मुस्लिम उत्तराधिकार कानून के तहत संपत्ति अधिकारों को स्पष्ट करने वाले एक अहम फैसले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ज़ोहरबी और एक अन्य पक्ष द्वारा दायर अपीलों को खारिज करते हुए यह दोहराया कि सेल एग्रीमेंट (बिक्री समझौता) तब तक स्वामित्व हस्तांतरित नहीं करता जब तक कि पंजीकृत बिक्री विलेख (सेल डीड) निष्पादित न हो जाए। यह मामला चंद्र खान की मृत्यु के बाद छोड़ी गई भूमि को लेकर था, जिनकी संतान नहीं थी, जिससे उनकी विधवा और भाई के बीच संपत्ति विवाद शुरू हुआ।
पृष्ठभूमि
मुकदमा चंद्र खान की मृत्यु के बाद शुरू हुआ, जिन्होंने औरंगाबाद में गुट नंबर 107 और 126 की सर्वे नंबर 22/3 और 22/1 वाली दो जमीनें छोड़ी थीं। उनकी विधवा ज़ोहरबी ने मुस्लिम कानून के अनुसार संपत्ति का तीन-चौथाई हिस्सा अपने नाम बताया, यह कहते हुए कि चंद्र खान की कोई संतान नहीं थी, इसलिए केवल एक-चौथाई हिस्सा उनके भाई इमाम खान का होगा।
हालाँकि, इमाम खान का कहना था कि विवादित जमीन चंद्र खान के जीवनकाल में ही 1999 में सेल एग्रीमेंट के माध्यम से तीसरे पक्षों को बेच दी गई थी। उनका यह भी तर्क था कि जमीन का एक अन्य हिस्सा एक चौथे व्यक्ति, अय्यूब खान, को बेचा जा चुका है, इसलिए अब बाँटने के लिए कुछ नहीं बचा।
सिविल अदालत ने इमाम खान के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन अपीलीय अदालत ने इसे पलटते हुए कहा कि सेल एग्रीमेंट स्वामित्व नहीं देता। इसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट, औरंगाबाद पीठ ने भी वही रुख अपनाया। यह मामला अंततः सुप्रीम कोर्ट पहुँचा।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति संजय कौल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र की पीठ ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या सेल एग्रीमेंट से कोई संपत्ति उत्तराधिकार से बाहर की जा सकती है। अदालत ने सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा (2012) मामले का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि अचल संपत्ति का विक्रय केवल पंजीकृत बिक्री विलेख के माध्यम से ही हो सकता है।
अदालत ने दोहराया, “सेल एग्रीमेंट से किसी व्यक्ति को कोई अधिकार नहीं मिलता और न ही उसमें स्वामित्व का कोई अंश निहित होता है,” यह जोड़ते हुए कि स्वामित्व केवल रजिस्टर्ड कंवेयेंस डीड के निष्पादन के बाद ही स्थानांतरित होता है।
अदालत ने मत्रुका शब्द का अर्थ भी समझाया- यानी मृत मुस्लिम द्वारा छोड़ी गई संपत्ति और जमील अहमद बनाम Vth ADJ, मुरादाबाद (2001) का हवाला देते हुए कहा कि चंद्र खान द्वारा छोड़ी गई पूरी संपत्ति मत्रुका संपत्ति है क्योंकि उनके जीवनकाल में कोई वैध बिक्री नहीं हुई थी।
न्यायमूर्ति कौल ने कुरआन (सूरा 4, आयत 12) और मुल्ला के मुस्लिम लॉ के सिद्धांतों का हवाला देते हुए बताया कि बिना संतान वाले मृत मुस्लिम की पत्नी को उसकी संपत्ति में एक-चौथाई हिस्सा मिलता है।
पीठ ने कहा कि सिविल अदालत ने “स्पष्ट रूप से गलती की” जब उसने अधूरी बिक्री के आधार पर कुछ संपत्तियों को उत्तराधिकार से बाहर माना। अदालत ने यह भी कहा कि nemo dat quod non habet का सिद्धांत लागू होता है - यानी “कोई व्यक्ति उससे बेहतर शीर्षक स्थानांतरित नहीं कर सकता जितना उसके पास स्वयं है।”
दिलचस्प रूप से, न्यायाधीशों ने निचली अदालत के मराठी फैसले के खराब अंग्रेज़ी अनुवाद पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि “कानूनी मामलों में हर शब्द और हर कॉमा मायने रखता है,” और भविष्य में सटीक अनुवाद की आवश्यकता पर बल दिया।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलीय अदालत और हाईकोर्ट दोनों ने कानून की सही व्याख्या की है। इसलिए, अपीलों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि चंद्र खान की सारी संपत्ति को मत्रुका संपत्ति मानकर मुस्लिम उत्तराधिकार कानून के अनुसार बाँटा जाएगा।
पीठ ने कहा, “विवादित संपत्ति निस्संदेह मत्रुका संपत्ति है और इसे चंद्र खान के उत्तराधिकारियों में निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार बाँटना होगा।”
अदालत ने किसी भी प्रकार की लागत (कॉस्ट) नहीं लगाई।
Case Title: Zoharbee & Anr. v. Imam Khan (D) through LRs & Ors.
Citation: 2025 INSC 1245 | Civil Appeal Nos. 4517–4518 of 2023
Date of Judgment: October 16, 2025