सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात पर ध्यान दिया कि एक फॉरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार वे ऑडियो रिकॉर्डिंग, जिनमें पूर्व मणिपुर मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को 2023 की जातीय हिंसा से जोड़ने का दावा किया गया था, छेड़छाड़ की हुई पाई गई हैं। अदालत के माहौल में हल्का तनाव महसूस किया गया, क्योंकि मामला इस बात पर केंद्रित है कि 50 मिनट के वायरल ऑडियो में सुनाई देने वाली आवाज़ वास्तव में पूर्व मुख्यमंत्री की है या नहीं।
पृष्ठभूमि
याचिका कुकी ऑर्गनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट द्वारा दायर की गई थी, जिसने इन रिकॉर्डिंग की कोर्ट-निगरानी वाली जांच की मांग की थी। ये क्लिप्स मणिपुर में पिछले वर्ष नागरिक टकराव के चरम के दौरान सामने आए थे, जब समुदायों में विभाजन गहरा था और आरोप-प्रत्यारोप भीषण स्तर पर थे।
पहले किए गए फॉरेंसिक विश्लेषण स्पष्ट परिणाम नहीं दे पाए थे, जिसके बाद अगस्त 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के गांधीनगर स्थित नेशनल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (NFSL) से दोबारा जांच करवाई। इस बीच, याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने ट्रुथ लैब्स नामक निजी एजेंसी की रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें 50 मिनट की क्लिप में आवाज़ और बीरेन सिंह की संदर्भ आवाज़ के बीच 93% समानता बताई गई थी।
अदालत की टिप्पणियाँ
सोमवार को जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक आराधे की पीठ ने NFSL की सीलबंद रिपोर्ट खोली। रिपोर्ट पढ़ते हुए जस्टिस कुमार ने कहा, “चार ऑडियो एग्ज़िबिट्स में संशोधन और टैंपरिंग के संकेत मिले हैं… ये मूल रिकॉर्डिंग नहीं हैं और इनका उपयोग फॉरेंसिक वॉयस तुलना के लिए नहीं किया जा सकता।”
प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि ट्रुथ लैब्स रिपोर्ट मुख्य 50 मिनट के ऑडियो को बिना एडिट बताती है और विश्वसनीय है। उन्होंने संकेत दिया कि NFSL सरकारी प्रयोगशाला है, इसलिए वस्तुनिष्ठता पर संदेह का प्रश्न उठा सकता है। इस पर जस्टिस कुमार ने कहा, “हम नहीं जानते। NFSL को तो प्रीमियर फॉरेंसिक लैब माना जाता है।”
सरल शब्दों में, अदालत ने माना कि रिकॉर्डिंग बदली गई हैं, इसलिए आवाज़ की सही पहचान करने का वैज्ञानिक आधार नहीं बचता।
पीठ ने आगे कहा, “इसलिए, वक्ताओं की समानता या असमानता पर कोई राय नहीं दी जा सकती।”
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने NFSL के निष्कर्षों पर भरोसा जताते हुए कहा कि खुद रिपोर्ट में रिकॉर्डिंग छेड़छाड़ की हुई पाई गई है। उन्होंने यह भी जोड़ा, “मणिपुर में हालात अब शांत हैं, इसलिए बेहतर होगा कि उन्हें फिर से न उलझाया जाए।”
मणिपुर सरकार के वकील ने कहा कि उन्हें रिकॉर्डिंग ठीक से सुनाई या समझ में नहीं आई। इस पर भूषण ने जवाब दिया कि फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं के पास ऑडियो साफ़ और विस्तार से सुनने/विश्लेषण करने के लिए बेहतर उपकरण होते हैं।
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निर्णय
संक्षिप्त सुनवाई के बाद, अदालत ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि NFSL की अंतिम रिपोर्ट (दिनांक 10.10.2025) की प्रति सभी पक्षों को उपलब्ध कराई जाए। मामला अब 8 दिसंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। इस चरण पर अदालत ने आवाज़ की प्रामाणिकता पर कोई अंतिम राय नहीं दी; बल्कि दोनों पक्षों से प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही आगे निर्णय लेने की बात कही।
(आदेश यहीं समाप्त होता है)
Case: Kuki Organization for Human Rights Trust vs. Union of India (Manipur Audio Tape Tampering Case)
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice Sanjay Kumar and Justice Alok Aradhe
Case Number: W.P.(C) No. 702/2024
Petitioner: Kuki Organization for Human Rights Trust
Respondents: Union of India and the State of Manipur









