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NDPS मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रक मालिक के अधिकार बहाल किए, कहा ड्रग डिस्पोज़ल कमेटी वाहन रिहाई नहीं रोक सकती : तमिलनाडु ट्रांसपोर्टर की अपील मंज़ूर

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस मामले में ट्रक मालिक के अधिकार बहाल किए, कहा ड्रग डिस्पोज़ल कमेटी अंतरिम वाहन रिहाई नहीं रोक सकती; मद्रास हाईकोर्ट का आदेश रद्द।

NDPS मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रक मालिक के अधिकार बहाल किए, कहा ड्रग डिस्पोज़ल कमेटी वाहन रिहाई नहीं रोक सकती : तमिलनाडु ट्रांसपोर्टर की अपील मंज़ूर

एनडीपीएस जब्ती मामलों में फंसे निर्दोष वाहन मालिकों के लिए बड़ी राहत देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मद्रास हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें एक ज़ब्त ट्रक को छोड़ने से इनकार किया गया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि ड्रग डिस्पोज़ल कमेटी किसी भी स्थिति में न्यायिक अधिकार का स्थान नहीं ले सकती, खासकर जब बात एनडीपीएस (नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंसेज़) अधिनियम के तहत ज़ब्त वाहनों की अंतरिम हिरासत या जब्ती की हो।

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पृष्ठभूमि

मामला तमिलनाडु के ट्रांसपोर्टर डेनेश से जुड़ा है, जिनका 14-पहिया ट्रक जुलाई 2024 में नेयवेली पुलिस ने ज़ब्त किया था। पुलिस को ड्राइवर की सीट के नीचे छिपे छह किलोग्राम गांजा मिले थे। यह ट्रक कानूनी रूप से 29,000 मीट्रिक टन से अधिक लोहे की चादरें छत्तीसगढ़ से रानीपेट ले जा रहा था।

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ट्रक में मौजूद चार लोगों, जिनमें ड्राइवर भी शामिल था, को गिरफ्तार कर चार्जशीट दाखिल की गई, लेकिन डेनेश को आरोपी नहीं बनाया गया। इसके बावजूद, उनके ज़ब्त ट्रक की अंतरिम रिहाई की अर्जी पहले विशेष अदालत ने और फिर मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने खारिज कर दी। हाईकोर्ट का कहना था कि 2022 में लागू हुए एनडीपीएस (सीज़र, स्टोरेज, सैंपलिंग और डिस्पोज़ल) नियमों के बाद अब ऐसे मामलों में केवल ड्रग डिस्पोज़ल कमेटी ही निर्णय ले सकती है।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने इस तर्क से असहमति जताई और कहा कि ऐसा दृष्टिकोण “न्यायिक जांच के बिना व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करने जैसा होगा।”

पीठ ने कहा, “2022 के नियम केवल पूरक हैं, वे मूल कानून पर हावी नहीं हो सकते।” अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत किसी वाहन की जब्ती या रिहाई का निर्णय केवल विशेष अदालत ही कर सकती है।

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व फैसलों-बिश्वजीत डे बनाम असम राज्य और तरुण कुमार मजही बनाम पश्चिम बंगाल राज्य-का हवाला देते हुए दोहराया कि जब्ती केवल ट्रायल खत्म होने के बाद ही हो सकती है, और उससे पहले वाहन मालिक को सुने बिना नहीं। पीठ ने कहा, “यदि मालिक यह साबित कर देता है कि उसे अपने वाहन के अवैध उपयोग की जानकारी नहीं थी, तो कानून उसकी संपत्ति की रक्षा करता है।”

न्यायमूर्ति मेहता ने टिप्पणी की, “किसी निर्दोष मालिक को प्रशासनिक समितियों की दया पर छोड़ देना कभी भी विधायिका का उद्देश्य नहीं हो सकता।” अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि ट्रांसपोर्टर के पास मूल्यवान माल था और वैध दस्तावेज़ थे, इसलिए यह “बहुत ही असंभावित” है कि वह कुछ किलो गांजा के लिए अपना व्यवसाय खतरे में डालता।

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निर्णय

हाईकोर्ट की व्याख्या को “कानून की दृष्टि में अस्थिर” बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसका आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि डेनेश का वाहन (रजिस्ट्रेशन नंबर TN 52 Q 0315) सुपुर्दगी पर रिहा किया जाए, जिसकी शर्तें विशेष अदालत तय करेगी।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा स्पष्ट किया कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत ज़ब्त संपत्ति की अंतरिम रिहाई का अधिकार न्यायिक विवेक के अधीन है, न कि किसी प्रशासनिक प्रक्रिया के।

Case Title: Denash vs State of Tamil Nadu

Court: Supreme Court of India

Bench: Justice Vikram Nath and Justice Sandeep Mehta

Decided on October 27, 2025

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