एक महत्वपूर्ण संपत्ति विवाद में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए पहले अपीलीय अदालत का वह निर्णय बहाल कर दिया है, जिसमें विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) का आदेश अन्नामलाई के पक्ष में दिया गया था। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने तथ्यात्मक निष्कर्षों में हस्तक्षेप कर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया। अदालत ने स्पष्ट किया कि विवादित अनुबंध वैध और लागू करने योग्य था।
पृष्ठभूमि
यह कानूनी लड़ाई वर्ष 2010 में शुरू हुई, जब अन्नामलाई ने 8 जनवरी 2010 को किए गए बिक्री समझौते के प्रवर्तन के लिए वाद दायर किया। यह समझौता दो भूखंडों से संबंधित था, जो मूल रूप से पोनुसामी और सेल्वी के स्वामित्व में थे। इनकी ओर से पावर ऑफ अटॉर्नी धारकों - सरस्वती (प्रतिवादी-1) और अन्नामलाई - ने दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए थे।
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विवाद तब शुरू हुआ जब सरस्वती और उनके पुत्र धर्मलिंगम (प्रतिवादी-2) ने बिक्री विलेख निष्पादित करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय भूमि का एक हिस्सा वसंथी (प्रतिवादी-3), जो सरस्वती की बेटी है, को बेच दिया।
निचली अदालत ने अन्नामलाई के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि समझौता वास्तव में ऋण सुरक्षा का दस्तावेज़ था। लेकिन पहली अपीलीय अदालत ने इस निष्कर्ष को पलटते हुए कहा कि यह एक वास्तविक बिक्री समझौता था और अन्नामलाई को विशिष्ट निष्पादन का अधिकार दिया। बाद में 2018 में मद्रास उच्च न्यायालय ने उस निर्णय को पलटते हुए अग्रिम राशि की वापसी का निर्देश दिया।
न्यायालय के अवलोकन
अन्नामलाई की अपील सुनते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 100 के तहत उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप अनुचित था। न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने टिप्पणी की, “एक बार जब ₹1.95 लाख की रसीद पर हस्ताक्षर स्वीकार कर लिए जाते हैं, तो यह मान लिया जाता है कि वह भुगतान वैध विचार के तहत किया गया है।”
पीठ ने यह भी माना कि अन्नामलाई ने कुल ₹6.75 लाख में से ₹6.65 लाख पहले ही चुका दिए थे और शेष ₹10,000 का भुगतान करने के लिए तैयार था। अदालत ने कहा, “जब 90 प्रतिशत राशि पहले ही दी जा चुकी है और विक्रेता समय सीमा बीतने के बाद भी अतिरिक्त भुगतान स्वीकार करता है, तो देरी या असमर्थता की दलील नहीं चल सकती।”
अदालत ने यह भी कहा कि समय सीमा के बाद अतिरिक्त भुगतान स्वीकार करने से विक्रेताओं ने अनुबंध को लागू मान लिया और उसे समाप्त करने के अपने अधिकार को त्याग दिया।
जहां तक यह सवाल था कि क्या बिना घोषणा मांगे वाद बनाए रखा जा सकता है, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि अनुबंध समाप्त करना विक्रेताओं की ओर से अवैध और अनुबंध की शर्तों के विपरीत था, इसलिए घोषणात्मक राहत (declaratory relief) की आवश्यकता नहीं थी।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अन्नामलाई की अपील स्वीकार करते हुए पहली अपीलीय अदालत के फैसले को बहाल कर दिया और बिक्री समझौते को लागू करने का आदेश दिया। अदालत ने अन्नामलाई को निर्देश दिया कि वह ₹10,000 की शेष राशि एक महीने के भीतर निष्पादन न्यायालय में जमा करे।
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पीठ ने कहा, “यह ऐसा मामला नहीं था जिसमें विशिष्ट निष्पादन से इनकार किया जाना चाहिए था, विशेषकर जब वादी ने बिक्री मूल्य का 90 प्रतिशत से अधिक भुगतान कर दिया था और प्रतिवादियों ने दुर्भावनापूर्ण आचरण किया था।”
अदालत ने दोनों पक्षों को अपने-अपने खर्च स्वयं वहन करने के निर्देश दिए।
Case: Annamalai vs Vasanthi & Others (Supreme Court of India, 2025)
Case Type: Civil Appeal (arising out of SLP (C) Nos. 26848–26849 of 2018)
Citation: 2025 INSC 1267
Court: Supreme Court of India, Civil Appellate Jurisdiction
Bench: Justice J.B. Pardiwala and Justice Manoj Misra
Date of Judgment: October 29, 2025










