भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) की भूमि की ई-नीलामी को रद्द कर दिया और संबंधित बैंक को नीलामी खरीदार को संपूर्ण राशि ब्याज सहित लौटाने का निर्देश दिया। यह निर्णय 25 सितम्बर 2025 को न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आलोक अराधे की पीठ ने दिया। मामला डीडीए द्वारा कॉरपोरेशन बैंक और अन्य के खिलाफ दायर अपील से जुड़ा था।
पृष्ठभूमि
विवाद की शुरुआत वर्ष 2001 में हुई जब डीडीए ने जसोल स्थित एक प्लॉट सरिता विहार क्लब को खेल और मनोरंजन केंद्र बनाने के लिए पट्टे पर दिया। पट्टे की शर्तों के अनुसार, क्लब को भूमि को बंधक रखने से पहले उपराज्यपाल की लिखित अनुमति लेना आवश्यक था। इसके बावजूद क्लब ने बिना उचित अनुमति लिए भूखंड को कॉरपोरेशन बैंक के पास बंधक रख दिया।
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जब क्लब ऋण चुकाने में विफल रहा तो बैंक ने ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) का दरवाजा खटखटाया और अंततः 2012 में जमीन की नीलामी करवाई गई। इसमें जय भारत कमर्शियल एंटरप्राइजेज ने सबसे ऊँची बोली लगाकर लगभग 13 करोड़ रुपये में भूखंड खरीदा। बिक्री की पुष्टि हुई और कब्जा भी सौंप दिया गया। लेकिन डीडीए ने आपत्ति जताई कि बंधक ही अवैध था और उसकी ‘अनअर्न्ड इन्क्रीज़’ (भूमि मूल्यवृद्धि का हिस्सा) की मांग को नजरअंदाज कर दिया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
पीठ ने बैंक और वसूली अधिकारी दोनों की कड़ी आलोचना की। न्यायालय ने कहा,
“नीलामी पट्टे की शर्तों और वैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन में की गई थी।” अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि बिक्री घोषणा में डीडीए की ‘अनअर्न्ड इन्क्रीज़’ की मांग को कभी शामिल ही नहीं किया गया।
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न्यायाधीशों ने नीलामी खरीदार की स्थिति पर भी टिप्पणी की, जिसने पूरी नीयत के साथ भाग लिया था। अदालत ने कहा,
“इस कानूनी ड्रामे के सभी पक्षों में यह अकेला निर्दोष है।”
पीठ ने ‘रेस्टिट्यूशन’ (वापसी और क्षतिपूर्ति) के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि दोषपूर्ण नींव पर खड़ी नीलामी टिक नहीं सकती और इसकी जिम्मेदारी उसी बैंक पर आती है जिसने बिना कानूनी अधिकार के ऋण दिया।
निर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए, जिसमें डीडीए की याचिका ठुकरा दी गई थी, सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितम्बर 2012 की नीलामी अधिसूचना और 2013 में जारी बिक्री प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया।
अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया कि बैंक नीलामी खरीदार को पूरी जमा राशि लौटाए। इसके अलावा खरीदार को जमा तिथि से वापसी तक 9% वार्षिक ब्याज भी दिया जाएगा।
पीठ ने कहा,
"वह धन जो कहीं और मूल्य अर्जित कर सकता था, उसे न्यायसंगत रूप से लौटाना ही होगा।"
इस फैसले के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने फिर दोहराया कि राज्य की संपत्ति को पट्टे की शर्तों के उल्लंघन में बेचा नहीं जा सकता और ऐसे मामलों में फंसे निर्दोष पक्षकारों को त्वरित रूप से क्षतिपूर्ति मिलनी चाहिए।
Case Title: Delhi Development Authority vs. Corporation Bank & Ors.
Case Number: Civil Appeal No. 11269 of 2016