मध्य प्रदेश सरकार द्वारा अपील दाखिल करने में अत्यधिक देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने राज्य के विधि सचिव (Law Secretary) को निर्देश दिया है कि वे उपस्थित होकर यह स्पष्ट करें कि इतने विलंब से याचिका दाखिल करने का निर्णय किसके द्वारा लिया गया था।
पृष्ठभूमि
यह मामला गोकुलचंद बनाम मध्य प्रदेश सरकार से संबंधित है, जिसमें राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।
- राज्य ने दूसरी अपील (Second Appeal) दायर करने में 656 दिनों की देरी की थी।
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस अत्यधिक देरी का कोई वैध कारण न पाते हुए अपील को खारिज कर दिया था।
- इसके बाद, राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition - SLP) दायर की, लेकिन यहाँ भी 177 दिनों की अतिरिक्त देरी हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 31 जनवरी 2025 को की और इस दौरान यह स्पष्ट किया कि:
"हम मध्य प्रदेश राज्य की हिम्मत की सराहना करते हैं कि वे लगातार 300/400 दिनों की देरी से विशेष अनुमति याचिकाएँ दाखिल कर रहे हैं।"
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिका को देरी के आधार पर खारिज किया जा सकता था, लेकिन न्यायालय यह जानना चाहता है कि:
"अंततः यह निर्णय कौन लेता है कि उच्च न्यायालय का आदेश सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने योग्य है?"
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि मध्य प्रदेश राज्य के विधि सचिव 14 फरवरी 2025 को अदालत में उपस्थित हों और वे सभी मूल फाइलें (Original Files) साथ लाएँ, जिनमें यह निर्णय लिया गया था कि इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाए।
"हम यह जानना चाहते हैं कि वह कौन अधिकारी है जिसने यह निर्णय लिया कि उच्च न्यायालय का आदेश सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने योग्य है।"
यह मामला केवल एक अपवाद नहीं है। इससे पहले भी, दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे उन सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही तय करें, जो अनावश्यक देरी से अपीलें दाखिल कर सरकारी धन और संसाधनों की बर्बादी करते हैं।
यह मामला अब 14 फरवरी 2025 को दोबारा सुना जाएगा, जिसमें विधि सचिव को अदालत में उपस्थित होना होगा और पूरी जानकारी प्रस्तुत करनी होगी।