बिहार मंदिर हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द की, कहा- आजीवन कारावास में सजा निलंबन देते समय हाईकोर्ट ने अपराध की गंभीरता नजरअंदाज की

By Shivam Y. • December 19, 2025

राजेश उपाध्याय बनाम बिहार राज्य एवं अन्य। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार मंदिर हत्या मामले में जमानत रद्द की, कहा कि IPC धारा 302 में दोषसिद्धि के बावजूद सजा निलंबित करना गलत था।

बिहार के एक दिल दहला देने वाले मंदिर हत्या मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए पटना हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आजीवन कारावास की सजा निलंबित कर दोषी को जमानत दे दी गई थी। कोर्ट नंबर 2 में सुनवाई के दौरान पीठ ने साफ कहा कि हत्या जैसे मामलों में, खासकर जब पूरा ट्रायल हो चुका हो और दोषसिद्धि दर्ज हो, तब सजा निलंबन को सामान्य प्रक्रिया की तरह नहीं लिया जा सकता।

Read in English 

पृष्ठभूमि

यह मामला दिसंबर 2021 का है, जो बिहार के रोहतास जिले के एक गांव के महावीर मंदिर से जुड़ा है। अभियोजन के अनुसार, स्थानीय पुजारी कृष्ण बिहारी उपाध्याय शाम की आरती के लिए दिया जलाने मंदिर पहुंचे थे। उसी दौरान कुछ लोग वहां पहुंचे और उन पर “ज्यादा राजनीति करने” का आरोप लगाने लगे। कुछ ही पलों में मंदिर परिसर में गोलियों की आवाज गूंजी। पुजारी मंदिर के भीतर ही गिर पड़े और बाद में अस्पताल में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

इस मामले में दोषी ठहराए गए लोगों में श्यो नारायण महतो भी शामिल थे। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302 सहपठित धारा 149 के तहत दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके अलावा अन्य आईपीसी धाराओं और आर्म्स एक्ट के तहत भी उन्हें दोषी ठहराया गया था।

हालांकि, अपील लंबित रहने के दौरान पटना हाईकोर्ट ने उनकी सजा निलंबित कर जमानत दे दी थी। हाईकोर्ट ने यह कहते हुए राहत दी थी कि आरोपी की भूमिका केवल उकसावे की थी। साथ ही, एफआईआर को मजिस्ट्रेट कोर्ट भेजने में तीन दिन की देरी और मूल इनक्वेस्ट रिपोर्ट पेश न किए जाने को भी जमानत के पक्ष में कारण माना गया था।

अदालत की टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट इस तर्क से सहमत नहीं हुआ। न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि एक बार ट्रायल के बाद दोषसिद्धि हो जाने पर निर्दोषता की धारणा खत्म हो जाती है। अदालत ने टिप्पणी की, “आजीवन कारावास के मामलों में सजा निलंबन सामान्य रूप से नहीं दिया जा सकता।”

पीठ ने हाईकोर्ट के आधारों को “अतार्किक” बताया और कहा कि एफआईआर भेजने में देरी या कागजी कमियों से वह अभियोजन मामला कमजोर नहीं हो जाता, जिसे ट्रायल के दौरान प्रमाणों के आधार पर स्वीकार किया जा चुका हो। अदालत ने यह भी खारिज कर दिया कि हथियार के साथ मौके पर मौजूद रहना और हत्या के लिए उकसाना किसी हल्के पहलू की तरह देखा जाए। पीठ ने कहा, “प्रतिवादी की भूमिका गंभीर थी,” और यह भी जोड़ा कि वह देशी पिस्तौल के साथ मौके पर मौजूद था और फायरिंग के बाद वहां से भागा।

कोर्ट ने दोहराया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 के तहत अपीलीय अदालतों को साक्ष्यों का दोबारा मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। हत्या के मामलों में दोषसिद्धि के बाद जमानत केवल असाधारण परिस्थितियों में ही दी जा सकती है, वह भी तब जब ट्रायल कोर्ट के फैसले में कोई स्पष्ट और गंभीर त्रुटि दिखाई दे।

निर्णय

पीड़ित के बेटे द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के सजा निलंबन आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने आरोपी को दस दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया और पुलिस अधिकारियों को आदेश दिया कि तय अवधि के भीतर उसे फिर से हिरासत में लिया जाए।

Case Title: Rajesh Upadhayay vs The State of Bihar & Anr.

Case No.: Criminal Appeal arising out of SLP (Crl.) No. 8736 of 2025

Case Type: Criminal Appeal (Cancellation of Bail / Suspension of Sentence)

Decision Date: 18 December 2025

Recommended