हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने चेक बाउंस विवाद में अपना फैसला सुनाया। सोहन लाल द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई, जिससे लगभग नौ साल पुराना मुकदमा समाप्त हो गया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुनरीक्षण शक्तियों का उद्देश्य स्थापित तथ्यों को फिर से खोलना नहीं है, विशेषकर तब जब निचली दो अदालतों ने एकमत होकर फैसला सुनाया हो।
पृष्ठभूमि
यह मामला वर्ष 2016 में जारी ₹2.5 लाख के एक चेक से जुड़ा है, जो सोहन लाल ने जगदीश कुमार शर्मा के पक्ष में दिया था। चेक “फंड्स इन्सफिशिएंट” यानी खाते में पर्याप्त राशि न होने के कारण बाउंस हो गया। कानूनी मांग नोटिस मिलने के बावजूद रकम वापस नहीं की गई।
ट्रायल कोर्ट ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत सोहन लाल को दोषी ठहराते हुए एक साल की साधारण कैद और ₹5 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया। इसके बाद सेशंस कोर्ट में दायर अपील भी खारिज हो गई और सजा बरकरार रही, जिसके बाद आरोपी ने हाईकोर्ट का रुख किया।
अदालत की टिप्पणियां
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति राकेश कैन्थला ने पुनरीक्षण के सीमित दायरे को रेखांकित किया। पीठ ने टिप्पणी की कि “पुनरीक्षण अदालत अपीलीय अदालत नहीं होती” और यह तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब कोई स्पष्ट कानूनी त्रुटि या गंभीर अन्याय दिखे।
आरोपी ने चेक पर अपने हस्ताक्षर स्वीकार किए, लेकिन यह दलील दी कि चेक खो गया था और उसका दुरुपयोग किया गया। अदालत को यह बचाव तर्क विश्वसनीय नहीं लगा। न्यायाधीश ने कहा कि जब हस्ताक्षर स्वीकार कर लिए जाते हैं, तो कानून यह मानकर चलता है कि चेक किसी वैध देनदारी के भुगतान के लिए दिया गया था, जब तक कि इसके विपरीत ठोस सबूत पेश न किया जाए। ऐसे कोई सबूत पेश नहीं किए गए।
नोटिस की सेवा को लेकर भी अदालत ने डाक रिकॉर्ड पर भरोसा करते हुए कहा कि नोटिस विधिवत रूप से पहुंचाया गया था। यह दलील भी खारिज कर दी गई कि शिकायत समय से पहले दायर की गई थी, और अदालत ने माना कि कानून में तय समय-सीमा का सही तरीके से पालन किया गया।
निर्णय
किसी भी तरह की अवैधता या न्याय में चूक न पाते हुए हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी। धारा 138 के तहत सजा, एक साल की कैद और मुआवजे का आदेश जस का तस रखा गया।
इसी के साथ अदालत ने मामले पर अंतिम मुहर लगाते हुए यह दोहराया कि चेक बाउंस कानून का मकसद रोजमर्रा के वित्तीय लेनदेन में भरोसा बनाए रखना है।
Case Title: Sohan Lal v. Jagdish Kumar Sharma
Case Number: Criminal Revision No. 188 of 2025
Date of Decision: 20 December 2025
Advocates
- For Petitioner: Mr. I.S. Chandel, Advocate
- For Respondent: Mr. Vivek Singh Attri, Advocate