बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को उद्योगपति जयदेव राजनिकांत श्रॉफ और उनकी पत्नी पूनम जयदेव श्रॉफ के बीच चल रहे हाई-प्रोफाइल वैवाहिक विवाद में अहम आदेश सुनाया। न्यायमूर्ति मिलिंद एन. जाधव ने परिवार न्यायालय का वह आदेश खारिज कर दिया जिसने पूनम की मांग पर पति से वित्तीय खुलासा कराने से इंकार किया था। न्यायालय ने कहा कि संपत्ति और देनदारियों का खुलासा केवल अंतरिम भरण-पोषण तक सीमित नहीं है, बल्कि स्थायी भरण-पोषण तय करते समय भी यह अनिवार्य है।
पृष्ठभूमि
यह दंपति 2004 में विवाह बंधन में बंधा था और उनकी एक बेटी है। 2015 में जयदेव ने क्रूरता का आरोप लगाते हुए तलाक का मामला दायर किया। इसके बाद से मुकदमा कई अदालतों में फैला हुआ है। पहले अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर पूनम को ₹7 लाख प्रतिमाह और बेटी को ₹5 लाख प्रतिमाह के साथ-साथ ₹20 लाख मुकदमेबाजी खर्च तय किया गया था। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी गई थी, लेकिन यह अब भी कायम है।
जिरह के दौरान जयदेव ने अपनी संपत्ति से जुड़े सवालों से बचने की कोशिश की। पूनम की कानूनी टीम ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक राजनेश बनाम नेहा फैसले के अनुसार, दोनों पक्षों को अपनी आय, संपत्ति और देनदारियों का हलफनामा दाखिल करना जरूरी है। हालांकि परिवार न्यायालय ने इस वर्ष की शुरुआत में उनकी याचिका खारिज कर दी थी, यह कहते हुए कि स्थायी भरण-पोषण के चरण में ऐसा खुलासा आवश्यक नहीं है।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति जाधव ने परिवार न्यायालय की व्याख्या से असहमति जताई। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के बाद के फैसलों, खासकर अदिति उर्फ मिथि बनाम जितेश शर्मा में इस मुद्दे को साफ किया गया है।
"राजनेश में दिए गए दिशा-निर्देश केवल अंतरिम भरण-पोषण तक सीमित नहीं हैं। ये सभी भरण-पोषण कार्यवाहियों पर लागू होते हैं, जिनमें स्थायी भरण-पोषण भी शामिल है,” न्यायाधीश ने कहा।
उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के पिछले फैसले जीवनज्योति कौर बंसल बनाम कुलविंदर सिंह बंसल को “पर इंकुरियम” (कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण) बताया, क्योंकि उसमें बाद के बाध्यकारी निर्णयों पर विचार नहीं किया गया था। न्यायमूर्ति जाधव ने टिप्पणी की -
“भरण-पोषण दान या कृपा का विषय नहीं है, बल्कि यह बुनियादी मानव अधिकार का हिस्सा है।”
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निर्णय
हाईकोर्ट ने 31 जनवरी 2025 को परिवार न्यायालय का आदेश निरस्त कर दिया। जयदेव श्रॉफ को अब तीन सप्ताह के भीतर परिवार न्यायालय में अपनी संपत्ति और देनदारियों का पूरा हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। अदालत ने जोर दिया कि ऐसी पारदर्शिता के बिना स्थायी भरण-पोषण का निष्पक्ष निर्धारण असंभव है।
जब पति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अतुल डामले ने सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए इस आदेश पर रोक की मांग की, तो न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति जाधव ने कहा -
“सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले ही निर्धारित सख्त समयसीमा को देखते हुए, यह अदालत कोई स्थगन देने के लिए इच्छुक नहीं है।”
इसके साथ ही पूनम द्वारा दाखिल रिट याचिका स्वीकार कर ली गई। अब मामला परिवार न्यायालय में आगे बढ़ेगा, जहाँ अंतिम बहस के लिए नया वित्तीय खुलासा आधार बनेगा।
Case Title: Poonam Jaidev Shroff v. Jaidev Rajnikant Shroff
Case Number: Writ Petition No. 4414 of 2025
Date of Decision: 29 September 2025
Petitioner's Counsel:
- Mr. Girish Godbole, Senior Advocate
- Assisted by Ms. Chandana Salgaonkar, Ms. Kimaya Prajapati, Ms. Vinita Dandekar (Naik Naik & Co.)
Respondent's Counsel:
- Mr. Atul Damle, Senior Advocate
- Assisted by Mr. Sameer Tapia, Ms. Siddhi Doshi, Mr. Rohan Marathe (ALMT Legal)