राजधानी से जुड़े एक चर्चित मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने 88 वर्षीय महिला द्वारा अपनी बहू के पक्ष में किए गए उपहार विलेख को रद्द करने के आदेश को बरकरार रखा है। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने 26 सितम्बर 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसे हस्तांतरण, भले ही प्रेम और स्नेह में किए जाएं, लेकिन इनमें देखभाल की निहित उम्मीद जुड़ी होती है।
पृष्ठभूमि
विवाद तब शुरू हुआ जब बुजुर्ग महिला ने 2015 में जनकपुरी स्थित अपनी संपत्ति बहू के नाम कर दी। इसके बाद उसने उपेक्षा और दुर्व्यवहार का आरोप लगाया। उसने वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 के तहत रखरखाव अधिकरण से उपहार विलेख रद्द करने की मांग की। अधिकरण ने 2019 में उसकी अर्जी खारिज कर दी, लेकिन पुलिस को उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
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असंतुष्ट महिला ने जिला मजिस्ट्रेट के पास अपील की, जिसने 2023 में अधिकरण का आदेश पलटते हुए विलेख रद्द कर दिया। बहू ने इस आदेश को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की, जिसे भी खारिज कर दिया गया। मौजूदा अपील उसी खारिजी आदेश के खिलाफ थी।
अदालत की टिप्पणियाँ
अपीलकर्ता के वकील का तर्क था कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 23 के तहत हस्तांतरण तभी रद्द हो सकता है जब उपहार विलेख में स्पष्ट लिखा हो कि प्राप्तकर्ता बुजुर्ग की आवश्यकताओं का ध्यान रखेगा। चूंकि इस विलेख में ऐसी कोई शर्त नहीं थी, इसलिए इसे रद्द करना गैरकानूनी है। इस दलील में सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का भी हवाला दिया गया।
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लेकिन खंडपीठ ने व्यापक दृष्टिकोण अपनाया। सुप्रीम कोर्ट, बॉम्बे हाई कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट के हालिया फैसलों का जिक्र करते हुए न्यायाधीशों ने कहा कि कानून का उद्देश्य बुजुर्गों को बेसहारा होने से बचाना है। उन्होंने कहा, "प्रेम और स्नेह अपने आप में निहित शर्त है।" अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि माता-पिता या सास-ससुर संपत्ति का उपहार व्यापारिक सौदे की तरह नहीं करते, बल्कि इस भरोसे के साथ करते हैं कि उनकी देखभाल होगी।
न्यायालय ने 2015 से लिखे गए पत्रों का हवाला दिया जिनमें बुजुर्ग महिला ने दवाइयों, कपड़ों और यहां तक कि नकली दांतों तक से वंचित किए जाने की शिकायत की थी। एक पत्र में उसने अपने जीवन को खतरे में बताया और आरोप लगाया कि उसे कमरे में बंद करने की धमकी दी गई।
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पीठ ने टिप्पणी की,
"हस्तलिखित पत्र स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि किस परिस्थिति में विलेख हुआ और इसके बाद कैसी उपेक्षा हुई। ऐसे सबूतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।"
फैसला
सभी तर्कों पर विचार करने के बाद खंडपीठ ने अपील खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट ने धारा 23 के तहत उपहार विलेख रद्द करने का जो आदेश दिया था, वह सही था और एकल न्यायाधीश का आदेश भी पूरी तरह उचित था।
नतीजतन, 2015 का उपहार विलेख रद्द कर दिया गया और संपत्ति का स्वामित्व फिर से बुजुर्ग महिला को मिल गया। पीठ ने अंतिम पंक्ति में लिखा,
"हम स्वयं को एकल न्यायाधीश के आदेश से पूर्ण सहमति में पाते हैं। अपील असफल है।"
Case Title: Smt. Varinder Kaur v. Smt. Daljit Kaur & Ors.