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इलाहाबाद हाईकोर्ट: 'गिरफ्तारी के आधार नहीं बताना' अनुच्छेद 22(1) और धारा 50 CrPC का उल्लंघन; गिरफ्तारी रद्द

15 Apr 2025 12:40 PM - By Vivek G.

इलाहाबाद हाईकोर्ट: 'गिरफ्तारी के आधार नहीं बताना' अनुच्छेद 22(1) और धारा 50 CrPC का उल्लंघन; गिरफ्तारी रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में नहीं बताए जाते हैं, तो यह संविधान के अनुच्छेद 22(1) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 50 का उल्लंघन है।

9 अप्रैल 2025 को दिए गए इस महत्वपूर्ण आदेश में न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की पीठ ने मंजीत सिंह @ इंदर @ मंजीत सिंह चना की गिरफ्तारी को प्रक्रियात्मक खामियों के चलते रद्द कर दिया।

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मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता को IPC की धारा 420, 467, 468, 469, 406, 504 और 506 के तहत मिलक थाना, ज़िला रामपुर में दर्ज एक FIR में गिरफ्तार किया गया था। उसने 26.12.2024 के रिमांड आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि:

  1. उसे गिरफ्तारी के समय गिरफ्तारी के आधार लिखित में नहीं बताए गए।
  2. गिरफ्तारी मेमो एक प्रिंटेड फॉर्मेट था जिसमें गिरफ्तारी के आधार का कोई कॉलम नहीं था।
  3. रिमांड मजिस्ट्रेट ने मशीन की तरह आदेश पारित किया, बिना याचिकाकर्ता को अपनी हिरासत का विरोध करने का अवसर दिए।

हाईकोर्ट ने साफ तौर पर कहा:

“गिरफ्तारी के समय याचिकाकर्ता को लिखित में न तो कारण बताए गए और न ही गिरफ्तारी के आधार, जिससे अनुच्छेद 22(1) और धारा 50 CrPC (अब धारा 47 BNSS) का उल्लंघन हुआ है।”

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कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के आधार लिखित रूप में देना कानूनी बाध्यता है, कोई विकल्प नहीं।

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता को रिमांड के समय कोई कानूनी सहायता नहीं दी गई:

“स्वीकार्य रूप से, learned Magistrate ने आरोपी को कानूनी सहायता देने और रिमांड के समय सुनवाई का उचित अवसर देने का कोई प्रयास नहीं किया।”

कोर्ट ने याद दिलाया कि कानूनी सहायता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21, 22(1) और 39A से प्राप्त होता है। यह अधिकार धारा 304 CrPC (अब धारा 341 BNSS) में भी निहित है।

कोर्ट ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी को गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए जाते, तो रिमांड अवैध हो जाती है।

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निर्देश दिया गया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) को गिरफ्तारी के कारण लिखित में देने होंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

“गिरफ्तारी के आधार उस भाषा में और उस तरह से बताए जाने चाहिए, जिससे आरोपी पूरी तरह समझ सके। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो गिरफ्तारी और रिमांड दोनों रद्द किए जा सकते हैं।”

सिर्फ गिरफ्तारी मेमो देना पर्याप्त नहीं माना गया, और गिरफ्तारी व रिमांड दोनों को रद्द कर दिया गया।

हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) को आदेश दिया:

“धारा 50 और 50A CrPC (अब धारा 47 और 48 BNSS) के पालन के लिए सभी पुलिस कमिश्नर, SSP और SP को निर्देश जारी किए जाएं।”

कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी और रिमांड आदेश संवैधानिक और विधिक सुरक्षा का उल्लंघन हैं:

“अतः, दिनांक 26.12.2024 का आदेश रद्द किया जाता है। याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी भी रद्द की जाती है। यदि किसी अन्य मामले में आवश्यकता नहीं हो, तो उसे रिहा किया जाए।”

रिट याचिका स्वीकार की गई, और संबंधित अधिकारियों को आदेश की जानकारी देने का निर्देश दिया गया।

परिणामस्वरूप, न्यायालय ने आरोपित रिमांड आदेश को रद्द कर दिया तथा अभियुक्त की गिरफ्तारी को रद्द कर दिया।

केस का शीर्षक - मनजीत सिंह @ इंदर @ मनजीत सिंह चाना बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा 2 अन्य 2025