सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2024 के हस्तिनापुर हत्याकांड में आरोपी राजवीर को मिली इलाहाबाद हाई कोर्ट की जमानत रद्द करते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने “सिर्फ समानता” के आधार पर राहत दे दी, जबकि अपराध में उसकी वास्तविक भूमिका का परीक्षण ही नहीं किया। कोर्ट नंबर .... के भीतर माहौल गंभीर था, जब पीठ ने कई बार दोहराया कि हत्या जैसे मामलों में जमानत आदेशों में “न्यायिक मनन” दिखना चाहिए।
पृष्ठभूमि
रिकॉर्ड के अनुसार, झगड़ा गांव के ही दो परिवारों-शिकायतकर्ता पक्ष और सुरेश पाल के परिवार-के बीच मौखिक विवाद से शुरू हुआ, जो बाद में कथित तौर पर एक घातक टकराव में बदल गया। 28 जून 2024 को, जब शिकायतकर्ता, उनके पिता सोनवीर और परिवार के अन्य सदस्य एक पड़ोसी की जमीन की ओर जा रहे थे, तभी कथित रूप से सुरेश पाल, राजवीर, आदित्य और अन्य हथियारबंद आरोपी रास्ता रोककर खड़े हो गए।
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एफआईआर बताती है कि राजवीर ने परिवार को धमकाया, जिसके बाद सुरेश पाल ने कथित रूप से अपने बेटे आदित्य को गोली चलाने के लिए उकसाया। आदित्य ने सोनवीर के सीने में गोली मारी और उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। इसके बाद राजवीर और अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी हुई।
राजवीर की जमानत मेरठ सत्र न्यायालय ने दो बार खारिज की थी, यह कहते हुए कि गोली और चोटों की गंभीरता को देखते हुए राहत नहीं दी जा सकती। लेकिन 3 जनवरी 2025 को हाई कोर्ट ने उसे जमानत दे दी, मुख्यत: इस आधार पर कि उसके सह-आरोपी तथा पिता सुरेश पाल को पहले ही समान परिस्थिति में जमानत मिल चुकी थी।
कोर्ट की टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति संजय करोल ने स्पष्ट कहा कि हाई कोर्ट ने “समानता” को एक तरह से स्वतः लागू होने वाली छूट मान लिया। “पीठ ने कहा, ‘समानता को मशीन की तरह लागू नहीं किया जा सकता। इसका मतलब भूमिका की समानता है, सिर्फ मामले के नंबर की समानता नहीं।’”
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फैसले में देश की कई हाई कोर्टों के उदाहरण दिए गए, जिनमें सर्वसम्मति से कहा गया है कि parity केवल एक कारक है, जमानत का पूर्ण आधार नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने समझाया कि समानता का अर्थ समान स्थिति है-सिर्फ साथ खड़े होने से समानता नहीं बनती।
कोर्ट ने बताया कि एफआईआर के अनुसार, राजवीर “मौके पर उकसाने वाला व्यक्ति” था-जिसने आदित्य को गोली चलाने के लिए प्रेरित किया। पीठ ने कहा, “यह भूमिका उस सह-आरोपी के बराबर नहीं हो सकती जो सिर्फ मौजूद था, भले ही वह हथियारबंद क्यों न हो।”
कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि सुरेश पाल की जमानत-जिस पर राजवीर की जमानत आधारित थी-सुप्रीम कोर्ट पहले ही मार्च 2025 में रद्द कर चुका है। इस प्रकार, हाई कोर्ट द्वारा अपनाया गया समानता का आधार “अब अस्तित्व में ही नहीं था।”
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इसके अलावा, पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि यह लगभग “गैर-वक्तव्य आदेश (non-speaking order)” था। कोर्ट ने टिप्पणी की, “जमानत आदेश में न्यूनतम कारण तो होना ही चाहिए। कारणों का अभाव प्राकृतिक न्याय के विपरीत है।”
निर्णय
समूचे रिकॉर्ड और हाई कोर्ट के आदेश की जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता की अपील स्वीकार कर ली। कोर्ट ने राजवीर को मिली जमानत रद्द करते हुए उसे दो हफ्तों के भीतर सरेंडर करने का आदेश दिया।
इसी मामले से जुड़े एक अन्य सह-आरोपी प्रिंस की जमानत भी सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी, यह कहते हुए कि हाई कोर्ट ने फिर से कोई ठोस कारण नहीं दिया। अब प्रिंस की जमानत याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट को वापस भेज दी गई है, जिसे उसकी भूमिका और अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखकर नए सिरे से तय किया जाएगा।
अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री को आदेश की प्रति इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजने का निर्देश दिया है, ताकि अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
Case Title: Sagar v. State of Uttar Pradesh & Another
Case No.: Criminal Appeal @ SLP (Crl.) Nos. 8865–8866 of 2025
Case Type: Criminal Appeal (Bail Challenge)
Decision Date: 28 November 2025