मोटरबाइक को धारा 324 आईपीसी के तहत 'खतरनाक हथियार' माना जा सकता है: केरल हाईकोर्ट का फैसला

By Shivam Y. • July 21, 2025

केरल हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि अगर मोटरबाइक को जानबूझकर नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 324 के तहत 'खतरनाक हथियार' के रूप में मान्य होगा। मामले का विवरण, कानूनी व्याख्या और अदालत का निर्णय जानें।

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि अगर मोटरबाइक को जानबूझकर किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो इसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 324 के तहत 'खतरनाक हथियार' माना जा सकता है। यह फैसला एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका में आया, जिसमें आरोपी ने धारा 324 आईपीसी के तहत अपनी सजा को चुनौती दी थी।

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मामले की पृष्ठभूमि

मनोज बनाम केरल राज्य नामक इस मामले में 11 मई 2005 को एक घटना हुई थी। याचिकाकर्ता, मनोज, पर आरोप लगाया गया था कि उसने जानबूझकर अपनी मोटरबाइक से दूसरे याचिकाकर्ता (शिकायतकर्ता) की पीठ पर प्रहार किया, जब वह एक सार्वजनिक सड़क पर चल रहा था। शिकायतकर्ता के निचले होंठ और शरीर के अन्य हिस्सों में चोटें आईं। अभियोजन पक्ष का दावा था कि यह कार्य शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी के साथ उसकी बेटी के रिश्ते को लेकर असहमति के कारण किया गया था।

ज्यूडिशियल फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट कोर्ट ने आरोपी को धारा 324 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया और उसे छह महीने के साधारण कारावास और 2,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। बाद में सेशन कोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा, जिसके बाद आरोपी ने केरल हाईकोर्ट में एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की।

तर्क और अदालत की व्याख्या

याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मोटरबाइक, जो एक परिवहन का साधन है, को धारा 324 आईपीसी के तहत 'हथियार' या 'साधन' के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। उन्होंने दावा किया कि चूंकि मोटरबाइक इस प्रावधान में निर्दिष्ट खतरनाक हथियारों की श्रेणी में नहीं आती, इसलिए सजा को बनाए रखना अनुचित है।

हालांकि, हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने धारा 324 आईपीसी की कानूनी भाषा की व्याख्या की, जो "खतरनाक हथियारों या साधनों से जानबूझकर चोट पहुंचाने" को दंडनीय बनाती है। अदालत ने जोर देकर कहा कि "साधन" शब्द केवल उन वस्तुओं तक सीमित नहीं है जो स्वाभाविक रूप से हथियार के रूप में डिजाइन की गई हैं, बल्कि इसमें कोई भी वस्तु शामिल हो सकती है जिसे नुकसान पहुंचाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

"'किसी भी साधन जिसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है' की अभिव्यक्ति इस प्रावधान को एक व्यापक दायरा प्रदान करती है, जिसमें वे सभी साधन शामिल हो सकते हैं जिनके सामान्य परिस्थितियों में हथियार होने की विशेषता नहीं होती, बशर्ते कि उसे चोट पहुंचाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया हो।"

अदालत ने माथई बनाम केरल राज्य (2005) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि कोई वस्तु खतरनाक हथियार है या नहीं, यह उसके इस्तेमाल और विशिष्ट परिस्थितियों में नुकसान पहुंचाने की क्षमता पर निर्भर करता है।

मुख्य अवलोकन

'साधन' की परिभाषा: अदालत ने शब्दकोशों और कानूनी मिसालों का हवाला देते हुए "साधन" को किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले किसी भी माध्यम या उपकरण के रूप में परिभाषित किया, जिसमें वे वस्तुएं भी शामिल हैं जो स्वाभाविक रूप से हथियार नहीं हैं।

हथियार के रूप में मोटरबाइक: हालांकि मोटरबाइक डिजाइन के हिसाब से हथियार नहीं है, लेकिन जब किसी को चोट पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो इसकी गंभीर चोट या मृत्यु का कारण बनने की क्षमता इसे धारा 324 आईपीसी के तहत खतरनाक हथियार बना देती है।

जानबूझकर कार्य: अदालत ने नोट किया कि आरोपी का कार्य जानबूझकर था, जैसा कि घटना से पहले शिकायतकर्ता को दिए गए उसके बयान से स्पष्ट था, जिससे दुर्घटना का बचाव खारिज हो गया।

    सजा में कमी

    हालांकि अदालत ने सजा को बरकरार रखा, लेकिन निम्नलिखित कारणों से याचिकाकर्ता की सजा को कम कर दिया:

    • घटना को 20 साल से अधिक समय बीत चुका था।
    • याचिकाकर्ता लंबे समय से कानूनी कार्यवाही का सामना कर रहा था।
    • शिकायतकर्ता को हुई चोटें मामूली थीं।

    अदालत ने सजा को संशोधित करते हुए "अदालत के उठने तक कारावास" का आदेश दिया और याचिकाकर्ता को शिकायतकर्ता को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

    मामले का नाम: मनोज बनाम केरल राज्य

    मामला संख्या: Crl. Rev. Pet. No. 162 of 2013

    याचिकाकर्ता के वकील: बी. मोहनलाल, प्रीता पी.एस.

    प्रतिवादी के वकील: एस. राजीव, ई.सी. बिनीश (पब्लिक प्रॉसीक्यूटर)

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