10 सितम्बर 2025 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में लक्ष्मण जांगड़े की सज़ा में संशोधन किया। पहले उन्हें एक नाबालिग से कथित बलात्कार के लिए बीस साल की कैद दी गई थी। न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने माना कि सबूत बलात्कार या प्रवेश संबंधी यौन हमले के आरोपों का समर्थन नहीं करते।
पृष्ठभूमि
जांगड़े को जुलाई 2022 में ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376AB और लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था। जनवरी 2025 में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह सज़ा बरकरार रखी, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। अभियोजन का आरोप था कि जांगड़े, जो पीड़िता के पड़ोसी हैं, ने बारह साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन उत्पीड़न किया। जब मामला सर्वोच्च अदालत पहुँचा, तब तक वे पहले ही साढ़े पाँच साल जेल में बिता चुके थे।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर, मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज बच्ची का बयान और ट्रायल के दौरान उसका साक्ष्य बारीकी से परखा। पीठ ने कहा, “अपीलकर्ता का कथित कृत्य आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9(एम) के दायरे में आता है,” क्योंकि कोई भी मेडिकल या गवाह सबूत प्रवेश को साबित नहीं करता।
न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि पीड़िता के निजी अंगों को छूने का आरोप आईपीसी की धारा 375 में परिभाषित बलात्कार या पॉक्सो अधिनियम की धारा 3(सी) में बताए गए प्रवेशात्मक हमले की श्रेणी में नहीं आता। न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, “ट्रायल कोर्ट द्वारा और हाईकोर्ट द्वारा कायम यह अनुमान कि प्रवेशात्मक यौन हमला हुआ, टिक नहीं सकता।”
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फैसला
अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार और प्रवेशात्मक हमले के दोष को रद्द कर दिया। जांगड़े को इसके बजाय आईपीसी की धारा 354 के तहत महिला की लज्जा भंग करने और पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के तहत बारह वर्ष से कम उम्र की बच्ची पर गंभीर यौन हमला करने का दोषी पाया गया। उनकी सज़ा घटाकर आईपीसी के तहत पाँच साल और पॉक्सो अधिनियम के तहत सात साल कर दी गई, जो एक साथ चलेगी। 50,000 रुपये का जुर्माना यथावत रखा गया है, जिसे दो महीने के भीतर पीड़िता को मुआवज़े के रूप में देना होगा।
मामला: लक्ष्मण जांगड़े बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
निर्णय की तिथि: 10 सितंबर 2025