दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में रेलवे के सीनियर सेक्शन इंजीनियर अरुण कुमार जिंदल को एक बड़े भ्रष्टाचार मामले में अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। यह मामला तब सामने आया जब CBI ने इसी रिश्वतखोरी नेटवर्क में शामिल एक अन्य आरोपी के खिलाफ ट्रैप कार्रवाई की।
न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि धारा 17A के तहत पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रैप मामलों में जब आगे की जांच में अन्य अधिकारियों की भूमिका सामने आती है, तो उस स्थिति में पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती।
“जब ट्रैप कार्रवाई के दौरान अपराध/आरोपियों की और जानकारी मिलती है, तो CBI को आगे की जांच के लिए असहाय नहीं बनाया जा सकता।”
— न्यायमूर्ति शालिंदर कौर, दिल्ली हाईकोर्ट
कोर्ट ने CBI बनाम संतोष कर्णानी (2023) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि धारा 17A की उपधारा ट्रैप मामलों में लागू नहीं होती, क्योंकि इसमें पहले से स्वीकृति लेना जांच के उद्देश्य को ही विफल कर देगा।
इस मामले में, जिंदल को ट्रैप के समय पकड़ा नहीं गया था, लेकिन बाद में वह रेलवे ठेकेदारों से रिश्वत वसूलने में अहम भूमिका निभाते हुए पाए गए। जांच के दौरान CBI ने उनके आवास पर छापा मारा और ₹7.85 लाख नकद और ₹43 लाख से अधिक की सोने की संपत्ति बरामद की।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे जांच में शामिल होने के लिए कोई नोटिस नहीं दिया गया, जिससे यह सिद्ध होता है कि उसकी उपस्थिति जरूरी नहीं थी। साथ ही, धारा 17A के तहत पूर्व स्वीकृति न होने की बात दोहराई।
हालांकि, विशेष लोक अभियोजक ने याचिकाकर्ता की भूमिका और जांच में बाधा डालने के प्रयासों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया। अभियोजन ने बताया कि छापे के अगले ही दिन जिंदल ने अपना बैंक लॉकर खोला और अपने भाई को CBI टीम को रोकने का निर्देश दिया।
“जिस तरह से याचिकाकर्ता ने जांच में भाग लेने से बचने की कोशिश की… और छापे के अगले दिन अपना लॉकर संचालित किया, वह याचिकाकर्ता की दुर्भावना को दर्शाता है।”
— दिल्ली हाईकोर्ट
अभियोजन पक्ष ने यह भी बताया कि जिंदल की हिरासत में पूछताछ आवश्यक है ताकि इस बड़े भ्रष्टाचार षड्यंत्र में अन्य शामिल लोगों की भूमिका उजागर की जा सके।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से साक्ष्य को छिपाने और जांच में बाधा डालने के प्रयासों को गंभीरता से लिया। विशेष रूप से इस बात को नोट किया गया कि जब उसे पता था कि उसके घर पर छापा पड़ा है, तो उसे बैंक लॉकर का संचालन नहीं करना चाहिए था।
“जब याचिकाकर्ता को अपने घर पर छापे की जानकारी थी, तब उसका लॉकर संचालित करना अनुचित था।”
— दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी
निर्णयकर्ता: न्यायमूर्ति शालिंदर कौर, दिल्ली हाईकोर्ट
मामले का शीर्षक: अरुण कुमार जिंदल बनाम CBI
मामला संख्या: BAIL APPLN. 1705/2025