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सुप्रीम कोर्ट ने Lancor Holdings-Menon प्रॉपर्टी विवाद में देरी और अधूरी मध्यस्थता के आधार पर अवॉर्ड रद्द किया, कहा: न्याय में स्पष्टता ज़रूरी

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने Lancor Holdings विवाद में देरी और अधूरे समाधान के आधार पर मध्यस्थता अवॉर्ड रद्द किया। फैसला मध्यस्थता की निष्पक्षता पर असर डाल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने Lancor Holdings-Menon प्रॉपर्टी विवाद में देरी और अधूरी मध्यस्थता के आधार पर अवॉर्ड रद्द किया, कहा: न्याय में स्पष्टता ज़रूरी

एक महत्वपूर्ण फैसले में, जिसने देश में मध्यस्थता अवॉर्ड देने की प्रक्रिया पर असर डाल सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने Lancor Holdings Limited और भूमि स्वामी Prem Kumar Menon एवं परिवार के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद में दिए गए मध्यस्थता अवॉर्ड को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अवॉर्ड लगभग चार साल की देरी से दिया गया और उसने विवाद को सुलझाने के बजाय दोनों पक्षों को फिर से कानूनी लड़ाई में धकेल दिया।

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पृष्ठभूमि (Background)

विवाद की शुरुआत 2004 में हुए जॉइंट डेवलपमेंट एग्रीमेंट (JDA) से हुई, जिसमें चेन्नई की संपत्ति पर Menon Eternity नामक एक व्यावसायिक भवन बनाने की योजना थी। समझौते के तहत भूमि मालिकों को निर्मित क्षेत्र का 50% हिस्सा और डेवलपर को बाकी 50% मिलना था।

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लेकिन भवन की पूर्णता और सुरक्षा जमा राशि की वापसी को लेकर मतभेद पैदा हो गए। विवाद तब और बढ़ गया जब डेवलपर ने मूल पावर ऑफ अटॉर्नी प्राप्त किए बिना अपने ही पक्ष में बिक्री विलेख (sale deeds) दर्ज करा लिए। इस पर भूमि मालिकों ने इसे अनुचित और गलत आचरण बताया।

मामला मध्यस्थता में गया, लेकिन मध्यस्थ (एक सेवानिवृत्त हाई कोर्ट न्यायाधीश) ने अवॉर्ड को जुलाई 2012 में सुरक्षित रखा और मार्च 2016 में सुनाया, और वह भी बिना किसी स्पष्ट स्पष्टीकरण के। अवॉर्ड में बिक्री विलेखों को अवैध बताया गया, लेकिन वित्तीय और स्वामित्व संबंधी परिणामों पर कोई स्पष्ट समाधान नहीं दिया, और दोनों पक्षों को “कानूनी उपाय स्वयं खोजने” को कहा गया।

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कोर्ट की टिप्पणियाँ (Court’s Observations)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवॉर्ड सुनाने में हुई इतनी अत्यधिक देरी महज़ औपचारिक भूल नहीं बल्कि न्याय की निष्पक्षता पर सीधा आघात है।

“एक मध्यस्थ वर्षों बाद अवॉर्ड सुनाकर पक्षों को अनिश्चित स्थिति में नहीं छोड़ सकता,” पीठ ने टिप्पणी की।

कोर्ट के अनुसार, दो मुख्य समस्याएँ थीं:

  1. 3 साल 8 महीनों की देरी, जिससे यह संदेह पैदा होता है कि क्या मध्यस्थ को अब भी साक्ष्य और तर्क याद थे।
  2. अवॉर्ड ने विवाद का अंतिम समाधान नहीं दिया, बल्कि पक्षों को फिर से मुकदमेबाज़ी में धकेल दिया, जो मध्यस्थता की प्रक्रिया के मूल उद्देश्य के ही विपरीत है।

पीठ ने यह भी कहा:

“न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि दिखाई भी देना चाहिए। एक ऐसा अवॉर्ड जो पक्षों को फिर अनिश्चितता में डाल दे, स्वीकार्य नहीं हो सकता।”

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निर्णय (Decision)

सुप्रीम कोर्ट ने Lancor Holdings की अपील स्वीकार कर ली। मध्यस्थता अवॉर्ड को पूरी तरह रद्द कर दिया गया। कोर्ट ने माना कि:

  • देरी अकारण और अनुचित थी
  • अवॉर्ड ने विवाद का समाधान नहीं किया
  • इससे सार्वजनिक नीति और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ

कोर्ट ने इस बिंदु पर ही अपना आदेश समाप्त किया और नई मध्यस्थता या किसी अन्य प्रक्रिया के लिए कोई निर्देश नहीं दिया, बल्कि पक्षों को कानून के अनुसार आगे कदम उठाने की स्वतंत्रता छोड़ी।

Case: M/s Lancor Holdings Limited v. Prem Kumar Menon & Others

Court: Supreme Court of India

Citation: 2025 INSC 1277

Bench: Justice Sanjay Kumar

Decision Date: 2024

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