सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक CISF कांस्टेबल की बर्खास्तगी बहाल करते हुए साफ कहा कि अनुशासित बलों से जुड़े मामलों में हाईकोर्ट सहानुभूति के आधार पर सजा में दखल नहीं दे सकते। अदालत ने दो टूक कहा कि व्यक्तिगत कठिनाइयाँ या पारिवारिक हालात, स्पष्ट सेवा नियमों को कमजोर नहीं कर सकते।
पृष्ठभूमि
यह मामला केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के कांस्टेबल प्रणब कुमार नाथ की बर्खास्तगी से जुड़ा है, जिन्होंने जुलाई 2006 में सेवा जॉइन की थी। विवाद तब शुरू हुआ जब उनकी पत्नी चंदना नाथ ने मार्च 2016 में लिखित शिकायत देकर आरोप लगाया कि नाथ ने पहली शादी के रहते दूसरी महिला से विवाह कर लिया।
विभागीय जांच कराई गई। मुख्य आरोप साफ था-जीवित पत्नी के रहते दूसरी शादी करना, जो CISF नियम, 2001 के नियम 18(b) का सीधा उल्लंघन है। दूसरा आरोप पत्नी और नाबालिग बेटी की उपेक्षा और कथित प्रताड़ना से जुड़ा था।
जांच अधिकारी की रिपोर्ट के बाद जुलाई 2017 में अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने नाथ को सेवा से बर्खास्त कर दिया। बल के भीतर अपील और पुनरीक्षण में भी यह फैसला बरकरार रहा। हालांकि, कलकत्ता हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश और बाद में खंडपीठ ने बर्खास्तगी को “अत्यधिक कठोर” बताते हुए कम सजा देने के निर्देश दिए।
इसके खिलाफ भारत संघ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के रुख पर कड़ी टिप्पणी की। पीठ ने स्पष्ट किया कि रिट अधिकार क्षेत्र में अदालतें फैसले की प्रक्रिया की समीक्षा कर सकती हैं, लेकिन अनुशासनात्मक प्राधिकारी की तरह सजा तय करने का काम नहीं कर सकतीं।
पीठ ने कहा, “सबसे कठोर सजा कठोर लग सकती है, लेकिन सिर्फ इसलिए कि अदालत को कोई दूसरा विकल्प बेहतर लगता है, वह नियोक्ता के निर्णय की जगह नहीं ले सकती।”
अदालत ने समझाया कि CISF नियमों का नियम 18 कोई नैतिक उपदेश नहीं, बल्कि सेवा की शर्त है, जिसका मकसद अनुशासन, मानसिक स्थिरता और बल में जनता का भरोसा बनाए रखना है। जब नियम बिना अनुमति दूसरी शादी पर साफ रोक लगाते हैं, तो उनमें मनचाही व्याख्या की गुंजाइश नहीं बचती।
पुराने फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि जब तक सजा इतनी असंगत न हो कि “अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दे”, तब तक न्यायिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। आर्थिक तंगी या पारिवारिक मुश्किलें, अदालत के अनुसार, स्पष्ट नियमों पर भारी नहीं पड़ सकतीं। Dura lex sed lex-यानी कानून कठोर है, लेकिन कानून ही है-का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि कानून के उल्लंघन से पैदा हुई असुविधा उसके पालन से ध्यान नहीं हटा सकती।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसलों को रद्द करते हुए CISF के अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पारित बर्खास्तगी आदेश को, जिसे अपीलीय और पुनरीक्षण प्राधिकरणों ने भी सही ठहराया था, बहाल कर दिया। भारत संघ की अपील स्वीकार कर ली गई और लागत के संबंध में कोई आदेश पारित नहीं किया गया, जिससे यह लंबा सेवा विवाद समाप्त हो गया।
Case Title: Union of India & Ors. vs Pranab Kumar Nath
Case No.: Civil Appeal No. 15068 of 2025 (arising out of SLP (Civil) No. 18702 of 2023)
Case Type: Civil Appeal (Service Matter – Disciplinary Proceedings, CISF)
Decision Date: 19 December 2025