दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने 3 नवम्बर 2025 को दिए गए विस्तृत फैसले में क्रिश रियलटेक प्रा. लि. और इसके प्रवर्तक अमित कट्याल द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा जारी अस्थायी अटैचमेंट आदेशों को चुनौती दी थी। अदालत ने कहा कि कंपनी को पहले पीएमएलए के तहत गठित अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष अपनी अपील दायर करनी चाहिए, न कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सीधे रिट याचिका दाखिल करनी चाहिए।
पृष्ठभूमि
रियल एस्टेट समूह ने अदालत में तीन अस्थायी अटैचमेंट आदेश - PAO No. 6/2024, PAO No. 11/2024 और PAO No. 2/2025 - को रद्द करने की मांग की थी, जिनके तहत ईडी ने लगभग ₹503 करोड़ की भूमि, बिक्री राशि और संपत्तियाँ अटैच की थीं।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और विकास पाहवा ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि ये अटैचमेंट “अवैध, मनमाना और सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की पूरी तरह अवहेलना” में किए गए हैं, जिन्होंने विवादित भूखंडों के संबंध में status quo (यथास्थिति बनाए रखने) का निर्देश दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि जिन प्राथमिकी (FIRs) के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग का मामला बनाया गया था, उनमें से कई को सक्षम अदालतों ने रद्द या बंद कर दिया है।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अटैचमेंट की पुष्टि करने वाला निर्णय पीएमएलए के अनुसार तीन सदस्यीय प्राधिकरण द्वारा नहीं बल्कि केवल एक सदस्य द्वारा पारित किया गया था, जो कि कानून के विपरीत है।
अदालत का अवलोकन
दोनों पक्षों की लंबी सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति दत्ता ने यह दर्ज किया कि तीनों में से दो अस्थायी अटैचमेंट आदेशों की पुष्टि पहले ही निर्णायक प्राधिकरण द्वारा की जा चुकी है और उनके खिलाफ अपीलें अपीलीय ट्रिब्यूनल में लंबित हैं। तीसरे मामले में फैसला सुरक्षित रखा जा चुका था।
“पीठ ने कहा, ‘जब किसी कानून में विवादों के निवारण और अपील की पूर्ण व्यवस्था मौजूद है, तब रिट अदालत को सामान्यतः हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के पास पीएमएलए की धारा 26 के तहत उपाय उपलब्ध है,’” आदेश में दर्ज है।
अदालत ने गोल्ड क्रॉफ्ट प्रॉपर्टीज प्रा. लि. बनाम ईडी (2023), डॉ. यू.एस. अवस्थी बनाम निर्णायक प्राधिकरण (2023), और एडवेंचर आइलैंड लि. बनाम ईडी (2024) जैसे कई निर्णयों का हवाला दिया और दोहराया कि जब किसी विशेष कानून में वैधानिक उपाय उपलब्ध है, तो संवैधानिक अदालत का असाधारण अधिकार उसका विकल्प नहीं हो सकता।
न्यायमूर्ति दत्ता ने यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के status quo आदेशों के उल्लंघन, प्राथमिकी की वैधता, और निर्णायक प्राधिकरण की संरचना जैसे मुद्दे “सभी अपीलीय ट्रिब्यूनल के समक्ष उचित रूप से उठाए जा सकते हैं।”
याचिकाकर्ताओं के इस आरोप पर कि ईडी ने बंद की गई प्राथमिकी की जानकारी छिपाई, अदालत ने कहा कि ऐसे विवादित तथ्यात्मक प्रश्न रिट कार्यवाही में तय नहीं किए जा सकते।
निर्णय
याचिकाएँ खारिज करते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि क्रिश रियलटेक और अमित कट्याल द्वारा उठाए गए सभी तर्क पीएमएलए अपीलीय ट्रिब्यूनल के समक्ष रखे जाएँ, जो इन मामलों का निपटारा “यथासंभव शीघ्र, अधिमानतः छह माह के भीतर” करे।
फैसले का अंत न्यायिक अनुशासन की एक स्पष्ट याद दिलाने के साथ हुआ -
“जब कानून स्वयं एक विस्तृत निवारण संरचना प्रदान करता है, तो पक्षकारों को सीधे रिट अदालतों में नहीं जाना चाहिए।”
इसके साथ ही, दिल्ली हाईकोर्ट ने सभी याचिकाएँ मेरिट पर कोई राय दिए बिना निपटा दीं, जिससे ₹503 करोड़ की अटैचमेंट का भाग्य अब विशेष ट्रिब्यूनल के हाथों में है।