दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंतर-राज्यीय बाल तस्करी मामले में दो महिलाओं की जमानत रद्द की, निचली अदालत के आदेशों को "यांत्रिक और कानून की दृष्टि से अस्थाई" बताया

By Shivam Y. • November 4, 2025

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंतर्राज्यीय बाल तस्करी मामले में दो महिलाओं की ज़मानत रद्द कर दी, निचली अदालत के आदेश को यांत्रिक बताया और शीघ्र सुनवाई का आग्रह किया। - राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) बनाम बिमला और राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) बनाम पूजा

दिल्ली हाईकोर्ट में सोमवार को एक ऐसा मामला सामने आया जिसने अदालत की दीवारों में सन्नाटा फैला दिया। न्यायमूर्ति अजय दिगपाल ने दो महिलाओं बिमला और पूजा को दी गई जमानत रद्द कर दी, जिन्हें दिल्ली, राजस्थान और गुजरात में फैले एक बड़े शिशु तस्करी नेटवर्क का हिस्सा बताया गया था। अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने “यांत्रिक ढंग से” जमानत दी थी और अपराध की गंभीरता व समाज पर इसके प्रभाव की अनदेखी की गई थी।

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पृष्ठभूमि

यह मामला अप्रैल 2025 में उत्तम नगर थाना में दर्ज एक एफआईआर से जुड़ा है, जब पुलिस ने एक गुप्त सूचना पर कार्रवाई करते हुए एक पाँच दिन के नवजात शिशु को तस्करी गिरोह से छुड़ाया था। जांच में सामने आया कि नवजात शिशुओं को ₹1 से ₹1.5 लाख में खरीदा-बेचा जा रहा था।

बिमला और पूजा समेत कई अन्य आरोपियों पर आरोप था कि वे इन शिशुओं को खरीदने और वितरित करने में शामिल थीं। अभियोजन पक्ष के अनुसार, पूजा नेटवर्क की प्रमुख समन्वयक थी जो पैसों और डिलीवरी की व्यवस्था करती थी, जबकि बिमला खरीदार की भूमिका निभा रही थी। दोनों को निचली अदालत ने जमानत दी थी बिमला को 22 जुलाई और पूजा को 30 जुलाई 2025 को।

राज्य सरकार ने इन आदेशों को चुनौती देते हुए कहा कि आरोपी इस संगठित अपराध में केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं और उनका अपराध समाज की नैतिकता और नवजातों के अधिकारों के लिए गंभीर खतरा है।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने जांच में मिले साक्ष्यों व्हाट्सऐप चैट्स, वित्तीय लेनदेन और गवाहों के बयानों पर ध्यान दिया और कहा कि ये एक “संगठित और लाभ-प्रेरित शिशु तस्करी” की ओर इशारा करते हैं।

न्यायमूर्ति दिगपाल ने कहा,

“निचली अदालत ने अपराध की प्रकृति, गंभीरता और गवाहों पर दबाव डालने की वास्तविक संभावना पर पर्याप्त विचार नहीं किया।” उन्होंने जोड़ा कि आरोपपत्र दायर हो जाने के आधार पर जमानत देना “ऐसे गंभीर अपराध में पर्याप्त नहीं” है।

सुप्रीम कोर्ट के अशोक धनकड़ बनाम राज्य (दिल्ली एनसीटी) और पिंकी बनाम राज्य उत्तर प्रदेश जैसे मामलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे गंभीर सामाजिक अपराधों में जमानत देते समय अत्यधिक सतर्कता आवश्यक है।

अदालत ने टिप्पणी की, “स्वतंत्रता पवित्र है, परंतु जब अपराध राष्ट्र के नैतिक ढांचे को हिला देता है, तब उसे समाज की सामूहिक अंतरात्मा से ऊपर नहीं रखा जा सकता।”

न्यायमूर्ति ने यह भी उल्लेख किया कि दोनों महिलाओं ने अपने मोबाइल फोन नष्ट कर दिए ताकि डिजिटल साक्ष्य मिटाया जा सके, और वे अन्य आरोपियों के साथ लगातार संपर्क में थीं।

निर्णय

अदालत ने पाया कि निचली अदालत के आदेश “मनमाने और अस्थिर” हैं। न्यायमूर्ति दिगपाल ने कहा,

“नवजात शिशुओं के वस्तुकरण से जुड़ा यह अपराध न्यायिक जांच के उच्चतम स्तर की मांग करता है।”

इसलिए, दिल्ली हाईकोर्ट ने बिमला और पूजा की जमानत रद्द करते हुए उन्हें सात दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि यदि वे ऐसा नहीं करतीं, तो निचली अदालत उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करे। साथ ही, अदालत ने ट्रायल कोर्ट को त्वरित सुनवाई करने के निर्देश दिए, यह कहते हुए कि अपराध की गंभीरता और इसका अंतरराज्यीय स्वरूप “न्याय के त्वरित निष्पादन” की मांग करता है।

आदेश सुनते ही अदालत कक्ष में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया-जैसे न्यायालय ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया हो कि नवजातों के खिलाफ अपराध किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।

Case Title: State (NCT of Delhi) vs. Bimla and State (NCT of Delhi) vs. Pooja

Case Numbers:

  • CRL.M.C. 6327/2025 (State vs. Bimla)
  • CRL.M.C. 6328/2025 (State vs. Pooja)

Date of Judgment: November 3, 2025

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