेंगलुरु में छह याचिकाएं दायर कीं ताकि जांच रोकी जा सके।
बाद में उन्होंने OA No. 170/00457/2021 दायर की, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि चार्जशीट अमान्य है क्योंकि इसे उस अधिकारी (जनरल मैनेजर) ने जारी किया था जो मेजर पेनल्टी देने के लिए अधिकृत नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 2014 के फैसले Union of India vs. B.V. Gopinath का हवाला दिया।
“चार्जशीट वैध नहीं है क्योंकि इसे नियुक्ति प्राधिकारी की स्वीकृति के बिना जारी किया गया।” — OA No. 170/00457/2021 से उद्धरण
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हालांकि, CAT ने उनकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि मामूली सजा देने वाला अधिकारी भी नियम 14 के तहत चार्जशीट जारी कर सकता है। इसके विपरीत, हाईकोर्ट ने CAT के फैसले को पलटते हुए Gopinath केस के आधार पर चार्जशीट को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने CAT के फैसले को बहाल कर दिया।
“माइनर पेनल्टी देने का अधिकार रखने वाला अधिकारी भी मेजर पेनल्टी के लिए विभागीय कार्यवाही शुरू कर सकता है।” — सुप्रीम कोर्ट की पीठ
- CCS CCA नियम 13(2) के तहत, ऐसा अधिकारी जो केवल मामूली सजा देने के लिए अधिकृत है, वह भी गंभीर सजा की कार्रवाई शुरू कर सकता है।
- जनरल मैनेजर (टेलीकॉम) ने अपने विधिक अधिकारों के तहत चार्जशीट जारी की थी।
- Gopinath केस को गलत तरीके से लागू किया गया क्योंकि वह मामला वित्त मंत्रालय के एक विशेष कार्यालय आदेश से जुड़ा था, जो इस मामले पर लागू नहीं होता।
“DOT में कोई ऐसा कार्यालय आदेश नहीं है, और कानून में भी मेम्बर टेलीकॉम कमीशन की स्वीकृति की कोई आवश्यकता नहीं है।” — सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या
सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए:
- कर्नाटक हाईकोर्ट का 18.11.2022 का आदेश रद्द कर दिया।
- 27.05.2006 और 01.12.2008 की चार्जशीट को वैध माना।
- CAT के निर्णय को सही ठहराया, जिसमें शंकरप्पा की याचिका खारिज कर दी गई थी।
मामला: भारत संघ एवं अन्य बनाम आर. शंकरप्पा
(विशेष अनुमति याचिका (सिविल) संख्या 7149/2023 से उत्पन्न सिविल अपील)