इलाहाबाद हाईकोर्ट ने M/s जे केमिकल वर्क्स को बड़ी राहत देते हुए उसकी 154 दिन की देरी से दाखिल की गई वाणिज्यिक अपील को मंजूरी दे दी है। यह मामला, जिसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की पीठ ने की, इस बात पर केंद्रित था कि क्या कंपनी ने अपनी देर से दायर अपील के लिए “पर्याप्त कारण” प्रस्तुत किया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद 2020 में कानपुर नगर में दाखिल एक वाणिज्यिक वाद से जुड़ा है, जिसमें ट्रायल कोर्ट ने सितंबर 2024 में प्रक्रिया संबंधी नियमों के तहत वादपत्र लौटाने का आदेश दिया था। जे केमिकल वर्क्स ने इस निर्णय को अप्रैल 2025 में चुनौती दी, जो तय समयसीमा से काफी देर बाद था। कंपनी ने देरी का कारण अपने स्वामी जय कुमार की गंभीर बीमारी और वकील में बदलाव को बताया, जिससे कथित तौर पर आदेश के बारे में देर से पता चल पाया।
प्रतिवादी साईं केमिकल्स ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि जय कुमार इस अवधि के दौरान अन्य संबंधित मामलों में सक्रिय थे और जनवरी 2025 में एक हलफनामा भी दायर किया था। उनके वकील का कहना था कि इससे साफ है कि उन्हें मुकदमे की जानकारी थी और वे बीमारी या अज्ञानता का हवाला नहीं दे सकते।
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वहीं जे केमिकल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोविंद सिंह ने मेडिकल रिकॉर्ड पर ज़ोर देते हुए कहा कि देरी जानबूझकर नहीं हुई। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि एक ही तरह के दूसरे मामले में समय पर अपील दाखिल की गई है, इसलिए “जब समान आदेशों को चुनौती दी जा रही है, तो केवल तकनीकी देरी के कारण एक अपील खारिज नहीं की जा सकती।”
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उन पूर्व निर्णयों का उल्लेख किया, जिनमें कहा गया था कि सीमा अधिनियम के अंतर्गत “पर्याप्त कारण” शब्द का उदारतापूर्वक अर्थ लगाया जाना चाहिए ताकि न्याय सुनिश्चित हो सके। इस मामले पर टिप्पणी करते हुए न्यायाधीशों ने कहा, “आवेदन के साथ संलग्न चिकित्सीय प्रिस्क्रिप्शन और रिपोर्टों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। बीमारी का दावा ठोस और विश्वसनीय प्रतीत होता है।”
अदालत ने यह भी माना कि जब समान तथ्यों पर आधारित दूसरी अपील सुनी जा रही है तो इस अपील को केवल देरी के कारण खारिज करना उचित नहीं होगा। पीठ ने कहा, “वर्तमान अपील दायर करने में हुई देरी का कारण पर्याप्त और संतोषजनक पाया गया है।”
देरी को माफ किए जाने के साथ अब दोनों अपीलें – एक समय पर और दूसरी विलंबित – अब एक साथ मेरिट पर सुनी जाएंगी। मामले को अगली सुनवाई के लिए 13 अगस्त 2025 को सूचीबद्ध किया गया है।
यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि न्याय केवल तकनीकी प्रक्रियाओं के कारण बाधित नहीं होना चाहिए, विशेष रूप से तब जब वास्तविक कारण अदालत के सामने रखे जाएं। वाणिज्यिक विवादों में उलझे कारोबारी वर्ग के लिए यह निर्णय महत्त्वपूर्ण संदेश है कि अदालत प्रक्रियात्मक देरी से अधिक निष्पक्ष सुनवाई को प्राथमिकता देती है।
केस का शीर्षक: मेसर्स जय केमिकल वर्क्स बनाम मेसर्स साई केमिकल्स
केस संख्या: वाणिज्यिक अपील दोषपूर्ण संख्या 1 वर्ष 2025