गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में माहौल थोड़ा तनावपूर्ण हो गया जब न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने व्यवसायी विगिन के. वर्गीस को ज़मानत देने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के दो आदेशों को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की याचिका पर सुनवाई की। दक्षिण अफ्रीका से आयातित फलों के डिब्बों में छिपाकर रखे गए 50.232 किलोग्राम कोकीन की ज़ब्ती से जुड़ा यह मामला पहले ही प्रवर्तन अधिकारियों के बीच काफ़ी चर्चा का विषय बन चुका था।
सुनवाई समाप्त होते-होते यह साफ हो गया कि पीठ हाईकोर्ट के जमानत आदेश से संतुष्ट नहीं है।
“हाईकोर्ट ने विधिक आवश्यकताओं का उचित रूप से परीक्षण नहीं किया है,” पीठ ने आदेश सुनाते हुए कहा।
पृष्ठभूमि
अभियोजन के अनुसार, अक्टूबर 2022 में DRI को जानकारी मिली कि जवाहरलाल नेहरू पोर्ट पर एक रेफ्रिजरेटेड कंटेनर पहुंचने वाला है। दस्तावेज़ों में आयातक के तौर पर एम/एस यम्मिटो इंटरनेशनल फूड्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का नाम दर्ज था, जिसमें वर्गीज़ निदेशक थे।
कंटेनर खोलने पर अधिकारियों को 50 ईंटनुमा पैकेट मिले, जिन्हें हरे सेब (पेयर) की पेटियों के भीतर बड़े सलीके से छिपाया गया था। फील्ड टेस्ट, DRI का दावा है, कोकीन की पुष्टि करते थे। इसके बाद समिति ने NDPS अधिनियम की धारा 67 के तहत वर्गीज़ के बयान दर्ज किए, जिनमें उसके शिपमेंट और एक विदेशी सहयोगी के साथ समन्वय की बात कही गई थी।
मामले को और गंभीर बनाती थी एक अलग बरामदगी, जो कुछ दिनों पहले ही हुई थी इसमें 198.1 किलोग्राम मेथाम्फेटामाइन और 9 किलोग्राम से अधिक कोकीन शामिल थी, जिसे इसी नेटवर्क से जुड़ा बताया गया। केंद्र का तर्क था कि जमानत पर विचार करते समय इस तथ्य को गंभीरता से देखा जाना चाहिए।
हालांकि वर्गीज़ अक्टूबर 2022 से ही न्यायिक हिरासत में थे, और ट्रायल लगभग ठहरा हुआ था। इसी आधार पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस वर्ष उन्हें जमानत दे दी, यह कहते हुए कि अभियोजन सीधे तौर पर यह साबित नहीं कर पाया कि वर्गीज़ को छिपे हुए ड्रग्स की जानकारी थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने शब्दों में कोई कोताही नहीं बरती। न्यायमूर्ति अरविंद कुमार ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने कुछ निष्कर्ष “महत्वपूर्ण अभियोजन सामग्री पर विचार किए बिना” निकाले।
पीठ ने दोहराया कि NDPS मामलों में जमानत को सामान्य मामला नहीं माना जा सकता। धारा 37, जो व्यावसायिक मात्रा वाले मामलों में कड़ी रोक लगाती है, अदालतों से स्पष्ट संतोष चाहती है कि-
- आरोपी प्रथम दृष्टया दोषी न हो सकता है, और
- आरोपी जमानत पर रहते हुए अपराध नहीं करेगा।
पीठ के अनुसार, इन दोनों शर्तों का हाईकोर्ट ने सावधानीपूर्वक विश्लेषण नहीं किया। अदालत ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने आरोपी के दर्ज बयानों, आयात प्रक्रिया में उसकी कथित भूमिका, और कुछ दिन पहले हुए भारी ड्रग्स जब्ती मामले की पृष्ठभूमि इन पर चर्चा ही नहीं की।
“निर्दोष प्रतीत होने के आधार पर निष्कर्ष आसानी से नहीं निकाले जा सकते,” पीठ ने कहा।
अदालत ने यह भी कहा कि ट्रायल में देरी निश्चित ही एक चिंता है, लेकिन व्यावसायिक मात्रा वाले ड्रग मामलों में विधिक प्रतिबंध तब तक हल्के नहीं हो जाते जब तक जमानत आदेश ठोस न्यायिक कारणों पर आधारित न हों।
न्यायालय का निर्णय
सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी 2025 और 12 मार्च 2025 के दोनों हाईकोर्ट आदेश रद्द कर दिए। अदालत ने मामला बॉम्बे हाईकोर्ट को वापस भेज दिया, जिसे अब जमानत याचिका पर दोबारा विचार करना होगा।
पीठ ने एक समयबद्ध निर्देश भी दिया:
हाईकोर्ट को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, NDPS अधिनियम की धारा 37 को पूरी तरह लागू करते हुए, चार सप्ताह के भीतर एक कारणयुक्त आदेश पास करना होगा।
दिलचस्प रूप से, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को इस अवधि के दौरान अंतरिम जमानत जारी रहने की अनुमति दी, लेकिन स्पष्ट चेतावनी के साथ यदि गवाहों से संपर्क या सबूत से छेड़छाड़ का कोई प्रयास हुआ, तो अभियोजन हाईकोर्ट में त्वरित रद्दीकरण के लिए जा सकता है।
और अंत में, पीठ ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की, और अपीलों को निपटा दिया।
Case Title:- Union of India vs. Vigin K. Varghese