सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश की नई जेल कानून पर उठाए सवाल, विमुक्त जनजातियों के खिलाफ भेदभाव की आशंका पर हस्तक्षेप याचिका मंजूर

By Vivek G. • November 2, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश जेल कानून में विमुक्त जनजातियों के खिलाफ संभावित भेदभाव पर चिंता जताई। हस्तक्षेप याचिका स्वीकार, आगे विस्तृत सुनवाई होगी।

गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश सुधारात्मक सेवाएँ एवं बन्दीगृह अधिनियम, 2024 के कुछ प्रावधानों को लेकर चिंता जताई, जिनके तहत विमुक्त जनजातियों पर भेदभाव की आशंका व्यक्त की गई है। यह मुद्दा अदालत के स्वतः संज्ञान वाले मामले In Re: Discrimination Inside Prisons in India के दौरान उठा, जिसे इस साल दिए गए सुकन्या शांथा निर्णय के बाद लगातार मॉनिटर किया जा रहा है।

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न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति विश्वनाथन की पीठ ने Criminal Justice and Police Accountability Project (CPA Project) द्वारा दायर हस्तक्षेप याचिका को स्वीकार कर लिया। यह याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता अपर्णा भट्ट ने प्रस्तुत की।

पृष्ठभूमि

सुकन्या शांथा निर्णय ने जेलों के अंदर होने वाले भेदभाव को राष्ट्रीय बहस के केंद्र में ला दिया था। कोर्ट ने विशेष रूप से कहा था कि विमुक्त जनजातियों को “आदतन अपराधी” कह कर चिह्नित करना औपनिवेशिक सोच का अवशेष है, जिसका कोई संवैधानिक आधार नहीं है।

उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि “आदतन अपराधी” शब्द का उपयोग तभी किया जाएगा जब उसकी स्पष्ट, कानूनी परिभाषा मौजूद हो, और जेल प्रशासन इसे मनमाने तरीके से इस्तेमाल नहीं कर सकता।

हस्तक्षेपकर्ता का तर्क था कि 2024 का मध्यप्रदेश अधिनियम सतही तौर पर सुधार की भाषा बोलता है, लेकिन इसके कई प्रावधान फिर से उसी ढांचे को मजबूत कर सकते हैं जिसके तहत विमुक्त जनजातियों को बिना सबूत के संदेह की नजर से देखा जाता रहा है।

अदालत की टिप्पणियाँ

वरिष्ठ अधिवक्ता भट्ट ने बताया कि नए कानून में आदतन अपराधी की परिभाषा बहुत अस्पष्ट है - बस इतना कहा गया है कि जो व्यक्ति “बार-बार जेल जाता है” उसे आदतन अपराधी माना जा सकता है। इसमें न तो “बार-बार” की सीमा तय है, न ही कोई स्पष्ट न्यायिक प्रक्रिया।

पीठ ने कहा, “अगर शब्दावली इतनी अस्पष्ट है कि अधिकारी मनमाना निर्णय ले सकें, तो इतिहास की गलतियाँ दोहराई जा सकती हैं। ऐसी स्थिति से बचना आवश्यक है।”

हस्तक्षेपकर्ता ने कोर्ट को बताया कि कुछ विशेष प्रावधान खास तौर पर समस्या पैदा कर सकते हैं:

  • धारा 6(3): “उच्च जोखिम/पुनरावृत्ति/आदतन अपराधियों” के लिए अलग वार्ड की अनिवार्यता — तीन अलग समूहों को एक जैसा मान लेना।
  • धारा 27(2): वर्गीकरण समिति को कैदी को "आदतन अपराधी" घोषित करने की शक्ति।
  • धारा 28: पृष्ठभूमि और रिकॉर्ड के आधार पर अलगाव, निगरानी, और पैरोल/फरलो जैसे अधिकारों से वंचित करने की अनुमति।

हस्तक्षेपकर्ता का तर्क था कि ये प्रावधान विमुक्त जनजातियों पर असमान और असंगत प्रभाव डाल सकते हैं, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से उन्हें बेबुनियाद आपराधिक पहचान दी गई थी।

पीठ ने इस बात पर गंभीरता दिखाई कि कहीं नया कानून उस औपनिवेशिक सोच को फिर से जीवित न कर दे, जिसे अदालत पहले ही असंवैधानिक ठहरा चुकी है।

निर्णय

दलीलें सुनने के बाद पीठ ने हस्तक्षेप याचिका को स्वीकार कर लिया और हस्तक्षेपकर्ता को निर्देश दिया कि वे विस्तृत निर्देशों वाली याचिका दायर करें, जिससे अदालत 2024 अधिनियम की गहन संवैधानिक समीक्षा कर सके।

अधिनियम पर अंतिम निर्णय अभी सुनवाई के आगे के चरणों में होगा। सुनवाई जारी रहेगी।

In Re: Discrimination Inside Prisons in India (Suo Motu) – Challenge to Madhya Pradesh Prison Reform Act, 2024

Court: Supreme Court of India

Bench: Justice JB Pardiwala & Justice Viswanathan

Matter Type: Suo Motu Public Interest Case

Issue: Alleged discrimination against Denotified Tribes inside prisons.

New Law Under Scrutiny: Madhya Pradesh Sudharatmak Sevayen Evam Bandigrah Adhiniyam, 2024

Connection to Previous Judgment: Violates directions issued in Sukanya Shantha (2024) judgment against stereotyping prisoners based on caste or community.

Intervenor: Criminal Justice and Police Accountability Project (CPA Project)

Representation: Senior Advocate Aparna Bhat argued for the intervenor.

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