इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा को कड़ी फटकार लगाते हुए एक महिला कर्मचारी की चौथी बार की गई बर्खास्तगी को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कार्रवाई पक्षपात और दुर्भावना से प्रेरित थी। न्यायालय ने आदेश दिया कि स्मिता मीना सिंह को तुरंत स्टाफ ऑफिसर (कुलपति) के पद पर बहाल किया जाए।
पृष्ठभूमि
मीना सिंह वर्ष 2010 में निजी सचिव के रूप में विश्वविद्यालय से जुड़ी थीं। लंबे समय तक उनकी कार्यप्रणाली को "उत्कृष्ट" दर्जा मिला और बाद में उन्हें पदोन्नति भी मिली। लेकिन 2020 में, जब उन्होंने तत्कालीन रजिस्ट्रार एस.एन. तिवारी के खिलाफ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न की शिकायत की, तभी से विवाद शुरू हुआ।
इसके बाद उनके खिलाफ कई जांच समितियाँ बनाई गईं, निलंबन किया गया और लगातार चार बार सेवाएँ समाप्त करने का आदेश जारी हुआ। हर बार उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और न्यायालय ने या तो आदेश रद्द किया या नई सुनवाई कराने के निर्देश दिए। बावजूद इसके विश्वविद्यालय प्रशासन ने कार्रवाई जारी रखी।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने सख्त शब्दों में कहा,
"यह अदालत बाध्य है यह कहने के लिए कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही पूर्णत: दुर्भावना से की गई। यह न तो न्यायसंगत है और न ही कानूनी।"
कोर्ट ने साफ़ किया कि मीना सिंह द्वारा नाम के आगे डॉ. लिख देने या यह बताने भर से कि वे पीएचडी कर रही हैं, इसे कदाचार नहीं माना जा सकता।
"भले ही यह मान लिया जाए कि उन्होंने ऐसा लिखा था, यह अकेले अपने आप में अनुशासनहीनता नहीं ठहराया जा सकता," आदेश में दर्ज हुआ।
न्यायालय ने यह भी कहा कि पहले दिए गए आदेशों की अनदेखी कर विश्वविद्यालय बार–बार नई जांच बैठा रहा था, जिससे साफ़ हो गया कि उद्देश्य केवल कर्मचारी को दंडित करना था।
निर्णय
रिकॉर्ड की जाँच के बाद हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय के 14.12.2024 वाले बर्खास्तगी आदेश को खारिज कर दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि मीना सिंह को तुरंत स्टाफ ऑफिसर (कुलपति) के पद पर बहाल किया जाए।
अदालत ने अंत में कहा, "उपरोक्त निर्देशों के साथ, याचिका स्वीकार की जाती है।"
इस तरह पाँच साल से चली आ रही लंबी कानूनी लड़ाई में आखिरकार याचिकाकर्ता को राहत मिली।
केस का शीर्षक: श्रीमती मीना सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 3 अन्य
केस संख्या: Writ - A No. 3471 of 2025