एक सख्त टिप्पणी वाले फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 25 सितंबर 2025 को पवन कुमार की तुरंत रिहाई का आदेश दिया, जो लगभग आठ साल से नैनी सेंट्रल जेल में बंद था, जबकि बाद में उसे किशोर घोषित किया गया था। न्यायमूर्ति सलील कुमार राय और न्यायमूर्ति संदीप जैन की खंडपीठ ने कहा कि युवक की हिरासत “स्पष्ट रूप से अवैध” थी, जब एक बार उसका किशोर होने का दावा उठाया गया।
पृष्ठभूमि
यह मामला अप्रैल 2017 का है, जब पवन कुमार को अपने परिवार के साथ गिरफ्तार किया गया था, उस पर आरोप था कि उसने अपने बड़े भाई की हत्या की है। पुलिस ने थाना थरवई, इलाहाबाद में उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज किया।
मई 2017 में चार्जशीट दाखिल की गई और मामला सत्र न्यायालय में भेजा गया। मुकदमे के दौरान, पवन ने दावा किया कि अपराध के समय वह नाबालिग था और उसकी जन्मतिथि 13 दिसंबर 2002 है। प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने भी विद्यालय के स्कॉलर रजिस्टर के आधार पर यह पुष्टि की कि अपराध की तिथि पर पवन मात्र 14 वर्ष, 3 माह और 19 दिन का था।
इसके बाद किशोर न्याय बोर्ड (JJB) ने 15 मई 2025 को आदेश पारित कर पवन को किशोर घोषित कर दिया। बावजूद इसके, यह आदेश ट्रायल कोर्ट और जेल प्रशासन को भेजे जाने के बाद भी पवन जेल में ही बंद रहा - इसी पर एक समाजसेविका की ओर से उसकी रिहाई के लिए हेबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की गई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
पीठ ने यह जांच की कि क्या हेबियस कॉर्पस याचिका तब भी स्वीकार की जा सकती है जब हिरासत किसी न्यायिक आदेश पर आधारित हो। सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण फैसलों - मनुभाई रतीलाल पटेल बनाम गुजरात राज्य और कानू सन्याल बनाम जिला मजिस्ट्रेट, दार्जिलिंग - का हवाला देते हुए न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि यदि कोई न्यायिक हिरासत “अवैध या अधिकार क्षेत्र से परे” हो जाती है तो उस पर भी अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।
"हिरासत की वैधता," अदालत ने कहा, "याचिका दाखिल करने की तारीख के आधार पर आंकी जाती है, न कि प्रारंभिक गिरफ्तारी के समय।"
न्यायाधीशों ने कहा कि जैसे ही पवन ने किशोरता का दावा किया, किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 9(4) के तहत उसकी जेल में निरंतर कैद निषिद्ध हो गई। “कानून के तहत किसी बच्चे को जेल में नहीं रखा जा सकता,” न्यायमूर्ति राय ने टिप्पणी की, “चाहे उसकी उम्र का निर्धारण चल रहा हो या उसे किशोर घोषित किया जा चुका हो, सिवाय उन सीमित परिस्थितियों के जो अधिनियम में वर्णित हैं।”
पीठ ने यह भी पाया कि ट्रायल कोर्ट ने धारा 9(2) के तहत आवश्यक उम्र निर्धारण किए बिना “यांत्रिक रूप से” मामला बोर्ड को भेज दिया, जिससे बोर्ड ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश पारित किया। इन त्रुटियों के बावजूद, न्यायालय ने माना कि वर्तमान हिरासत असंवैधानिक और अस्थायी रूप से अवैध थी।
न्यायालय का निर्णय
हिरासत को “अवैध और असंवैधानिक” घोषित करते हुए, हाईकोर्ट ने पवन कुमार की तुरंत रिहाई का आदेश दिया। आदेश में कहा गया, “जेल अधीक्षक, नैनी सेंट्रल जेल, प्रयागराज को निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ता को तुरंत रिहा करें।”
साथ ही, न्यायालय ने प्रयागराज के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वे पवन को ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत कराएं, ताकि अदालत किशोर न्याय अधिनियम की धारा 9(2) के तहत उसकी उम्र का सही निर्धारण कर सके।
यदि यह पाया जाता है कि अपराध के समय पवन नाबालिग था, तो उसे किशोर न्याय बोर्ड को सौंपा जाएगा, जो अधिनियम की धाराओं 14, 15 और 18 के तहत आगे की कार्यवाही करेगा। वहीं, यदि वह उस समय बालिग पाया जाता है, तो मामला सामान्य आपराधिक प्रक्रिया के अनुसार चलेगा।
इस फैसले ने अदालतों और सुधारात्मक संस्थानों की जिम्मेदारी पर भी जोर दिया। न्यायालय के शब्दों में,
“किसी बच्चे की स्वतंत्रता को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के विपरीत छीना नहीं जा सकता। ऐसी हिरासत अनुच्छेद 21 के मूल भाव पर प्रहार करती है।”
Case Title: Pawan Kumar (Corpus) & Another vs. State of Uttar Pradesh & Others
Case Number: HABC No. 497 of 2025
Petitioner's Counsel: In Person, Mohd. Salman, Nazia Nafees
Respondent's Counsel: Government Advocate (G.A.)










