केरल सड़क हादसे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 100% दिव्यांगता मानते हुए मुआवज़ा बढ़ाकर 41 लाख रुपये से अधिक किया

By Vivek G. • December 1, 2025

श्रीजीत बनाम अब्दुल रशीद और अन्य। सुप्रीम कोर्ट ने केरल दुर्घटना मुआवज़ा बढ़ाकर 41 लाख रुपये किया, 100% दिव्यांगता स्वीकारते हुए पहले की गणनाओं को गलत बताया।

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के कोर्टरूम नंबर - में लंबे समय तक चली सुनवाई के बाद एक महत्वपूर्ण मोटर दुर्घटना मामले में फैसला आया, जिसमें 2009 की टक्कर में अपना दायां हाथ गंवाने वाले 22 वर्षीय पूर्व बस ड्राइवर के लिए मुआवज़ा बढ़ा दिया गया। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने दोनों पक्षों को धैर्यपूर्वक सुनने के बाद कहा कि पहले की दिव्यांगता की गणना “बहुत संकीर्ण” थी और इस बात को नहीं दर्शाती कि एक युवा व्यक्ति अपनी रोज़ी-रोटी खो चुका है।

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पृष्ठभूमि

यह मामला 25 नवंबर 2009 की एक दर्दनाक सुबह की दुर्घटना से शुरू होता है। उस समय स्कूल बस ड्राइवर रहे श्रीजीत आयूर पेट्रोल पंप के पास से गुजर रहे थे, जब एक निजी बस-जिसे अदालत में “अपराधी वाहन” कहा गया-ने सामने से टक्कर मार दी। इस हादसे में उन्हें गंभीर चोटें आईं और अंततः उनका दायां हाथ काटना पड़ा।

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तिरुवनंतपुरम के अस्पतालों में महीनों इलाज कराने के बाद उन्होंने पुनलूर मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) में 10 लाख रुपये का दावा दायर किया। अधिकरण ने 2016 में उन्हें 9,04,940 रुपये दिए, जिसमें मासिक आय 5,000 रुपये और दिव्यांगता 60% मानी गई। बाद में केरल हाई कोर्ट ने राशि बढ़ाकर 15,64,520 रुपये कर दी, आय 7,000 रुपये मानकर और कुछ अतिरिक्त मदों में रकम जोड़कर। लेकिन यह भी श्रीजीत को पर्याप्त नहीं लगा और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान पीठ ने कई बार सवाल उठाया कि क्या पूरी तरह शारीरिक श्रम पर निर्भर रहने वाले व्यक्ति की दिव्यांगता केवल 60% मानी जा सकती है।

पीठ ने कहा, “जब एक बस ड्राइवर का दायां हाथ कट जाता है, तो पहले जैसा काम करके कमाई करना संभव ही नहीं। उसकी कार्यात्मक दिव्यांगता 100% है। वह ड्राइव नहीं कर सकता; वह बिना मदद के अपना जीवन नहीं चला सकता।”

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सुप्रीम कोर्ट ने 2009 के न्यूनतम वेतन को देखते हुए हाई कोर्ट द्वारा तय की गई 7,000 रुपये की मासिक आय को “उचित” माना, लेकिन दिव्यांगता प्रतिशत पर असहमति जताई।

न्यायाधीशों ने कहा कि अब श्रीजीत अपनी जीविका के लिए “पूरी तरह दूसरों पर निर्भर” हैं, और मात्र गणितीय दिव्यांगता किसी व्यक्ति की वास्तविक पीड़ा और आर्थिक गिरावट को प्रतिबिंबित नहीं करती। अदालत ने यह भी माना कि उन्हें दर्द व पीड़ा, भविष्य की चिकित्सा, परिचर की लागत, विशेष भोजन आदि जैसे कई मदों में उच्च मुआवज़े का हक है। इसी कारण अदालत ने पहले के अनेक महत्वपूर्ण फैसलों में निर्धारित 40% ‘भविष्य की संभावनाओं’ की वृद्धि को यहां भी लागू किया।

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निर्णय

सभी मदों की पुनर्गणना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कुल मुआवज़ा 41,13,138 रुपये तय किया, जो हाई कोर्ट की राशि से लगभग तीन गुना और MACT के मुआवज़े से चार गुना से अधिक है। अदालत ने 18 का गुणक (मल्टिप्लायर) लगाया, 100% कार्यात्मक दिव्यांगता को स्वीकार किया, और चिकित्सा व्यय, दर्द-पीड़ा तथा परिचर लागत जैसे मदों में पर्याप्त बढ़ोतरी की।

पीठ ने इसे “कानून के अनुरूप राशि” बताते हुए MACT और हाई कोर्ट दोनों के निर्णयों में संशोधन कर दिया। साथ ही निर्देश दिया कि मुआवज़ा राशि चार सप्ताह के भीतर सीधे अपीलकर्ता के बैंक खाते में स्थानांतरित की जाए। इसके लिए अपीलकर्ता के वकील को तुरंत बैंक विवरण बीमा कंपनी के वकील को सौंपने होंगे। सभी लंबित आवेदनों का निपटारा करते हुए अदालत ने मामले को बंद कर दिया।

Case Title: Sreejith vs. Abdul Rasheed & Anr.

Case No.: Civil Appeal No. 7191 of 2025 (Arising out of SLP (C) No. 6950 of 2023)

Case Type: Civil Appeal – Motor Accident Compensation

Decision Date: 6 May 2025

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