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दिल्ली उच्च न्यायालय ने श्री साई सप्तगिरि स्पंज प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ चेक बाउंस के मामले को खारिज कर दिया, सुरक्षा चेक को ऋण नहीं माना जा सकता

Shivam Y.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने चेक बाउंस के पांच मामलों को खारिज कर दिया, यह नियम बनाया कि एनआई अधिनियम के तहत सुरक्षा चेक को ऋण नहीं माना जा सकता; साईं सप्तगिरी स्पंज को बड़ी राहत। - श्री साईं सप्तगिरी स्पंज प्राइवेट लिमिटेड बनाम राज्य (दिल्ली जीएनसीटी) और मेसर्स मैग्नीफिको मिनरल्स प्राइवेट लिमिटेड।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने श्री साई सप्तगिरि स्पंज प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ चेक बाउंस के मामले को खारिज कर दिया, सुरक्षा चेक को ऋण नहीं माना जा सकता

श्री साई सप्तगिरी स्पॉन्ज प्रा. लि. को बड़ी राहत देते हुए, दिल्ली हाईकोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत दायर पांच आपराधिक शिकायतें रद्द कर दीं। अदालत ने माना कि विवादित चेक केवल सिक्योरिटी (सुरक्षा) के लिए जारी किए गए थे और उन्हें नकदीकरण के लिए प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।

Read in English

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने 27 अक्टूबर, 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि शिकायतकर्ता मैग्निफिको मिनरल्स प्रा. लि. ने दोनों पक्षों के बीच हुए समझौता ज्ञापन (MoU) की गलत व्याख्या की, और यह स्पष्ट किया कि "सिक्योरिटी चेक को केवल इसलिए कानूनी कर्ज नहीं माना जा सकता कि बाद में कोई विवाद उत्पन्न हो जाए।"

पृष्ठभूमि

यह विवाद कोयले की आपूर्ति से संबंधित व्यापारिक लेनदेन से जुड़ा है, जो मैग्निफिको मिनरल्स प्रा. लि. द्वारा याचिकाकर्ता कंपनी श्री साई सप्तगिरी स्पॉन्ज प्रा. लि. को किया गया था। शिकायतकर्ता के अनुसार लगभग ₹1.91 करोड़ रुपये का भुगतान बाकी था, जिसके एवज में बेल्लारी स्थित कंपनी ने ₹25 लाख से ₹50 लाख तक की राशि के पांच चेक जारी किए थे।

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जब ये चेक बैंक में प्रस्तुत किए गए, तो वे “स्टॉप पेमेंट” के उल्लेख के साथ अस्वीकृत हो गए। इसके बाद कानूनी नोटिस भेजे गए, जिनका कोई उत्तर नहीं मिला। परिणामस्वरूप, शिकायतकर्ता ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत पांच अलग-अलग शिकायतें बेल्लारी, कर्नाटक की मजिस्ट्रेट अदालत में दायर कीं।

बाद में, बेल्लारी कोर्ट ने यह कहते हुए मामला दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया कि उसके पास इस मामले पर अधिकार क्षेत्र नहीं है। हालांकि, दिल्ली की अदालत ने बेल्लारी कोर्ट द्वारा जारी पुराने सम्मन आदेशों को ही अपनाया, जो बाद में विवाद का प्रमुख बिंदु बना।

अदालत की टिप्पणियाँ

अदालत ने 6 मई 2014 के MoU (समझौता ज्ञापन) का विस्तार से अध्ययन किया, जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा था कि चेक केवल “ऑडिट और सुरक्षा उद्देश्यों के लिए” दिए जा रहे हैं और “बैंक में जमा करने के लिए नहीं।”

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न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा, “MoU की भाषा में कोई अस्पष्टता नहीं है।” उन्होंने जोड़ा कि मैग्निफिको मिनरल्स ने इस दस्तावेज़ को अधूरा पढ़ा और इसे गलत संदर्भ में समझा।

न्यायाधीश ने यह भी नोट किया कि 2014 में दोनों कंपनियों के बीच ईमेल संवाद हुआ था, जिसमें श्री साई सप्तगिरी स्पॉन्ज प्रा. लि. ने स्पष्ट रूप से अनुरोध किया था कि चेक को बैंक में प्रस्तुत न किया जाए, क्योंकि वे केवल बैंक ऑडिट के लिए रखे गए थे।

शिकायतकर्ता द्वारा यह दावा कि ऐसे चेक बाद में कर्ज में परिवर्तित हो गए, अदालत ने खारिज करते हुए कहा कि सिक्योरिटी चेक का स्वरूप कभी नहीं बदलता।
बेंच ने कहा-

“ये सिक्योरिटी चेक एक विशेष उद्देश्य के लिए दिए गए थे और बाद में उत्पन्न किसी देनदारी के लिए नकद नहीं कराए जा सकते।”

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अधिकार क्षेत्र और सम्मन आदेश की वैधता

अदालत ने पाया कि सम्मन जारी करने और अपनाने की प्रक्रिया में गंभीर त्रुटियाँ हुईं। शुरुआती आदेश बेल्लारी मजिस्ट्रेट ने जारी किए थे, जिसने बाद में अधिकार क्षेत्र न होने के कारण शिकायतें लौटा दीं। इसके बावजूद दिल्ली मजिस्ट्रेट ने उन्हीं पुराने आदेशों को अपनाते हुए नए सम्मन जारी नहीं किए।

न्यायमूर्ति कृष्णा ने इसे “स्पष्ट प्रक्रियात्मक त्रुटि” करार देते हुए कहा-

“एक बार जब शिकायत वापस कर दी जाती है, तो उस अदालत में की गई सारी कार्यवाही कानून की नजर में शून्य हो जाती है। ऐसे आदेशों को अपनाना विधिसम्मत नहीं था।”

उन्होंने आगे नीगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 142 में हुए संशोधन और डशरथ रूपसिंह राठौड़ तथा ब्रिजस्टोन इंडिया प्रा. लि. जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि अधिकार क्षेत्र उसी स्थान का होगा जहाँ चेक वसूली के लिए प्रस्तुत किया गया हो।

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फैसला

सभी दस्तावेज़ों और दलीलों का अध्ययन करने के बाद अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि:

  1. विवादित चेक सिर्फ सिक्योरिटी चेक थे, किसी कानूनी रूप से वसूली योग्य कर्ज के भुगतान के लिए नहीं।
  2. बेल्लारी कोर्ट से लिए गए सम्मन आदेश अमान्य थे क्योंकि वे एक ऐसी अदालत से आए थे जिसके पास अधिकार क्षेत्र ही नहीं था।

इस आधार पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सभी पांच शिकायतें (CC Nos. 15098/2016, 15410/2016, 15373/2016, 1540/2019, और 1541/2019) तथा 8 अप्रैल, 27 अप्रैल और 18 मई 2015 के सम्मन आदेशों को रद्द कर दिया, जो पटियाला हाउस कोर्ट में लंबित थे।

अदालत ने कहा-

“ऐसे सिक्योरिटी चेकों के अस्वीकृत होने पर धारा 138 के तहत दायर शिकायतें कायम नहीं रह सकतीं।”

इसके साथ ही श्री साई सप्तगिरी स्पॉन्ज प्रा. लि. के खिलाफ चल रही वर्षों पुरानी कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई-सिक्योरिटी चेक को लेकर शुरू हुआ यह विवाद आखिरकार न्यायालय के निर्णायक शब्दों में समाप्त हुआ।

Case Title:- Sri Sai Sapthagiri Sponge Pvt. Ltd. vs. The State (GNCT of Delhi) & M/s Magnifico Minerals Pvt. Ltd.

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