दिल्ली हाईकोर्ट ने दुबई में रहने वाले एनआरआई अरविंद भटनागर की याचिका खारिज कर दी है, जिन्होंने अपनी पत्नी नीति भटनागर द्वारा दर्ज 2005 की दहेज उत्पीड़न और आपराधिक विश्वासघात की एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने 29 अक्टूबर, 2025 को सुनाए गए अपने फैसले में कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने का कोई वैध आधार नहीं है, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच हुआ समझौता कभी लागू नहीं हुआ और आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हो सकी।
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पृष्ठभूमि
अरविंद और नीति की शादी 1991 में लखनऊ में हुई थी और उनके दो बच्चे हैं - निहारिका और निलय। वर्ष 2005 तक उनके संबंध बिगड़ गए और नीति ने नई दिल्ली के तुगलक रोड थाने में दहेज उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद एफआईआर संख्या 182/2005 धारा 498A और 406 आईपीसी के तहत दर्ज की गई।
मामला वर्षों तक चलता रहा। जहां अरविंद की मां को 2017 में बरी कर दिया गया और उनके पिता की मृत्यु मुकदमे के दौरान हो गई, वहीं पति के खिलाफ मुकदमा जारी रहा। 2018 में दोनों पक्षों ने सुलह का रास्ता अपनाया - अरविंद ने कुल ₹35 लाख का भुगतान करने पर सहमति जताई, साथ ही गहनों और अन्य वस्तुओं के लिए अतिरिक्त मुआवजा देने की भी बात मानी।
दोनों ने जोधपुर पारिवारिक न्यायालय में आपसी सहमति से तलाक की याचिका भी दायर की, और अरविंद ने नीति और अपने बच्चों के नाम पर ₹30 लाख की सावधि जमा राशि (एफडीआर) जमा कराई, यह वादा करते हुए कि तलाक का आदेश मिलने के बाद शेष ₹7 लाख दे देगा। लेकिन आगे चलकर तलाक की अर्जी गैर-हाजिरी के कारण खारिज कर दी गई, क्योंकि अरविंद आगे की सुनवाईयों में उपस्थित नहीं हुए।
अदालत के अवलोकन
हाईकोर्ट ने पति के आचरण पर नाराज़गी जताई। न्यायमूर्ति कृष्णा ने टिप्पणी की कि अरविंद “पहली मोशन के बाद पारिवारिक न्यायालय में उपस्थित होने में विफल रहे” और अपनी अनुपस्थिति का कोई ठोस कारण प्रस्तुत नहीं किया। महामारी को कारण बताने के बावजूद अदालत ने इसे “असत्यापित और अपर्याप्त” माना, यह इंगित करते हुए कि प्रतिबंध हटने के बाद भी याचिकाकर्ता ने समय पर मामला बहाल कराने का कोई प्रयास नहीं किया।
न्यायपीठ ने यह भी कहा,
“ऐसा कुछ नहीं दर्शाया गया है जिससे यह लगे कि समझौते को याचिकाकर्ता ने लागू किया। केवल कुछ राशि जमा कर देना, जो कभी जारी ही नहीं हुई, पालन नहीं माना जा सकता।”
अदालत ने यह भी दर्ज किया कि नीति भटनागर ने एफआईआर रद्द करने का विरोध किया था और कहा कि उनके पति ने भुगतान की शर्तों का उल्लंघन किया तथा उन्हें अपनी बेटी की शादी के लिए स्वयं खर्च उठाना पड़ा क्योंकि अरविंद ने कोई आर्थिक सहायता नहीं दी। न्यायाधीश ने कहा कि पति का यह दावा कि वह निपटारा करने को तैयार है, खोखला प्रतीत होता है क्योंकि न तो उन्होंने तलाक की प्रक्रिया पूरी की और न ही पत्नी और बच्चों को राशि दिलवाई।
निर्णय
मामले का निपटारा करते हुए न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि 2018 का समझौता कभी लागू नहीं हुआ और केवल असफल समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती।
“याचिका गुणहीन पाई गई और खारिज की जाती है,” अदालत ने कहा, यह स्पष्ट करते हुए कि पति द्वारा समझौते की शर्तों का पालन न करना और जोधपुर पारिवारिक न्यायालय में अनुपस्थिति ही तलाक की अर्जी के खारिज होने और अंततः समझौते के निष्फल होने का कारण बनी।
इस आदेश के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि धारा 498A और 406 आईपीसी के तहत आपराधिक मामला अब भी दिल्ली की निचली अदालत में जारी रहेगा।
इस फैसले के साथ दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया कि टूटा हुआ समझौता आपराधिक कार्यवाही रद्द करने का आधार नहीं बन सकता, विशेषकर वैवाहिक विवादों में जहाँ दहेज उत्पीड़न के आरोप हों। यह निर्णय इस बात की याद दिलाता है कि आपसी सहमति से तलाक और आपराधिक मामलों की समाप्ति, दोनों के लिए वास्तविक अनुपालन जरूरी है, केवल नीयत काफी नहीं।
Case Title: Arvind Bhatnagar vs. State (Govt. of NCT of Delhi) & Anr.