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दिल्ली HC का फैसला IPC की धारा 397 के तहत सिर्फ एक चाकू ही घातक हथियार क्यों माना जाता है

Shivam Yadav

धारा 397 आईपीसी के तहत चाकू को घातक हथियार माने जाने की कानूनी व्याख्या जानें। फूल कुमार और अशफाक जैसे महत्वपूर्ण निर्णयों के आधार पर समझें कि कैसे अदालतें डकैती के मामलों में हथियार दिखाने को आंकती हैं।

दिल्ली HC का फैसला IPC की धारा 397 के तहत सिर्फ एक चाकू ही घातक हथियार क्यों माना जाता है

दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में आज़म बनाम NCT ऑफ़ दिल्ली के मामले में एक अपील खारिज करते हुए धारा 397 IPC के तहत आरोपी की सजा को बरकरार रखा। यह निर्णय इस बात को स्पष्ट करता है कि धारा 397 IPC के तहत "घातक हथियार का उपयोग" क्या माना जाएगा, भले ही हथियार बरामद न हुआ हो या शारीरिक नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल न किया गया हो।

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मामले की पृष्ठभूमि

आरोपी, आज़म, को 2019 में शिकायतकर्ता नवीन को चाकू दिखाकर डकैती करने के लिए दोषी ठहराया गया था। हालांकि चाकू बरामद नहीं हुआ था, लेकिन शिकायतकर्ता ने गवाही दी कि आज़म ने उसे "तेज धार वाले हथियार" से धमकाया, जिसके बाद उसने अपना मोबाइल फोन और नकदी सौंप दी। ट्रायल कोर्ट ने आज़म को धारा 397 IPC सहित अन्य आरोपों के तहत सात साल की सख्त कैद की सजा सुनाई।

महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न

  1. क्या धारा 397 IPC के तहत चाकू स्वाभाविक रूप से "घातक हथियार" माना जाता है?
  2. क्या आरोप सिद्ध करने के लिए हथियार के आकार या बरामदगी को साबित करना आवश्यक है?
  3. अदालतें हथियार के "उपयोग" की व्याख्या कैसे करती हैं-क्या वास्तविक चोट लगना जरूरी है?

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूर्व के विरोधाभासी निर्णयों की जांच की:

  • बालक राम (1983): माना कि चाकू की घातकता उसके आकार, डिज़ाइन या उपयोग के तरीके पर निर्भर करती है, जिसके लिए तथ्यात्मक सबूत की आवश्यकता होती है।
  • फूल कुमार (सुप्रा, सुप्रीम कोर्ट, 1975): फैसला दिया कि चाकू स्वाभाविक रूप से एक घातक हथियार है, जो पीड़ित पर आतंक पैदा करने वाला होता है।
  • अशफाक (2004, सुप्रीम कोर्ट): स्पष्ट किया कि धारा 397 के तहत "उपयोग" में हथियार दिखाकर डर पैदा करना भी शामिल है, भले ही शारीरिक नुकसान न पहुंचाया गया हो।

"हथियार का केवल प्रदर्शन, दिखाना या खुलेआम पकड़ना भी... धारा 397 आईपीसी के लिए पर्याप्त है।"
- राम रतन बनाम एमपी राज्य (सुप्रीम कोर्ट, 2021)

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न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने इस विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का सहारा लिया:

  • चाकू को घातक हथियार मानना: फूल कुमार और अशफाक के अनुसार, अदालत ने माना कि चाकू का वर्गीकरण उसके प्रकार या आकार पर निर्भर नहीं करता। यह जानलेवा चोट पहुंचाने और डर पैदा करने की क्षमता रखता है।
  • हथियार की बरामदगी न होना: सीतल बनाम राज्य (2014) का हवाला देते हुए, अदालत ने कहा कि यदि गवाह लगातार हथियार के उपयोग की गवाही दें तो बरामदगी अनिवार्य नहीं है।
  • "उपयोग" बनाम "चोट पहुंचाना": पीड़ित को धमकाने के लिए चाकू दिखाना भी धारा 397 के तहत "उपयोग" माना जाता है, भले ही कोई चोट न लगी हो।

केस का शीर्षक: आज़म बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली)

केस संख्या: CRL.A. 926/2024

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