सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले में हस्तक्षेप से इंकार कर दिया कि मुंबई के कबूतरखानों में कबूतरों को दाना खिलाना गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम है। आदेश के तहत, बृहन्मुंबई महानगरपालिका (एमसीजीएम) उन लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर सकती है जो प्रतिबंध के बावजूद दाना खिलाना जारी रखते हैं।
पशु अधिकार कार्यकर्ताओं और पक्षी प्रेमियों ने एमसीजीएम के जुलाई में कबूतर दाना स्थलों को हटाने के फैसले को चुनौती दी थी। शुरुआत में हाईकोर्ट ने कार्रवाई पर रोक लगाई, लेकिन बाद में लगातार उल्लंघन पर ध्यान दिया।
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"महानगरपालिका के अधिकारी बंबई न्यूसेन्स एंड सैनेटरी सब्सटेंसेस एक्ट की धाराओं 270, 271 और 272 के तहत कार्रवाई कर सकते हैं… ऐसे कृत्य सार्वजनिक उपद्रव हैं, बीमारियां फैला सकते हैं और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं," कोर्ट ने 30 जुलाई को कहा।
जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिष्ट की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता बदलाव के लिए हाईकोर्ट का रुख करें।
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"इस न्यायालय का समानांतर हस्तक्षेप उचित नहीं है।"
याचिकाकर्ताओं ने दाना खिलाने को सदियों पुरानी धार्मिक परंपरा बताते हुए पक्षी टावर बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने स्वास्थ्य पर असर के दावे पर सवाल उठाते हुए प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराया।
हालांकि, अदालतों ने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी और एमसीजीएम के अधिकार को बरकरार रखा, जिससे परंपरा और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन को मजबूती मिली।