जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट, श्रीनगर पीठ ने एक महत्वपूर्ण आदेश में दो आरोपियों की अपील खारिज कर दी है, जिसमें उन्होंने जब्त किए गए एक लोड कैरियर की रिहाई मांगी थी। जांच एजेंसियों के अनुसार, यह वाहन कथित तौर पर हथियार और गोला-बारूद के परिवहन में इस्तेमाल किया गया था। न्यायमूर्ति शाहजाद अज़ीम और न्यायमूर्ति सिंधु शर्मा की खंडपीठ ने 8 सितंबर को फैसला सुरक्षित रखा था और 19 सितंबर 2025 को इसे सुनाया।
पृष्ठभूमि
मामला 27 नवंबर 2023 का है, जब श्रीगुफवाड़ा पुलिस ने सेना की 3 आरआर (Sirhama कैंप) के साथ मिलकर मेहंद, सतकीपोरा क्रॉसिंग पर अचानक नाका लगाया। वहां दो संदिग्ध युवकों को रोका गया, जिनकी पहचान बाद में जबलीपोरा निवासी यासिर अहमद भट और सिरहामा निवासी मेहराज-उद-दीन डार के रूप में हुई।
उनकी तलाशी में पुलिस का दावा है कि 90 जिंदा राउंड (AK-47) और एक लाइव हैंड ग्रेनेड बरामद हुआ। जांचकर्ताओं का आरोप है कि दोनों का संबंध प्रतिबंधित संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) से था और वे युवाओं को आतंकी संगठनों से जोड़ने में सक्रिय थे।
जांच के दौरान एक लोड कैरियर (नंबर JK03L/4982) भी जब्त किया गया। पुलिस का कहना है कि इसे हथियार ढोने में इस्तेमाल किया गया था। इस ज़ब्ती को यूएपीए की धारा 25 के तहत नामित प्राधिकरण के समक्ष रखा गया।
आरोपियों ने अनंतनाग की विशेष अदालत में याचिका दायर कर कहा कि यह वाहन परिवार की आजीविका का एकमात्र साधन है, जो कर्ज लेकर खरीदा गया था, और इसका आतंक गतिविधियों से कोई संबंध नहीं है। अदालत ने याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि मामला अभी नामित प्राधिकरण के पास लंबित है। इसके बाद दोनों ने एनआईए अधिनियम, 2008 की धारा 21 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत की टिप्पणियां
अपीलकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस. टी. हुसैन ने दलील दी कि यूएपीए की धारा 25 में निर्धारित आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया, जिससे पूरी ज़ब्ती कार्रवाई अवैध हो जाती है। उनका कहना था कि पूर्व स्वीकृति और समयसीमा का पालन नहीं किया गया।
सरकार की ओर से वरिष्ठ एएजी मोहसिन-उल-शौकत कादरी ने जवाब दिया कि सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी की गईं और डीजीपी ने 5 जून 2024 को ज़ब्ती को मंजूरी दी थी। राज्य ने यह भी कहा कि जब मामला पहले से ही नामित प्राधिकरण के पास लंबित है, तो हाईकोर्ट के पास हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं है।
न्यायमूर्ति अज़ीम ने खंडपीठ की ओर से लिखते हुए कहा कि यूएपीए कानून में पूरी प्रक्रिया स्पष्ट है - जांच एजेंसी द्वारा ज़ब्ती, नामित प्राधिकरण द्वारा पुष्टि या रद्द, और उसके बाद अपील का प्रावधान।
अदालत ने टिप्पणी की,
"अपीलकर्ता ने जल्दबाजी की और नामित प्राधिकरण को जवाब देने की बजाय सीधे विशेष अदालत और फिर यहां पहुंच गया। ऐसा कदम न तो क़ानून में स्वीकार्य है और न ही उचित।"
अदालत ने यह भी माना कि जिस आदेश को चुनौती दी गई है, वह "अंतरिम प्रकृति" का है और एनआईए अधिनियम की धारा 21 के तहत अपील योग्य नहीं है। खंडपीठ ने आगाह किया कि अगर अदालतें सीधे दखल देंगी तो यह "नामित प्राधिकरण के अधिकार क्षेत्र और शक्तियों को हड़पने" जैसा होगा।
फैसला
अंत में हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी और कहा कि अपीलकर्ताओं के पास नामित प्राधिकरण के समक्ष प्रभावी उपाय उपलब्ध है। यदि वे वहां असंतुष्ट रहते हैं, तो विशेष अदालत और उसके बाद यूएपीए की धारा 28 के तहत हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं।
खंडपीठ ने स्पष्ट कहा,
"हमारी राय में अपील स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यूएपीए की धारा 25 में संपूर्ण तंत्र और क्रमबद्ध अपील व्यवस्था पहले से मौजूद है।"
इस प्रकार अपील खारिज कर दी गई और किसी भी अंतरिम राहत को समाप्त कर दिया गया। अदालत का आखिरी संदेश साफ था कानूनन उपलब्ध मंचों का उपयोग किए बिना ऊपरी अदालतों तक नहीं पहुंचा जा सकता।
केस का शीर्षक: यासिर अहमद भट और अन्य। बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर
केस नंबर: CrlA (D) No. 8/2025