घरेलू विवाद में ससुराल पक्ष पर दर्ज मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किया रद्द, कहा- आरोप अस्पष्ट और कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं

By Shivam Y. • October 19, 2025

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दहेज से जुड़े घरेलू विवाद में ससुराल वालों के खिलाफ जारी समन को रद्द कर दिया, आरोपों को अस्पष्ट और विशिष्ट साक्ष्यों से समर्थित नहीं बताया। - श्रीमती हीरावती एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

पति-पत्नी के बीच चले लंबे विवाद से शुरू हुए इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए महिला के माता-पिता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति विक्र्रम डी. चौहान ने 17 अक्टूबर 2025 को यह फैसला सुनाया, जिससे श्रीमती हीरावती और उनके पति को बड़ी राहत मिली, जिन्हें निचली अदालत ने उनके दामाद को गाली देने और धमकाने के आरोप में तलब किया था।

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पृष्ठभूमि

यह मामला ग्यानेंद्र शर्मा और उनकी पत्नी प्रतिभा नंदा के बीच वैवाहिक विवाद से उत्पन्न हुआ। दोनों का विवाह फरवरी 2019 में हुआ था, लेकिन कुछ ही महीनों में संबंध बिगड़ गए। अप्रैल 2021 में पत्नी अपने ससुराल से बिना बताए अपना सामान लेकर मायके चली गई।

कुछ दिनों बाद पति ने आरोप लगाया कि उसकी सास-ससुर - हीरावती और उनके पति - चार अन्य लोगों के साथ उसके घर पहुंचे, गाली-गलौज की, घर का सामान तोड़ा और धमकी दी कि अगर वह पत्नी को वापस लेने आया तो उसे जान से मार देंगे। इस शिकायत पर 7 जनवरी 2022 को विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, इलाहाबाद ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 504 (जानबूझकर अपमान) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत तलब आदेश जारी किया।

हालांकि, पत्नी की ओर से पूरी तरह अलग कहानी सामने आई। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रतिभा को ₹5 लाख और चार पहियों वाली गाड़ी की दहेज मांग को लेकर प्रताड़ित किया गया, और अंततः उसे घर से निकाल दिया गया। इसके बाद उसने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ धारा 498A, 406, 323, 504, 506 IPC और दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें पुलिस ने जांच के बाद चार्जशीट दाखिल कर दी।

अदालत के अवलोकन

न्यायमूर्ति चौहान ने पाया कि निचली अदालत ने बिना पर्याप्त कानूनी आधार के ससुराल पक्ष को तलब किया था। धारा 504 IPC का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि शिकायत में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि ऐसा कौन-सा शब्द या कार्य था जिसे "जानबूझकर अपमान" माना जा सके जो शांति भंग का कारण बने।

“शिकायतकर्ता ने केवल इतना कहा कि अभियुक्तों ने उसे गाली दी, लेकिन कौन-से शब्द कहे गए यह नहीं बताया गया। आरोप अस्पष्ट हैं और आवश्यक विवरण का अभाव है,” न्यायमूर्ति चौहान ने टिप्पणी की।

धारा 506 IPC के तहत आपराधिक धमकी के आरोप पर अदालत ने यह देखा कि क्या वास्तव में कोई ठोस धमकी दी गई थी। शिकायत में केवल इतना कहा गया था कि सास-ससुर और चार अज्ञात व्यक्तियों ने धमकी दी कि अगर शिकायतकर्ता पत्नी को लेने आया तो उसे मार दिया जाएगा। लेकिन फिर भी, किसने क्या कहा या कैसे कहा, यह स्पष्ट नहीं था।

“शिकायत या मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान में यह नहीं बताया गया कि किस व्यक्ति ने जान से मारने की धमकी दी। इस तरह के सामान्य और अस्पष्ट आरोप धारा 506 IPC की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते,” न्यायमूर्ति चौहान ने कहा।

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि यह मामला परिवार के भीतर के विवाद से जुड़ा है। शिकायतकर्ता और अभियुक्त रिश्तेदार हैं और पति-पत्नी के बीच चल रहे वैवाहिक तनाव का परिणाम यह मुकदमा है। ऐसे मामलों में अदालतों को देखना चाहिए कि कहीं आपराधिक मुकदमेबाजी प्रतिशोध या उत्पीड़न का साधन तो नहीं बन रही है।

फैसला

अदालत ने पाया कि न तो अपमान का और न ही धमकी का कोई ठोस साक्ष्य है, इसलिए निचली अदालत ने अभियुक्तों को तलब करने में गलती की।

न्यायमूर्ति चौहान ने स्पष्ट शब्दों में आदेश दिया-

“दिनांक 7.1.2022 को विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, इलाहाबाद द्वारा पारित तलब आदेश तथा वाद संख्या 745/2021 की समस्त कार्यवाही रद्द की जाती है।”

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दाखिल यह आवेदन - जो अदालत को न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने का अधिकार देता है - पूरी तरह स्वीकार किया गया।

इस आदेश के साथ, श्रीमती हीरावती और उनके पति के खिलाफ दर्ज मामला अब समाप्त हो गया है। अदालत ने दोहराया कि अस्पष्ट और बिना विशिष्ट आरोपों वाले मामलों में आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

Case Title: Smt. Heerawati and Another vs State of U.P. and Another

Case Number: Application under Section 482 No. 17331 of 2023

Counsel for Applicants:

  • Sri Ganesh Shankar Srivastava
  • Sri Vinod Kumar Maurya

Counsel for Opposite Parties:

  • Sri Deo Prakash Singh (Government Advocate)
  • Sri Krishna Kumar Shukla

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