दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) को निर्देश दिया है कि वह सैंपल संग्रह और उनके परिवहन के लिए न्यूनतम मानकों को तीन महीने के भीतर अधिसूचित करे। यह आदेश 18 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति अनिश दयाल ने डॉ. रोहित जैन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
कोर्ट को अवगत कराया गया कि मंत्रालय ने पैथोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री, हेमेटोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी जैसे विशेषज्ञों की चार उप-समितियाँ गठित की थीं, जिनका उद्देश्य इन प्रक्रियाओं के लिए एक समर्पित गाइडलाइन तैयार करना था। भारत में इन कार्यों के लिए फिलहाल कोई एक समान ढांचा मौजूद नहीं है।
सरकार की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया, "न्यूनतम मानकों को अंतिम रूप दे दिया गया है और अब वे विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधायी विभाग द्वारा कानूनी जांच के अधीन हैं।"
मंत्रालय द्वारा दायर स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, तैयार किए गए मसौदे को स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (DGHS) की स्वीकृति मिल चुकी है। यह मसौदा सार्वजनिक सुझावों और टिप्पणियों के लिए भी उपलब्ध कराया गया था। अब ये सुझाव नैशनल काउंसिल फॉर क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स (NCCE) द्वारा समीक्षा के लिए भेजे गए हैं, ताकि वैज्ञानिक और व्यावहारिक पहलुओं पर विचार किया जा सके।
NCCE की मंजूरी के बाद इन मानकों को भारत के राजपत्र (गजट) में अधिसूचना के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। अदालत ने ध्यान दिया कि यह प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है और केवल कानूनी परीक्षण के बाद अधिसूचना जारी की जानी है।
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फिलहाल दो प्रमुख दिशानिर्देश भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR)-राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान द्वारा लागू हैं—
“उच्च जोखिम वाले वायरल रोगजनकों के परीक्षण के लिए नमूनों के संग्रह, पैकेजिंग और परिवहन के दिशा-निर्देश” और
“2019 नोवेल कोरोनावायरस (2019-nCoV) के लिए नमूना संग्रह, पैकेजिंग और परिवहन दिशा-निर्देश”।
हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ये दिशानिर्देश केवल अंतरिम उपाय हैं और ‘क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट’ के तहत एक समान और वैधानिक मानक की आवश्यकता है।
सरकारी वकील की ओर से दिए गए आश्वासन के आधार पर कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए निर्देश दिया—
जिन न्यूनतम मानकों को मंजूरी दी जा चुकी है और जो केवल अधिसूचना की प्रतीक्षा में हैं, उन्हें जल्द से जल्द अधिसूचित किया जाए। यह प्रक्रिया आगामी तीन महीनों के भीतर पूरी की जाए।
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यह आदेश, जो कि डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित है और दिल्ली हाईकोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है, देश की स्वास्थ्य प्रणाली में एक महत्वपूर्ण नियामक खामी को दूर करने की दिशा में एक मजबूत कदम माना जा रहा है। इससे सैंपल संग्रहण और परिवहन की प्रक्रिया अधिक सुरक्षित और कुशल बन सकेगी।
शीर्षक:डॉ. रोहित जैन बनाम श्री अपूर्व चंद्र