जोधपुर से आए एक दर्दनाक मामले में, राजस्थान हाईकोर्ट ने 49 वर्षीय मोची लक्ष्मणदास की सजा में संशोधन किया, जिन्हें अपने ही बेटे की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। न्यायमूर्ति विनीत कुमार माथुर और न्यायमूर्ति अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने 3 अक्टूबर 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि यह हत्या नहीं बल्कि मानसिक अस्थिरता में हुआ एक दुखद कृत्य था।
पृष्ठभूमि
यह मामला 29 जून 2017 का है, जब लक्ष्मणदास ने कथित तौर पर अपने बेटे निशांत के गले पर नावला (मोचियों द्वारा उपयोग किया जाने वाला नुकीला औजार) से वार किया था, जब वह सो रहा था। घायल बेटे को गोयल अस्पताल ले जाया गया, जहां लगभग 24 दिनों के इलाज के बाद उसकी मृत्यु हो गई।
अभियोजन पक्ष ने लक्ष्मणदास पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत हत्या का आरोप लगाया। 2019 में जोधपुर की सत्र अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया और "जीवन के शेष भाग तक" आजीवन कारावास तथा ₹50,000 के जुर्माने की सजा दी।
अपील के दौरान, बचाव पक्ष के अधिवक्ता कौशल शर्मा ने दलील दी कि यह घटना मानसिक असंतुलन और गुस्से की चरम स्थिति में हुई, न कि हत्या के इरादे से। शर्मा ने कहा, "कोई भी पिता, चाहे कितना भी व्यथित हो, अपने बच्चे की जान नहीं लेना चाहता," और परिवार के सदस्यों के बयान पेश किए जिनमें आरोपी को "गुस्सैल और मानसिक रूप से अस्थिर" बताया गया था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
पीठ ने गवाहों के बयानों की गहराई से समीक्षा की, जिनमें लक्ष्मण की पत्नी जस्सी और बेटी महिमा के बयान भी शामिल थे। दोनों ने स्वीकार किया कि आरोपी अक्सर परिवार से झगड़ा करता था और कभी-कभी "बिना किसी कारण के" मारपीट भी करता था। फिर भी, किसी पूर्व योजना का कोई प्रमाण नहीं मिला।
न्यायमूर्ति माथुर ने अपने निर्णय में लिखा,
"सामान्य परिस्थितियों में कोई भी अभिभावक अपने बच्चे को घातक चोट नहीं पहुंचाता, चाहे वह कितना भी निराश या दुखी क्यों न हो।"
न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के गुरमुख सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2009) के फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई व्यक्ति आवेश में एक ही घातक वार करता है, तो उसे हत्या नहीं बल्कि गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) माना जाएगा।
पीठ ने कहा,
"यहां कोई दोहराया गया वार नहीं हुआ, न कोई दुश्मनी थी और न ही कोई योजना।" अदालत ने माना कि कृत्य हिंसक था, लेकिन इसमें हत्या जैसा सोचा-समझा इरादा नहीं था, जैसा कि धारा 302 के लिए आवश्यक है।
निर्णय
साक्ष्यों और पूर्व उदाहरणों के आधार पर, अदालत ने सजा को धारा 302 (हत्या) से घटाकर धारा 304 भाग II (गैर इरादतन हत्या) में परिवर्तित कर दिया। अब लक्ष्मणदास को सात वर्ष के कठोर कारावास की सजा भुगतनी होगी, जबकि ₹50,000 का जुर्माना बरकरार रहेगा।
अदालत ने उन्हें दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 428 के तहत राहत भी दी, जिसके अनुसार जेल में पहले बिताया गया समय कुल सजा में समायोजित होगा।
पीठ ने अंत में कहा,
"आरोपी मानसिक रूप से अस्थिर था और बिना पूर्व नियोजन के अपने बेटे को चोट पहुंचाई। इसलिए उसकी सजा में संशोधन किया जाता है।"
इस तरह, एक पिता की क्षणिक गलती पर आठ वर्षों से चल रहा कानूनी संघर्ष राजस्थान हाईकोर्ट की अदालत संख्या 2 में शांतिपूर्वक समाप्त हुआ।
Case Title: Laxman Das vs. State of Rajasthan
Case Number: D.B. Criminal Appeal (DB) No. 274/2019
Date of Judgment: Pronounced on 03 October 2025
Advocates Appeared:
- For Appellant: Mr. Kaushal Sharma
- For Respondent (State): Mr. Rajesh Bhati, Public Prosecutor