दिल्ली हाई कोर्ट ने आपसी समझौते के बाद 498A/406/34 IPC केस में FIR रद्द की

By Shivam Yadav • August 5, 2025

दिल्ली हाई कोर्ट ने धारा 498A/406/34 आईपीसी के तहत दर्ज एफआईआर नंबर 469/2023 को रद्द कर दिया, जब शिकायतकर्ता और आरोपियों ने आपसी समझौता कर लिया। न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने 2 लाख रुपये के समझौते और तलाक डिक्री को देखते हुए यह फैसला सुनाया।

एक महत्वपूर्ण फैसले में, दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता), 406 (आपराधिक विश्वासभंग) और 34 (साझा इरादा) के तहत दर्ज एक एफआईआर को रद्द कर दिया। यह फैसला तब आया जब शिकायतकर्ता और आरोपियों ने आपसी समझौता कर लिया और अपने विवादों को अदालत के बाहर सुलझा लिया।

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मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले, CRL.M.C. 2724/2025 में, याचिकाकर्ता राज कुमार और अन्य ने अमर कॉलोनी पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर नंबर 469/2023 को रद्द करने की मांग की थी। शिकायतकर्ता, उत्तरदाता नंबर 2, ने याचिकाकर्ताओं पर वैवाहिक क्रूरता और विश्वासभंग से जुड़े आरोप लगाए थे। हालांकि, कार्यवाही के दौरान, दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया।

अदालती कार्यवाही और समझौता

न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने इस मामले की सुनवाई की और पक्षों के विस्तृत बयान दर्ज किए। शिकायतकर्ता, जिसकी पहचान जांच अधिकारी ASI मेहर चंद ने की, ने अदालत में पुष्टि की कि उसने याचिकाकर्ताओं के साथ सभी विवादों को सुलझा लिया है। समझौते के तहत, उसे पूर्ण और अंतिम मुआवजे के रूप में 2,00,000 रुपये प्राप्त हुए। साथ ही, उसका और याचिकाकर्ता नंबर 1 का विवाह कानूनी रूप से तलाक डिक्री के माध्यम से समाप्त हो चुका था, और उनकी संतान नहीं थी।

शिकायतकर्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अब याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मामला आगे नहीं बढ़ाना चाहती। राज्य की ओर से APP Ms. मंजीत आर्य ने एफआईआर को रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं जताई।

समझौते की शर्तों और शिकायतकर्ता द्वारा शिकायत वापस लेने की स्वैच्छिक घोषणा को देखने के बाद, न्यायमूर्ति काठपालिया ने निष्कर्ष निकाला कि पक्षों को मुकदमे के लिए मजबूर करना न्याय के हित में नहीं होगा। अदालत ने विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाने के महत्व पर जोर दिया, खासकर उन मामलों में जहां दोनों पक्ष आगे बढ़ने के लिए सहमत हो गए हैं।

"उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए, मैं संतुष्ट हूं कि पक्षों को मुकदमे के लिए मजबूर करना न्याय के हित में नहीं होगा।"
- न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया

नतीजतन, अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया और एफआईआर नंबर 469/2023 और इससे जुड़ी सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया।

फैसले के निहितार्थ

यह फैसला न्यायपालिका की उस इच्छा को उजागर करता है जो आपराधिक मामलों, खासकर वैवाहिक विवादों से जुड़े मामलों में, अदालत के बाहर समझौतों को मान्यता देती है और उनका सम्मान करती है। यह आपसी सहमति और समझौते के महत्व को रेखांकित करता है, जो कानूनी प्रणाली पर बोझ को कम करने के साथ-साथ सभी पक्षों के लिए न्याय सुनिश्चित करता है।

यह फैसला यह भी याद दिलाता है कि कानूनी विवादों, खासकर व्यक्तिगत प्रकृति के मामलों, को अक्सर बातचीत और आपसी समझौते के माध्यम से सुलझाया जा सकता है, जिससे लंबी कानूनी लड़ाई से बचा जा सकता है।

केस का शीर्षक: राज कुमार एवं अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य एवं अन्य

केस संख्या: CRL.M.C. 2724/2025

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