केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक अहम आदेश दिया, जिसमें एक कैपिटल गेन सेविंग्स बैंक अकाउंट बंद करने के मामले पर सुनवाई हुई। 67 वर्षीय विधवा अपने फंड की वापसी के लिए आयकर विभाग से लड़ रही थीं। न्यायमूर्ति ज़ियाद रहमान ए.ए. ने साफ किया कि राजस्व विभाग को कर वसूलने का अधिकार है, लेकिन वह याचिकाकर्ता की पूरी जमा राशि अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकता।
पृष्ठभूमि
यह मामला श्रीमती सैना बा हम्ज़ा कोया, कोच्चि की एक वरिष्ठ नागरिक, द्वारा दायर रिट याचिका से शुरू हुआ। उन्हें उनके भाई से उपहार में मिली संपत्ति बेचनी पड़ी और कानून का पालन करते हुए उन्होंने लगभग ₹83 लाख की राशि भारतीय स्टेट बैंक के कैपिटल गेन सेविंग्स अकाउंट में जमा कर दी।
उनकी योजना एदापल्ली में एक आवासीय मकान बनाने की थी, जो उन्होंने बाद में बना भी लिया, लेकिन खाते से पैसा निकालने के बजाय अपनी बेटी और दामाद से कर्ज लिया। बाद में उन्होंने जमा राशि निकालकर ऋण चुकाने की अनुमति मांगी।
जब उन्होंने आयकर अधिकारी (ITO) से खाता बंद करने की इजाज़त मांगी, तो विभाग ने इनकार कर दिया। विभाग का कहना था कि उन्होंने संबंधित वर्ष का रिटर्न दाखिल नहीं किया, जमा धनराशि को तीन साल की अनिवार्य समय सीमा में उपयोग नहीं किया, और मकान का निर्माण भी समय पर पूरा नहीं हुआ। विभाग ने दो आकलन वर्षों के लिए लगभग ₹16.2 लाख की कर देनदारी तय की।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति रहमान ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 54F का विस्तार से अध्ययन किया। यह प्रावधान बताता है कि यदि संपत्ति बिक्री से मिली राशि को निश्चित समय सीमा में घर बनाने या खरीदने में लगाया जाए, तो पूंजीगत लाभ कर से छूट मिल सकती है।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि कानून यह नहीं कहता कि मकान केवल बिक्री की आय से ही बनाया जाए; उधार धन से भी निर्माण किया जा सकता है, बशर्ते बाद में पूंजीगत लाभ की राशि उस पर समायोजित कर दी जाए। अदालत ने स्वीकार किया:
"धारा 54F ऐसी व्यवस्था पर रोक नहीं लगाती।"
हालाँकि, न्यायाधीश ने व्यावहारिक पक्ष भी बताया:
"सिर्फ याचिकाकर्ता का दावा पर्याप्त नहीं है, ज़रूरी है कि प्राधिकरण संतुष्ट हो कि धनराशि वास्तव में इसी प्रयोजन के लिए खर्च की गई।"
अदालत ने देखा कि कर अधिकारी ने खाता बंद करने के आवेदन को आकलन कार्यवाही की तरह मान लिया, जबकि ऐसा करना उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर था। फिर भी, उनका इनकार पूरी तरह अनुचित भी नहीं था। कोर्ट ने कहा कि आयकर अधिकारी के आदेश में दर्ज निष्कर्ष केवल prima facie यानी प्रारंभिक हैं, अंतिम नहीं। अंतिम निर्धारण तो नियमित आकलन कार्यवाही में ही हो सकता है।
निर्णय
दोनों पक्षों के तर्कों को संतुलित करते हुए हाईकोर्ट ने आईटीओ का पत्र पूरी तरह रद्द करने से इनकार कर दिया। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को अपनी ही जमा राशि के लिए अनिश्चितकाल तक इंतज़ार नहीं कराया जा सकता।
न्यायमूर्ति रहमान ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को अपने कैपिटल गेन सेविंग्स अकाउंट से उतनी राशि निकालने दी जाए जो कर देनदारी से अधिक हो, जबकि विभाग द्वारा तय कर राशि खाते में रोकी जाएगी। अधिकारी को एक महीने के भीतर ज़रूरी आदेश पारित करने होंगे।
अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज टिप्पणियाँ केवल अस्थायी हैं और उचित आकलन कार्यवाही में ही अंतिम होंगी। यदि विभाग उचित समय में ऐसी कार्यवाही शुरू नहीं करता, तो श्रीमती कोया कानून के तहत शेष राशि की वापसी के लिए कदम उठा सकती हैं।
इस प्रकार, रिट याचिका को आंशिक राहत देते हुए निपटा दिया गया, जिससे वर्षों से अपनी जमा राशि पाने के लिए संघर्ष कर रही वरिष्ठ नागरिक को थोड़ी राहत मिली।
केस का शीर्षक: श्रीमती साइनाबा हमज़ा कोया बनाम आयकर अधिकारी एवं भारतीय स्टेट बैंक
केस संख्या: WP(C) संख्या 40744/2024